मोदी सरकार के आर्थिक विकास के मॉडल का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है परंपरागत आर्थिक क्षेत्रों का पुनर्जीवन। जैसे हाल के महीनों में श्रीअन्न को लेकर सरकार वैश्विक स्तर की पहल की है उसी तरह से वर्ष 2023-24 के बजट में ब्लू रेवोलुशन को लेकर सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन की दिशा में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र को लेकर सरकार के नये प्रयास मत्स्य पालन के न केवल नये तरीकों को अपनाने के बारे में हैं बल्कि विश्व स्तरीय नई तकनीकों के क्रियान्यवन को अगले स्तर तक ले जा रहे हैं।
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भारत में मत्स्य पालन का एक विस्तृत इतिहास रहा है। ऐसा माना जाता है कि 2000 ईसा पूर्व में भी तत्कालीन भारतीय भूगोल में मछली पालन का प्रचलन था। सिंधु घाटी सभ्यता में भी मछली पालन के प्रमाण मिले हैं। प्राचीन काल से ही मछली इस भूगोल में एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत रही है। यही कारण है कि समय के साथ मछली पकड़ने या मछली पालन के विभिन्न तरीकों की विकासयात्रा भी देखने को मिली। देश के विभिन्न भागों में मछलियों के प्रजनन और पालन-पोषण के लिए मछली के तालाबों और टैंकों का उपयोग किया जाता था। अर्थशास्त्र और मत्स्य पुराण जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मत्स्यपालन के अभ्यास का भी उल्लेख किया गया था।
स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने मछली पालन को बढ़ावा देने और मछली उत्पादन में सुधार के लिए कई कदम उठाए। 1970 के दशक में सरकार ने मत्स्य क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (CIFE) और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) की स्थापना की है।
आज, भारत दुनिया में मछली के अग्रणी उत्पादकों में से एक है, जिसका वार्षिक उत्पादन 14 मिलियन टन से अधिक है। तटीय क्षेत्रों, नदी घाटियों और ऊँचाई वाले क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न हिस्सों में मत्स्यपालन का अभ्यास किया जाता है। भारत में पाली जाने वाली मछलियों की प्रमुख प्रजातियों में कैटफ़िश, कार्प, तिलापिया, ट्राउट और झींगे शामिल हैं।
इसी लक्ष्य को बढ़ावा देते हुए वर्तमान सरकार ने मत्स्य संपदा योजना का निर्माण किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य मछली उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना, बुनियादी ढांचा तैयार करना और इस क्षेत्र का आधुनिकरण कर रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना है।
नीति आयोग पीएमएमएसवाई के माध्यम से मत्स्य पालन क्षेत्र में सतत और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। नीति आयोग योजना की प्रगति की समीक्षा करने और इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक परिवर्तन करने के लिए भी जिम्मेदार है और यह योजना किसानों की आय दुगुनी करने में मदद की दृष्टि से बनायी गई है।
वैश्विक मत्स्य पालन उद्योग में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत 2019 में 14.5 मिलियन मीट्रिक टन (एमटी) मछली उत्पादन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश था।
एक जिला, एक उत्पाद: सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को संबल
देश में लगभग 7,500 किलोमीटर की लंबी तटरेखा है जो नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई है। ये समुद्री क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। निर्यात के मामले में हम चीन, नॉर्वे और वियतनाम के बाद दुनिया में चौथे स्थान पर है। देश का मछली निर्यात पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में भारत से मत्स्य उत्पादों का निर्यात लगभग 11,90,825 मीट्रिक टन था जिसका कुल मूल्य लगभग 46662.85 करोड़ रुपये था।
वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में 30% की बढ़ोतरी के साथ मत्स्य उत्पादों के निर्यात 7.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जो यह रिकॉर्ड आंकड़ा महामारी लॉकडाउन के कारण पैदा हुई बाधाओं के बावजूद हासिल किया गया है।
इसके अलावा, वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रैल से सितंबर के दौरान निर्यात ने पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में अमेरिकी डॉलर आय में 6.67% की वृद्धि दर्ज की है। ऐसे में सरकार के लिए यह आवश्यक था कि निर्यात में आई इस गति को बरकरार रखा जाए।
PMMSY के तहत मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए कई घटकों की पहचान की गई है, जिनमें से मुख्य रूप से नई तकनीकों के मध्यम से उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि , अवसंरचना विकास जिसमें कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं, मछली लैंडिंग केंद्र और मछली बाजार शामिल हैं। मात्स्यिकी प्रबंधन घटक देश में मात्स्यिकी प्रबंधन प्रणाली में सुधार लाने पर केंद्रित है, जिसमें बेहतर विनियामक तंत्र की शुरूआत, मत्स्य स्टॉक का संरक्षण, और सतत मात्स्यिकी पद्धतियों का विकास शामिल है।
एक्वाकल्चर विकास घटक का उद्देश्य देश में एक्वाकल्चर के विकास को बढ़ावा देना है, जिसमें नए मछली फार्मों की स्थापना, पिंजरा पालन को बढ़ावा देना और मछली पालन के लिए नई तकनीकों का उपयोग शामिल है।
विपणन और निर्यात प्रोत्साहन जैसे घटक से मत्स्य और मत्स्य उत्पादों के विपणन और निर्यात को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें निर्यातोन्मुखी इकाइयों की स्थापना, मछली उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग, और मछली विपणन के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना शामिल है।
पीएमएमएसवाई के लॉन्च के बाद से, इस योजना के तहत कई पहल की गई हैं, जिनमें फिश फीड मिलों की स्थापना, मछली पकड़ने की नई नौकाओं की शुरुआत, मछली लैंडिंग केंद्रों का निर्माण और मछली पालन को बढ़ावा देना शामिल है। इस योजना ने मत्स्य पालन क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए हैं, जिससे देश के आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
PMMSY अन्य सरकारी योजनाओं जैसे नीली क्रांति योजना, सागरमाला परियोजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ एकीकृत है। इस एकीकरण का उद्देश्य विभिन्न योजनाओं के बीच तालमेल बैठाना है जिसके परिणामस्वरूप मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए क्षेत्र में काम कर रहे लोगों और संस्थाओं में अधिक व्यापक दृष्टिकोण का विकास होगा।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत अनुसूचित जाति की महिलाओं को मछली पालन का कारोबार शुरू करने के लिए 60% सब्सिडी दी जाती है जबकि सामान्य वर्ग की महिलाओं को 40% सब्सिडी मिलती है। सरकार तटीय मछुआरा गांवों में 3477 “सागर मित्रा” पंजीकृत करेगी और मछली किसान उत्पादक संगठन (एफपीओएस) को प्रोत्साहित करेगी।
PMMSY का उद्देश्य आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक और सामाजिक रूप से समावेशी विकास है जो मछली किसान और राष्ट्र के भोजन और पोषण सुरक्षा में योगदान प्रदान करना है। यह योजना पूरे देश में 5 वर्ष में कार्यान्वित होगी। इसका उद्देश्य 1,00,000 करोड़ तक मत्स्यपालन निर्यात को दोगुना करते हुए 70 लाख टन का अतिरिक्त मछली उत्पादन करना है और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए 55 लाख रोजगार पैदा करना है।
कुल मिलाकर, मत्स्य पालन में आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप उत्पादन, उत्पादकता और स्थिरता में सुधार हुआ है। नई तकनीकों और प्रथाओं को अपनाने से इस क्षेत्र को पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए और उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए मछली उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने में भी मदद मिली है। योजना का उद्देश्य मत्स्य उत्पादन को बढ़ाना तथा अगले पांच वर्षों में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ 220 एलएमटी की बढ़ोतरी करना है।
पीएमएमएसवाई से ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जहां मछली पकड़ने का उद्योग आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
ग्रामीण रोज़गार को लेकर वर्तमान सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए जा रहे बदलाव का ही प्रभाव मत्स्य पालन के क्षेत्र पर दिखाई दे रहा है। मत्स्य उत्पादों के वैश्विक कारोबार में भारत का लगातार बढ़ता हिस्सा इस क्षेत्र के प्रति सरकार के दृष्टिकोण को और महत्वपूर्ण बना देता है।
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