2 अक्टूबर, 2014 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफाई के लिए झाड़ू उठाया तो पूरा देश एकजुट होकर स्वच्छता अभियान में जुट गया।
कोरोना महामारी के बीच कोरोना वॉरियर्स का हौसला बढ़ाने के लिए पीएम मोदी ने ताली-थाली बजाना और दीपक जलाने की बात की तो इस कार्य में भी पूरे देश उनके साथ दिखा।
जनता से सीधे जुड़ने की यही कला उन्हें अन्य नेताओं से एक कदम अलग, पंक्ति में सबसे आगे खड़ा करती है। ऐसा ही कुछ देखा गया भारतीय रेडियो प्रसारण के मामले में।
शुरूआती दौर में रेडियो सामान्य दिनचर्या का एक हिस्सा बना हुआ रहता था, वहीं देश और दुनिया से जोड़े रखने का भी यही एक माध्यम था। मोबाइल का दौर आया और रेडियो बाजार से गायब हो गए। हालाँकि संचार की इस दौड़ में बने रहने के लिए रेडियो बन गए अब मोबाइल रेडियो।
लेकिन इस मोबाइल रेडियो में बड़ा बदलाव देखा गया वर्ष 2014 के बाद। जब 3 अक्टूबर, 2014 को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू किया कार्यक्रम ‘मन की बात’।
कार्यक्रम की सफलता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब कुल 96 एपिसोड प्रसारित किए जा चुके हैं।
इस कार्यक्रम की शुरुआत करने का मकसद भारत में एक बार फिर लोगों का ध्यान रेडियो की ओर लाना तो था ही साथ ही जनता से रेडियो के ज़रिए संवाद कर जनता के मुद्दों पर बातचीत करना भी था। इसका असर यह हुआ कि जहाँ जनता पहले तक ख़ास मौकों पर ही रेडियो सुना करती थी वही नरेंद्र मोदी के मन की बात के शुरू होने के बाद तक भी जनता इस कार्यक्रम से जुडी हुई है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि एक RTI के द्वारा यह खुलासा हुआ है।
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए प्रोग्राम मन की बात से जुड़ी RTI से यह खुलासा हुआ है। इस RTI में मन की बात कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार पर कुल खर्च और कमाई का ब्योरा प्राप्त हुआ है। यह RTI एक्टिविस्ट विवेक पांडेय द्वारा लगाई गई है।
इस RTI से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार मन की बात कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार पर जितना खर्चा आया उससे कई अधिक इस कार्यक्रम से कमाई हुई है।
‘सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ कम्युनिकेशन’ से विवेक पांडेय को मन की बात के प्रचार और विज्ञापन पर कुल खर्च के बारे में RTI पर जानकारी मिली है।
विवेक पांडेय ने यह जानकारी शेयर करते हुए बताया कि – साल 2018 और 2021 के बीच मन की बात कार्यक्रम की घटती कमाई की मीडिया रिपोर्ट को देखने के बाद उन्होंने आरटीआई दायर की थी। वह इस रिपोर्ट की स्पष्ट जानकारी चाहते थे।
“यह स्पष्ट था कि कोविड -19 स्थिति उत्पन्न होने के बाद कार्यक्रम का राजस्व गिर गया था, लेकिन अब आरटीआई के जवाब से पता चला है कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए किसी भी तरह का खर्च नहीं किया गया।
वर्ष 2017-18 के बाद से नॉन-डिस्प्ले प्रोमोशन पर कुछ मामूली खर्चे हुए थे लेकिन ‘मन की बात’ के प्रदर्शन विज्ञापनों पर कोई खर्च नहीं हुआ है।
यानी मन की बात के प्रसारण शुरू होने के बाद से अब तक राजस्व में ₹33.16 करोड़ कमाए गए हैं जबकि प्रचार पर केवल ₹7.29 करोड़ खर्च किए गए थे। और उक्त राशि में से केवल ₹5.88 करोड़ प्रिंट में डिस्प्ले विज्ञापन पर खर्च किए गए।
इस खर्च का बड़ा हिस्सा कार्यक्रम के पहले साल में किया गया था। जिसके बाद अधिकारियों को प्रधानमंत्री से कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार पर खर्च नहीं करने का निर्देश मिला था।
वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक और RTI रिपोर्ट सामने आई है। यह RTI रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चिकित्सा उपचार, स्वास्थ्य जांच और चिकित्सा सुविधाओं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी फिटनेस और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी जाने जाते हैं। इसी को देखते हुए RTI ने उनकी मेडिकल रिपोर्ट्स का खुलासा किया है।
जिसकी जानकारी पुणे के RTI कार्यकर्ता प्रफुल्ल शारदा ने दी है।
रिपोर्ट द्वारा यह खुलासा किया गया है कि प्रधानमंत्री अपनी मेडिकल देखभाल के लिए खुद भुगतान करते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि केंद्रीय मंत्री और सांसद सदस्य चिकित्सा देखभाल सहित कई लाभों के हकदार हैं लेकिन प्रधानमंत्री अपने चिकित्सा खर्चों का भुगतान खुद ही करते है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के सचिव बिनोद बिहारी सिंह के अनुसार सरकारी बजट का एक रुपया भी प्रधानमंत्री के निजी इलाज पर खर्च नहीं होता है।
PMO ने आगे स्पष्ट किया कि 2014 से अब तक भारत और विदेश में प्रधानमंत्री की चिकित्सा देखभाल पर कोई खर्च नहीं किया गया है।
इस पर कार्यकर्ता प्रफुल्ल शारदा का कहना है कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल PMO के किसी भी निजी काम के लिए नहीं किया जा रहा है। इससे शासन में हमारा विश्वास बढ़ा है। सांसदों और विधायकों को भी अपने निजी चिकित्सा खर्च को वहन का पालन खुद ही करना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिट इंडिया अभियान के माध्यम से न केवल एक मजबूत संदेश दिया बल्कि वह खुद एक उदाहरण पेश कर 135 करोड़ भारतीयों को फिट रहने के लिए प्रेरित करते ही रहते हैं।”
आज विश्व भर में प्रधानमंत्री की जो छवि है उसे उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। लेकिन इन्हीं में से कई ऐसे है जो प्रधानमंत्री की छवि को बिगाड़ने में कोई कसार नहीं छोड़ते।
RTI रिपोर्ट्स द्वारा यह साफ़ है की प्रधानमंत्री मोदी सरकारी सुविधाएं ना लेकर खुद ही अपने खर्च उठाते हैं लेकिन कुछ समय पहले प्रधानमंत्री के खाने के खर्च को लेकर एक RTI रिपोर्ट्स सामने आई थी। हालाँकि, यह दावा बाद में झूठा साबित हुआ था।
क्या था पूरा मामला विस्तार से जानते हैं।
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ा एक दावा किया जा रहा था जिसमें यह कहा गया कि पीएम मोदी ने अपने सात साल के कार्यकाल में खाने पर कुल 100 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। दावे के मुताबिक इसकी जानकारी RTI द्वारा मिली और यह भी जानकारी दी गई कि इस्तेमाल किया गया पैसा सरकारी खजाने से है।
अब जहाँ एक तरफ प्रधानमंत्री के मेडिकल से जुड़े RTI रिपोर्ट्स सामने आ रहे थे वही इस वायरल दावे ने शक पैदा कर दिया।
जिसके बाद प्रधानमंत्री से जुड़े हमने कुछ और RTI रिपोर्ट्स खंगालने की कोशिश की और हमें पीएम की आधिकारिक वेबसाइट पर एक रिपोर्ट मिली जो साल 2015 की है जिसमें पीएम मोदी के रसोई खर्च से जुड़े सवाल पूछे गए थे।
RTI रिपोर्ट में इसके जवाब में बताया गया कि प्रधानमंत्री रसोई का खर्च खुद ही उठाते हैं। उनके लिए खरीदे गए किराने के सामान पर खर्च उनके निजी खर्च के दायरे में आता है ना कि भारत सरकार के खर्च के दायरे में और यह सरकारी खाते में दर्ज नहीं है।
2015 की इस RTI रिपोर्ट में दिए गए पीएम मोदी को लेकर उनके खर्चे पर जवाब से यह तय है कि उनको लेकर चल रहा यह दावा बेबुनियाद है और यह भी साफ़ है कि प्रधानमंत्री अपने निजी खर्च खुद ही उठाते हैं।