फ़्रांसीसी दार्शनिक वोल्तेयर का कहना था कि ‘जो कुछ तुम कह रहे हो वह सही नहीं है, ये मैं जानता हूँ। लेकिन तुम्हारे कुछ भी कह पाने के अधिकार का संरक्षण मैं अंतिम समय तक अवश्य करूँगा।’
नया संसद भवन ही नहीं बल्कि अनुच्छेद 370, नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, कोविड लॉकडाउन, जन-धन अकाउंट, ग़रीबों को घर, हर घर जल, हर घर शौचालय, आदि आदि.. कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की राय नहीं ली। उस विपक्ष की राय पर आज बहस के लिए मान्यता माँगी जा रही है, जिसके इतने वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी इन पर चर्चा तक आवश्यक नहीं समझी गई।
लोकतंत्र के मूल में व्यापक लोकहित छिपा होता है। जिस कार्य में व्यापक लोकहित छिपा हो उसे विलंबित करना किस प्रकार से लोकतंत्र की रक्षा हो सकता है? लोकतंत्र में व्यापक हितों का संरक्षण और त्वरित अनुपालन ही राजधर्म भी होता है। त्वरित निर्णयों के लिए आवश्यक होता है अनावश्यक बहस को नज़रअन्दाज़ कर वो आवश्यक फ़ैसले समय पर ले लेना, जिन्हें ‘टू मच डेमोक्रेसी’ निगल जाने के लिए उतावली रहती है।
यूँ ही नहीं यह विपक्ष आज सिर्फ़ जनमत के प्रति अविश्वास का दस्तावेज बनकर रह गया है। क्या हर गरीब को घर, हर घर को शौचालय और जल की उपलब्धि के लिए देश को इतने वर्ष का इंतज़ार आवश्यक था? लेकिन विपक्ष पूरी बेशर्मी से आज कहता है कि उनकी तो राय ही नहीं ली जा रही।
उपनिवेश के ऐतिहासिक घावों के बीच आज वीर सावरकर का जन्मदिवस है। साभ्यतिक वर्चस्व की बहस के मध्य आज ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को नया संसद भवन दे रहे हैं। संसद भवन की दीवारें ऊर्जस्वित संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से गूंज रही हैं। भित्तियों के चित्र सोलह महाजनपदों का एकीकरण करने वाले कौटिल्य, उत्तरापथ से लेकर पांड्य एवं चोल की सीमाएँ दिखा रहा है।
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चाणक्य और वीर सावरकर के विचारों में महीन समानता यह थी कि दोनों ही भारत के एकीकरण को इसके सांस्कृतिक उन्नयन के लिए बेहद आवश्यक मानते थे। दोनों ही आज के दिन चर्चा में हैं। दोनों ही आज फिर प्रासंगिक हैं। इन दोनों के ही अस्तित्व को नकारने के लिए मेधावी बौद्धिकों ने अपने कई वर्ष बर्बाद कर दिए, पूरी ऊर्जा लाग दी और सवाल वही, कि ऐसा कर के उनके हाथ क्या आया?
यह सब इसी देश में हो रहा है। संस्कृति एवं भावनाओं का यह गौरवगान उस पूरे विपक्ष के लिए तुषारापात नहीं तो क्या है जो सत्ता में रहने के बाद भी आज ‘इंडिया’ बनाम ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ को अपना राजनीतिक दर्शन मानता है।
पूरा देश आज लोकतंत्र के त्योहार का हिस्सा है। जो नहीं हैं वो अपना विरोध दर्ज कर प्रकारांतर से भी इसका हिस्सा हैं। वो विरोध कर सकें, यही उनके हिस्से आया है। इसका हिस्सा आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी भी हैं जिन्होंने इसे ‘वॉकिंग स्टिक’ नाम दे कर पवित्र धर्मदंड सेंगोल की स्थापना के लिए प्रधानमंत्री मोदी को अवसर दिया।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम विरोध के बाद आज तमिल संस्कृति को उत्तर भारत और देश की सांसद के बीचों बीच रख दिया है।
“मुझे नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भाग लेकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। पीएम मोदी हमेशा तमिल संस्कृति और तमिल लोगों के साथ गर्व से खड़े रहे हैं। मोदी जी पहले पीएम हैं जिन्होंने तमिल अधीनम को आमंत्रित किया और संसद में तमिल संस्कृति को गर्व से प्रोत्साहित किया”, ये मदुरै अधीनम के 293वें प्रधान पुजारी, श्री हरिहर देसिका स्वामीगल के शब्द हैं।
आज का दिन विशेष है। आज ही वीर सावरकर को नकारने, उन्हें अपमानित करने वालों की छाती पर चढ़कर उन्हें याद दिलाया है कि यह ऐतिहासिक दिन उस वीर को दिए गए घावों की कुछ हद तक हो पाने वाली भरपाई है। उधर अयोध्या से श्रीराम मंदिर निर्माण की तस्वीरें भी सामने आ रही हैं। एक बार फिर एक व्यक्ति ने भारत के एकीकरण के लिए कुछ निर्णय लिए हैं। संसद का महज़ तीन वर्ष में तैयार हो जाने वाला स्वरूप उसी फ़ैसले का परिणाम है। यह भी कहा जा रहा है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से विभिन्न मंत्रालय के दफ़्तरों पर सालभर में खर्च होने वाले क़रीब 1000 करोड़ रुपए की भी बचत होने जा रही है।
उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम आज एकसाथ है। सनातन आज राजनीति और धर्म के वेन डायग्राम पर उभर आया है। उपनिवेश से आजादी के लिए इस तरह की लकीरें खींच लेना ख़ुद को लोकतंत्र का प्रधान सेवक कहने वाले से बेहतर कौन जानता होगा?