आज संसद के मानसून सत्र के बीच भाजपा के संसदीय दल की बैठक सम्पन्न हुई। इस बैठक का मुख्य केंद्र प्रधानमंत्री का सम्बोधन रहा और हर बार की तरह उनके इस सम्बोधन के बाद देश में नई चर्चा शुरू हो गई। दरअसल, अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने विपक्ष के गठबंधन पर जमकर निशाना साधा, खासकर इसके नाम I.N.D.IA को लेकर।
प्रधानमंत्री का कहना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी में भी इंडिया था और इंडियन मुजाहिदीन में भी इंडियन है लेकिन सिर्फ इंडिया नाम रखने से इंडिया नहीं हो जाता और इसके अलावा प्रधानमंत्री ने पीफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया का नाम भी लिया जो कि एक प्रतिबंधित आंतकी संगठन है।
अब देखा जाए तो तीनो नामों में इंडिया जरूर है और देश से इन तीनों का असल में कितना रिश्ता है ये आप जानते हैं ही। लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि तीनों का कहीं न कहीं कांग्रेस से जुड़ाव रहा ही है।
पहला ईस्ट इंडिया कम्पनी, जिससे स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी रही। दोनों में एक समानता जो दिखती है वह यह है कि जिस तरह कॉर्पोरेट लालच में ईस्ट इंडिया कंपनी खत्म हो गई थी उसी तरह 2जी और कोयला घोटाले के लालच ने कांग्रेस की सत्ता खत्म कर दी थी। यह जिक्र स्कॉटिश इतिहासकार विलियम डेलरिंपल अपनी किताब ‘दी एनार्की’ में भी करते हैं।
दूसरा नाम प्रधानमंत्री ने इंडियन मुजाहिद्दीन का लिया। अब यह तो आपको याद होगा ही कि कैसे बाटला एनकाउंटर में इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी के मरने के बाद सोनिया गांधी ने आंसू बहाये थे। यह बात तो उनके ही नेता सलमान खुर्शीद ने बताई थी।
तीसरा नाम जो प्रधानमंत्री मोदी ने लिया, पीएफआई पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया इस आतंकवादी संगठन की पॉलिटिकल विंग SDPI के साथ मिलकर कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है।
तो कुल मिलाकर बात यह है कि जिन संगठनों के नाम प्रधानमंत्री ने लिए हैं उनकी प्रवृत्ति से कहीं ना कहीं कांग्रेस पार्टी और पूरा विपक्ष भी वाकिफ रहा है लेकिन फिर भी उन्होंने पूरे गठबंधन की दिशा तय करने के लिए सिर्फ नाम पर ही फोकस किया, मानो इंडिया जोड़ने से देश से जुड़ना आसान होगा। इसलिए ही आज प्रधानमंत्री ने कहा कि ये विपक्ष पूरी तरह दिशाहीन है। प्रधानमंत्री ने इसके आधार पर यहां तक कह दिया कि यह पार्टियां विपक्ष में रहने के मूड में ही हैं।
I-N-D-I-A नाम में विदेशियों की भूमिका?
एक चर्चा जो शुरू से बनी हुई है वो ये कि इस गठबंधन की दो बैठकें हो गयी हैं लेकिन ना सीटों पर चर्चा हुई न भविष्य का कोई रोड़मैप तैयार किया गया फिर सिर्फ नाम के लिए इतनी मेहनत क्यों की गयी ?
विपक्ष ने बड़ी मेहनत करके नाम रखा और पूरा प्रयास इस बात का था कि उसमें से INDIA निकले। महत्वपूर्ण यह है कि विपक्ष ने यही मेहनत किसी ऐसे नाम पर की जिसमें से भारत निकलता? ऐसा क्यों?क्या इसके पीछे एक कारण यह है कि विदेशों में INDIA की पहचान अधिक है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि विपक्ष का वर्तमान कैंपेन के केंद्र में विदेशियों से वह अपील है जो राहुल गांधी ने ब्रिटेन में रहते हुए की थी और जिसे उनके मिनियन सैम पित्रोदा ने उचित ठहराया था?
इस बात की संभावना इसलिए भी जताई जाती रही है क्योंकि जॉर्ज सोरोस ने खुलेआम यह अनाउंस किया है कि वह भारत में सत्ता परिवर्तन देखना चाहता है। सोरोस ने यह अनाउंसमेंट किसी आधार पर तो किया ही होगा, क्योंकि विदेशी तो भारत में चुनाव लड़ नहीं सकते, तो फिर कौन लोग हैं जो सोरोस की ओर से चुनाव लड़ेंगे?
जाहिर सी बात है ये वे लोग हैं जो मणिपुर में हुई हिंसा की आड़ में आईडिया ऑफ़ इंडिया लागू करने की बात करते हैं। आखिर आईडिया ऑफ़ इंडिया में ऐसा क्या है जो मणिपुर को भारत से अलग समझता है?
वैसे राहुल गाँधी का यही आईडिया ऑफ़ इंडिया है जो हमारे देश को राज्यों के संघ की तरह पेश करने पर अधिक जोर देता है। फिर आईडिया ऑफ़ इंडिया को लेकर भले ही ये दल स्वयं स्पष्ट ना हों।
प्रधानमंत्री ने आज पूरी तरह स्पष्ट किया है कि वे सिर्फ नाम की बहस तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने 2047 के विज़न पर बात की भारत के तीसरी अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प को दोहराया और बताया कि किन-किन मुद्दों पर वे चुनाव लड़ने वाले हैं।
पीएम ने आज पूरी तरह स्पष्ट किया है कि वे सिर्फ नाम की बहस तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने 2047 के विज़न पर बात की भारत के तीसरी अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प को दोहराया और बताया कि किन-किन मुद्दों पर वे चुनाव लड़ने वाले हैं।
भ्रष्टाचार पर कार्रवाई ने भले ही विपक्षी दलों को एकजुट कर दिया है लेकिन प्रधानमंत्री ने आज के भाषण से सन्देश दे दिया है कि उनकी पार्टी विपक्ष की पिच पर बैटिंग नहीं करेगी बल्कि 2024 चुनावों का एजेंडा प्रधानमंत्री तय करेंगे और विपक्ष उस हिसाब से चलेगा और फिलहाल तो यही नज़र आ रहा है।
प्रधानमंत्री के भाषण के बाद पूरा विपक्ष विरोध में कूद पड़ा है पर हर बात का विरोध इस विपक्ष के डीएनए में है, ख़ासकर बात यदि प्रधानमंत्री मोदी की है। अभी तो बातें शुरू हुई हैं। आगे देखते हैं क्या होता है
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