कांग्रेस के ज़माने का भारत विचित्र था। उन दिनों संविधान हो या कोई संवैधानिक संस्था, नीति निर्धारक हो या राजनीतिक विशेषज्ञ, आलोचक हो या समालोचक, नेता हो या अभिनेता, पत्रकार हो या स्तंभकार, लगभग सबकी सोच में ये बात घर कर गई थी कि देश में हिंदू हित की बात करने का मतलब देश पर कुठाराघात ही नहीं बल्कि इसका सीधा मतलब अपने पेट पर लात मारना भी होगा।
कांग्रेस के राहुल गांधी हों, दोयम दर्जे के अन्य कांग्रेसी हों या फिर इनके पुछल्ले पत्रकार, कितनी भी बड़ी डींगें हांक लें पर सच्चाई यह है कि जब देश पर इनके दादा, दादी , बाप और माँ का शासन था तो भारत भूमि में हर ओर दूध की नदियाँ बिलकुल नहीं बहती थीं, लोग आपस में खुश और संपन्न भी नहीं थे और देश घिसट-घिसट कर रेंगने की आदत लगभग डाल चुका था। भ्रष्टाचार और भाई- भतीजावाद चरम पर था तथा सेनाओं का मनोबल निम्न स्तर पर था। देश शनैःशनैः गर्त में जा रहा था और इस बात का एहसास शून्य था!
६७ साल लगे देश को यह समझने में कि देश में हिंदू होना एक अभिशाप बना दिया गया था। देश के जनमानस की धीरे-धीरे बदल रही सोच ने २०१४ में पूरी तरह से करवट बदली। जनता को जैसे ही यह एहसास स्वयं हुआ तो सब कुछ समझते ही उसने देश की बागडोर नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी।
ऐसा प्रतीत होता है कि देश की उस समझ को बदलने में जिस विचार ने एक चिंगारी का काम किया वो शायद अस्सी के दशक में किसी दिन किसी ओजस्वी वक्ता ने एक पंक्ति के रूप में लोगों के बीच फेंका होगा – ‘जो हिंदू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा’- वह विचार था। किसने लिखा या फिर ये पंक्ति सबसे पहले किसने बोली?, ये हम, हमारे समाज की प्रलेखन (डॉक्यूमेंटेशन) ना रखने की हज़ारों साल पुरानी बीमारी के चलते शायद ही कभी जान पायें।
पर यह देखना भी दिलचस्प है कि उस एक कथन से उत्पन्न हुई वो अस्सी के दशक की चिंगारी, एक दावानल बन कांग्रेस और उसकी छद्म धर्मनिरपेक्षता को इस तरह से लील जाएगी, यह किसी ने भी उस समय न सोचा होगा।
आज हम चारों तरफ़ देखें तो पाते हैं कि हमारे आसपास का आज का भारत भी वही भारत है, जहां कभी मंत्री-संतरी निज को हिंदू धर्म से जुड़ा ना दिखने देने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देते थे। ठीक इसके इतर, आज के भारत में देश का प्रधानमंत्री खुले में, पूरे सम्मान और गर्व के साथ गंगा स्नान कर, माथे पर त्रिपुंड लगा, हाथों में रुद्राक्ष लिए, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच, रुद्राभिषेक करने में अपनी शान समझता है। वह ग़रीबी में तो जिया पर आज वह सपने एक सौ चालीस करोड़ जनसंख्या वाले देश को एक अमीर राष्ट्र बनाने के देखता है, और उसके लिए जुटा हुआ भी है। उसने ग़रीबों को आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने के लिए आवश्यक हर वह चीज देने की चेष्टा कर रहा है जो कभी गरीबों के लिए एक सपना मात्र थी।
उसकी अगली बात जो मैं लिखने जा रहा हूँ, वह बात शायद कई लोगों को बहुत छोटी लगे, लेकिन है असल में बहुत बड़ी बात और वह बात ये है कि नरेंद्र मोदी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो देश में ग़रीबी का दंश झेल रही बहिनों को उनके मासिक धर्म के दौरान सेनेटरी पैड का प्रयोग न कर पाने के दु:ख को दूर करने की ज़रूरत को भी लाल क़िले की प्राचीर से निःसंकोच व्यक्त कर देता है। वह ये तो नहीं बोलता कि उसने सबके लिए सब कुछ कर दिया लेकिन वो यह ज़रूर बोलता है कि समय के साथ वो सबके लिए हर आवश्यक चीज मुहैया करा देगा। इसके साथ ही हिंदू समाज की सदियों से चली आ रही सभी समस्याओं को वो एक एक-कर दूर करता जा रहा है।
यहाँ यह कह देना भी आवश्यक होगा कि नरेंद्र मोदी ने उस कांग्रेसी आइडियोलॉजी, जिसने हिंदू हितों की बलि चढ़ा दी थी, का लगभग पटाक्षेप कर दिया है। इसके साथ-साथ उसने भारत की महान सनातन संस्कृति को भारत राष्ट्र के स्मृति पटल से निकाल कर, उसे इस देश की सभ्यता, राष्ट्रनीति और राजनीति की एकमात्र धुरी बना, उसको राष्ट्र के केंद्र में स्थापित कर दिया है।
इस कथन का सबसे बढ़िया साक्ष्य यह है कि अब इसी एहसास के चलते वो कांग्रेस, जो कभी एक ख़ास परिवार के पोषण के लिए हर नीति और रीति को निभाती आ रही थी, आज दबी सहमी ज़ुबान में हिंदुओं के हितों के प्रति सजगता दिखाने का ढोंग करने के लिए छटपटा हुई सी प्रतीत हो रही है। आज गांधी परिवार के सदस्य मंदिरों के चक्कर ही नहीं काट रहे अपितु अपना जनेऊ भी ढूँढ रहे हैं। वडनगर के गरीब परिवार में पैदा हुआ नरेंद्र आज महलों की आदत और महलों से राजनीति करने वालों को चौराहे और सड़क की राजनीति करने पर मज़बूर कर चुका है।
आज जो प्रश्न, राष्ट्र और उसके समाज के सामने खड़ा है वह यह उत्तर जानने को उत्सुक है कि क्या भारत का समाज, हिंदू हित और सनातन संस्कृति को देश के केंद्रीय धुरी बनाने वाले मोदी के साथ रहता रहेगा? या फिर मोदी जैसे होने का ढोंग कर रही ढोंगी कांग्रेस और उसकी नीति- रीति और भारत को फिर से नोचने और खरोंचने का सपना संजो रही उस पार्टी की इतालवी कर्ता-धर्ता एवं उसकी उतनी ही दुष्ट संतति के साथ?
चूँकि मैं भारत के भविष्य को लेकर आश्वस्त हूँ सो मुझे तो इसका उत्तर बखूबी पता है।
ख़ैर, बात अस्सी के दशक के एक वाक्य की हो रही थी। वह वाक्य जिसका उत्तर इस देश की जनता ने २०१४ में नरेंद्र मोदी के रूप में दिया। ये उस बदलाव का ही नतीजा है कि आज वो एक वाक्य – ‘जो हिंदू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा’- ना सिर्फ़ लुटियंस के हर गुलाबी धौलपुर पत्थर पर स्वर्णिम अक्षरों पर अंकित हो चुका है बल्कि देश के सामूहिक मानस पटल पर भी काफ़ी नीचे तक उकेरा जा चुका है। अब ये मिटता दिख भी नहीं रहा!
अस्सी के दशक में धर्म संसद रूपी मंथन से निकला अमृत भारत की सनातन संस्कृति का पोषण करता सा प्रतीत हो रहा है। अस्सी के दशक में निकला अश्वमेध यज्ञ का अश्व आज भगवा पताका से सुसज्जित रथ के साथ देश के हर कोने में दौड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर आप नहीं देख पा रहे तो खोट आपकी नज़र में है, गतिमान रथ में नहीं!
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