प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन देशों की यात्रा पूर्ण कर देश वापस लौट आए हैं। 5 दिवसीय यात्रा में प्रधानमंत्री ने 40 से अधिक बैठकों में हिस्सा लिया। साथ ही 20 से अधिक देशों के नेताओं से मुलाकात कर मैत्री एवं व्यापारिक संबंधों को मजबूत भी किया। 5 दिनों में 3 देश और क्वाड, जी-7 से लेकर द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की ऊर्जा की प्रशंसा की जा रही है। यात्रा के दौरान उनकी लोकप्रियता जगह जगह देखी गई और उनके सम्मान की चर्चा पूरे विश्वभर में हो रही है। यह कहने वाली बात नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी भारत के प्रतिनिधि के रूप में थे तो यह सभी मंच मोदी ही नहीं भारत की लोकप्रियता के साक्षी बन रहे थे।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी का ऑटोग्राफ मांगना, ऑस्ट्रेलिया में 90 हजार लोगों के सामने ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें बॉस बताना बेहद रोचक रहा। इस यात्रा में महत्वपूर्व दौरा साउथ एशियाई देश पापुआ न्यू गिनी का भी रहा। जहां प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल साहित्य के तिरुक्कुरल को स्थानीय भाषा में जारी करने के साथ ही कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की। यहां के प्रधानमंत्री से मिला सम्मान तो अतुलनीय था ही साथ ही इन देशों की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी को साउथ एशिया का नेतृत्वकर्ता बताया गया।
भू-राजनीति की घटनाओं पर गहनता से नजर रखने वाले विशेषज्ञों के लिए यह 5 दिन व्यस्तता भरे रहे। अपनी तीन देशों की यात्राओं में प्रधानमंत्री मोदी ने कई महत्वपूर्ण समझौते एवं नए संबंधों की नींव रखी है। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि जल्द ही प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका की स्टेट हेड के तौर पर यात्रा करने वाले हैं। जापान में उनके दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बाईडेन ने कहा कि मुझे आपके कार्यक्रमों के लिए लोगों के लगातार अनुरोध मिल रहे हैं जिन्हें संभालना मेरे लिए चुनौती बन गया है।
जाहिर है अमेरिका में इंडियन डायस्पोरा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उनमें प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता भी अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए महत्वपूर्ण ही रहेगी। यही कारण है कि उन्होंने अमेरिका में प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों में उपस्थिति रहने की इच्छा जताई है।
देश वापस लौटने के साथ ही प्रधानमंत्री की यात्रा के रूझान भी आने लगे हैं। युक्रेन-रूस के मुद्दे पर भारत के पक्ष पर ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने कहा है कि भारत अपनी विदेश नीति तय करने के लिए स्वतंत्र है। इन सभी घटनाओं के बीच जिनकी बात की जानी चाहिए वो है भारतीय विपक्ष जो एकबार फिर अपनी नकारात्मकता को लेकर चर्चा में है।
देश में चुनावी माहौल है। चर्चा चलती रहती है, विषय बदलते रहते हैं। देखने वाली बात यह है कि विपक्ष लगातार नकारात्मक रवैए के कारण चर्चा में रहता है। विदेश यात्रा में देश के प्रधानमंत्री को मिला सम्मान उन्हें राजनीतिक विषय लगता है। भारत अगर भू-राजनीति का अहम अंग बन रहा है तो यह इसलिए मंजूर नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी इसका नेतृत्व कर रहे हैं। पापुआ न्यू गिनी द्वारा भारत को ग्लोबल साउथ का लीडर बताने पर चीन को चिंता होनी चाहिए थी। विडंबना यह है कि यह काम देश में विपक्ष कर रहा है।
हाल ही में सामने आए देश हित के विषयों पर विपक्ष ने संगठित रूप से नकारात्मकता का उदाहरण पेश किया है। आतंरिक विषयों तक इसे चुनावी जरूरत कहकर टाला जा सकता है पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और भारतीय प्रधानमंत्री को मिली पहचान विपक्ष के लिए अपमान क्यों बन रही है इसका उत्तर भी विपक्ष को संगठित रूप से देना चाहिए।
एक अनुमान इसमें यह हो सकता है कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों, रैंकिग संस्थाओं और सोरोस प्रायोजित संगठनों द्वारा जोर लगाने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ग्लोबल लीडर के रूप में सामने आए हैं। जी-7 का सदस्य न होने के बाद भी भारत को इसमें आमंत्रित किया जाता है। रूस-यूक्रेन विवाद को सुलझाने में भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सभी घटनाओं के बीच विदेश में जो ‘मोदीमय’ वातावरण देखने को मिला है उससे विपक्ष का घबराना स्वभाविक था।
भारतीय लोकतंत्र की अच्छी तस्वीर यह है कि विपक्ष हमेशा अति-सक्रिय रहता है। साथ ही समस्या भी यही है कि विपक्ष हमेशा नकारात्मक रूप से अति-सक्रिय रहता है। प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरे को देश के लाभ के लिए न देख पाना उनके चुनावी एजेंडा को नुकसान पहुँचाता है। चुनावी योजनाओं, विकास एवं रणनीतियों के विरोध को ही चुनावी एजेंडा समझने की समस्या यही है कि यह विकासवादी राजनीति का हिस्सा बनने से रोके रखता है।
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