दशकों से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक फैसले राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते आए हैं। उत्तरप्रदेश में भाजपा को भूपेंद्र चौधरी के रूप में एक नया चेहरा मिला है। आइये इस नेता के बारे में कुछ तथ्य जानते हैं।
अपने चयन फैसलों से अक्सर हैरान कर देने में माहिर भाजपा हाई-कमान ने एक बार फिर भूपेंद्र चौधरी के चयन पर राजनीतिज्ञों को हैरत में डाल दिया था।
5 बातों में जानिए पूरा मामला
25 अगस्त 2022 को भूपेंद्र चौधरी यूपी भाजपा के नए अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।
वह स्वतंत्र देव सिंह की जगह लेंगे जिन्होंने पिछले ही महीने अपना कार्यकाल पूरा किया था।
नए अध्यक्ष बनने पर यूपी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने भूपेंद्र चौधरी को ट्विटर पर बधाई दी।
अभी भूपेंद्र चौधरी यूपी सरकार में पंचायतीराज मंत्री हैं।
यूपी में वह भाजपा के पहले जाट अध्यक्ष हैं।
जातीय समीकरण
भूपेंद्र चौधरी पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर से हैं। अगर सीधे शब्दों में बताएं तो नए राज्य भाजपा अध्यक्ष के चयन की सबसे बड़ी वजह रुठे जाट समुदाय को मनाना है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाट समुदाय का निर्णायक वोट रहा है।
2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा की उम्मीद से कम सीटें कम हुईं लेकिन वोट प्रतिशत में कमी दर्ज़ की गई।
क्यों भाजपा से खफा हैं जाट?
साल 2020 में भारतीय संसद ने तीन किसान कानूनों को पारित किया था। विपक्ष और किसान संगठनो द्वारा इन कानूनों का जमकर विरोध हुआ था। कई हज़ारों की संख्या में किसान और उनके परिवार-सदस्य दिल्ली के बॉर्डर इलाकों में धरना प्रदर्शन पर बैठ गए।
इस किसान आंदोलन में जाट समुदाय ने विशेषकर भाग लिया था। तकरीबन एक साल तक चले इस आंदोलन में जाट समुदाय भाजपा से खासा नाराज हो गया था।
इसी साल उत्तरप्रदेश चुनाव से पहले सपा-रालोद गठबंधन के चलते भी भाजपा से इस समुदाय ने किनारा कर लिया था। पश्चिमी यूपी की जाट-बेल्ट में भाजपा ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन फिर भी इस क्षेत्र में 8 सीटों पर रालोद जीतने में कामयाब रही तो वहीं जाट समुदाय के भाजपा-रोष का फायदा सपा को अंतिम परिणाम में हुआ।
जाट वोट को वापस भाजपा में लाना, नए यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी।
कामदार नेता
नए पद पर नियुक्त भूपेंद्र चौधरी भाजपा के ‘नामदार पर कामदार को प्रमुखता’ के प्राचल पर एकदम सटीक बैठते हैं।
अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुरादाबाद और फिर विश्व हिन्दू परिषद में कारसेवक के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया।
1989 में भाजपा में शामिल होने के बाद 1993 में जिला कार्य समिति के सदस्य भी बने। 1996 से 2000 तक वे मुरादाबाद के जिलाध्यक्ष रहे।
1999 में संभल से वे पूर्व यूपी मुख्यमंत्री मुलायम यादव के खिलाफ लोकसभा चुनाव में खड़े हुए। चुनाव परिणामों में उनकी हार हुई लेकिन हारने के बाद भी उनका नाम काफी विख्यात हो चूका था।
2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार में उन्हें एक छोटा विभाग मिला था लेकिन फिर 2019 में कैबिनेट मंत्री बने।
उत्तरप्रदेश राजनीति में भूपेंद्र चौधरी सांगठनिक कार्यशैली से वाकिफ और जमीनी हकीकत को जानने वाले नेताओं में गिने जाते हैं।
अन्य राज्यों में निशाना
भूपेंद्र चौधरी के साथ भाजपा सिर्फ पश्चिमी यूपी ही नहीं पर हरियाणा और राजस्थान में भी जाट समुदाय के साथ मतभेदों को दूर करना चाहेगी।
इससे पहले भी ग्रह मंत्री अमित शाह ने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भूपेंद्र चौधरी को स्टार प्रचारक के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी थी।
ध्यान देने योग्य बात है- भूपेंद्र यादव जाट समुदाय के चौथे नेता हैं जिन्हें भाजपा द्वारा बड़ी भूमिका मिली है। इससे पहले सतीश पूनिया, ओपी धनखड़ को नेतृत्व का मौका मिला था तो वहीं जगदीप धनखड़ को भाजपा ने उप-राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया था।
निष्कर्ष
जाट समुदाय आने वाले चुनावों में किसका समर्थन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन यह निर्णय अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा की तैयारी को दिखा रहा है तो वहीं कई विपक्षी पार्टी अभी भी गुटबाज़ी या अन्य समस्यों से जूझ रहीं हैं।