हाल ही में पापुआ न्यू गिनी की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे के साथ तिरुक्कुरल को टोक पिसिन भाषा में जारी किया। तिरुक्कुरल करीब 2000 से 3000 वर्ष पुराना एक प्रतिष्ठित तमिल साहित्य है। यह साहित्य संभवतः ज्ञान की सभी सीमाओं को छूता है एवं जीवन के हर पहलू पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस साहित्य की विशेषता है कि हजारों वर्ष पूर्व लिखे जाने के बाद भी यह आज विभिन्न संस्कृतियों एवं कई देशों के लिए प्रासंगिक विषय सूची उपलब्ध करवाता है। तमिल साहित्य का यह ऐसा हिस्सा है जिसका 40 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। टोक पिसिन भाषा इसमें एक नया नाम है।
तिरुक्कुरल संभवत संगम साहित्य के तीसरे पड़ाव का साहित्य है जिसे तिरुवल्लुवर द्वारा रचित किया गया है। नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, कूटनीति, राजनीति एवं सामान्य जीवन से जुड़े हर पहलू पर गहन विषय उपलब्ध करवाने के लिए इसे उत्तरवेद भी कहा जाता है। वेदान्तों की भांति ही तिरुक्कुरल असीमित ज्ञान का प्रसार करता है। तिरुक्कुरल का अध्ययन दर्शनशास्त्री, कवियों एवं लेखकों के साथ राजनेताओं द्वारा भी किया जा रहा है। हिंदू शास्त्रों में पुरुषार्थ के लिए चार स्तंभ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष बताए गए हैं। तिरुक्कुरल में भी इन्हीं का सार नजर आता है। इस नीति काव्य के तीन भागों में धर्म, अर्थ एवं काम का बहुत ही सूक्ष्म वर्णन किया गया है। हालांकि लेखक का शायद मानना होगा कि धर्म, अर्थ, काम को समझने वाले व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति स्वाभाविक रूप से हो जाती है ऐसे में मोक्ष का जिक्र अंतिम अध्याय में मिलता जरूर है पर इसके लिए अलग खंड उपलब्ध नहीं है।
जीवन, देश एवं राज को संचालित करने के लिए यह काव्य सरल नियामवली प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि नीतिशास्त्र, राजनीति एवं कूटनीति पर कार्य करने वाले लोगों के लिए यह ग्रंथ आज भी मौलिक बना हुआ है। काव्यरचना में दैनिक जीवन, ग्रहस्थ परिवार के नियम, क्रोध, प्रेम, शिक्षा, मैत्री एवं शत्रुता सहित कई अवस्थाओं को सुंदर सरल ढ़ंग में समझाया गया है। हालांकि चाइनीज, फ्रेंच, अंग्रेजी एवं भारत की अनन्य भाषाओं में इसके अनुवाद होने का कारण इसकी ज्ञान की प्रासंगिकता और सार्वभौमिकता है।
नीतिकाव्य राजनीति में राजा, सेना, राजदूत एवं मंत्रियों के गुणों की चर्चा करता है। उत्तम गुणों, नियमों एवं अवधारणाओं को प्रस्तुत करता तिरुक्कुरल मात्र हिंदू समुदाय तक बंध के नहीं रहा। जीवन दर्शन की दिशा दिखाने के लिए इसे सभी धर्मों एवं व्यक्तियों ने अपनाया है।
काव्य में राजा के पास निर्भिकता, उदारता, बुद्धिमता एवं स्फूर्तियुक्त उत्साह का जिक्र किया गया है। राजदूत के लिए बताया गया है कि उसमें वाक शक्ति अर्थात वाणी पर नियंत्रण, सविवेक, प्रेम एवं बुद्धिमान होने के गुण होने आवश्यक हैं। साथ ही राजा एवं राजदूत में समान व्यवहार की महत्ता भी इसमें बताई गई है। इसी प्रकार से पूरा नीतिकाव्य धर्म, अर्थ एवं काम के विषयों पर विशेषज्ञता उपलब्ध करवाता है।
भारतीय विदेश नीति तिरुक्कुरल के सिद्धांतों से प्रभावित नजर आती है तो इसलिए कि यह सिद्धांत सदियों पहले ही भारतीय विचारों में शामिल कर लिए गए थे। भारतीय ज्ञान दर्शन की अन्य पुस्तकें चाहे वो कौटिल्य का अर्थशास्त्र हो या वेदान्त की शिक्षाएं सभी तिरुक्कुरल की भांति राजनीति एवं नीतिशास्त्र पर गहरी पकड़ रखती है। इस ज्ञान की उपयोगिता का महत्व बहुत पहले ही पता चलने के कारण औपनिवेशिक काल से ही तिरुक्कुरल का अनुवाद लैटिन से लेकर कई भाषाओं में होता आया है। शासन के नियम समझाने में तिरुक्कुरल का वर्तमान में उपयोग ही इसके प्रसार का कारण है। वैश्विक मंच पर तिरुक्कुरल को कई देशों ने न सिर्फ अपनाया है बल्कि भारतीय धरोहर होने के कारण यह भारतीय वैचारिक दर्शन का प्रसार भी कर रहा है।
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तिरुक्कुरल के ज्ञान की तुलना अक्सर सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, कन्फ्यूशियस, रूसो और उनके जैसे सभी समय के महानतम दार्शनिकों से की गई है। हालांकि तिरुक्कुरल की समयावधि इनसे पूर्व की मानी जाती है। नीतिकाव्य का सर्वोच्च साहित्यिक कार्य दुनिया भर के विभिन्न दार्शनिकों, लेखकों और विद्वानों को प्रेरित करता आया है।
सुब्रमण्यम भारती, पांडुरंग सदाशिव साने, डॉ. जाकिर हुसैन, के.एम. मुंशी, श्री अरबिंदो, सी. राजगोपालाचारी और यहां तक कि एमके गांधी ने भी इसके दर्शन को उच्चतम श्रेणी में रखा है। गांधी द्वारा इसे “नैतिक जीवन पर अपरिहार्य अधिकार की एक पाठ्यपुस्तक” कहा गया है। उनका मानना था कि वल्लुवर के सूक्तियों में उनकी आत्मा को छुआ और यह कि तिरुवल्लुर जैसा ज्ञान का खजाना देने वाला कोई नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी तमिल भाषा एवं इसके साहित्य की चर्चा समय-समय पर अनेक मंचों पर की गई है।
वैश्विक मंचों, राजनीतिक संभाषणों में जिस वैश्विक बंधुता एवं मित्रता की बातें कि जाती हैं वो हजारों वर्ष पुराने तिरुक्कुरल में मिल जाती हैं। सरल सी बात है, बात जब ज्ञान की हो तो भारत को बाहर देखने की आवश्यकता नहीं रहती। ज्ञान का सूरज देखने के लिए आज विश्व भारत की ओर देख रहा है। सदियों पुराने ग्रंथ और साहित्य शासन एवं प्रशासन के लिए वृहद जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं। तिरुक्कुरल ने सदियों से ज्ञान प्रसार की लंबी यात्रा तय की है। पापुआ न्यू गिनी में नीतिकाव्य का जिक्र इसकी शुरुआत नहीं यात्रा का नया पड़ाव है।
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