‘प्रधानमंत्री मोदी अगले वर्ष से लाल किले से ध्वजारोहण नहीं कर पाएंगे’। यह कहना है ममता बनर्जी का, लालू प्रसाद यादव का, मल्लिकार्जुन खड़गे और सौरव भारद्वाज का, या कहें कि I.N.D.I. अलायंस का। ऐसी ही भविष्यवाणी 2019 में भी हो चुकी है और अब चुनाव नजदीक हैं तो 2024 के लिए भी होनी ही थी। समस्या बस इतनी है कि यह सत्ता परिवर्तन की चुनौती की जगह व्यक्तिगत कुंठा से भरी चेतावनी अधिक प्रतीत होती है।
ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों के नेताओं को सरकार के कामकाज से अधिक समस्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से ध्वजारोहण को लेकर है। क्या यही कारण है कि कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए?
कांग्रेस की लाल किले पर अनुपस्थिति पर उठे प्रश्नों पर पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने तो यहां तक कह दिया कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के कारण खड़गे जी को कांग्रेस हेडक्वार्टर पहुँचने में देर हो गई। इसे एनटाइटलमेंट की नई पराकाष्ठा समझा जाना चाहिए। जिसे सभी भ्रम मानकर कांग्रेस और इसके समर्थकों को निशाने पर लेते हैं, वो इनके लिए वास्तविकता से भी अधिक बड़ी सच्चाई है।
लगता है जैसे कांग्रेसी यह मानकर चलते हैं कि आजादी तो कांग्रेस की व्यक्तिगत संपत्ति है। कांग्रेस सरकार का हिस्सा न बन पाए तो राष्ट्रीय कार्यक्रमों का बहिष्कार करना ही इनका स्वघोषित लोकतंत्र है। अब चाहे यह नए संसद भवन का उद्घाटन हो या स्वतंत्रता दिवस का जश्न, कांग्रेसी दंभ यह मानकर चलता है कि लोकतंत्र, आजादी, प्रधानमंत्री का पद और न्याय सिर्फ उनके लिए बने हैं।
देश में हर 5 वर्ष में चुनाव होते ही हैं। सत्ता और विपक्ष दोनों जनता के समक्ष उपस्थित भी होते हैं। 2024 में चुनावों में विपक्ष क्या यह मुद्दे रखने वाला है कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी को लालक़िले पर ध्वजारोहण करते हुए नहीं देखना? या वह यह घोषणा करेंगे कि ऐसे कार्यक्रम की सार्थकता तब ही संभव है जब वह किसी कांग्रेसी के हाथ से हो?
पारिवारिक दंभ से निकली इस राजनीति के चलते ही एक पूर्व प्रधानमंत्री ने देश की विपक्षी पार्टी का ‘हम दो,हमारे दो’ के नारे के साथ मजाक बनाया था और पूरा सदन हंस रहा था। आज उसी प्रधानमंत्री की पार्टी का कद देश में इस कदर सिमट गया है सत्ता वापसी के लिए देशभर में एक सीट पाने वाली पार्टी का सहयोग लेने के लिए विवश होना पड़ा है। यह भी सच्चाई है कि सदन में गैर-कांग्रेसी पार्टियों का मखौल बनाने वाले आज गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री को ध्वजारोहण करते हुए स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
दंभ की राजनीति और आमजन के मखौल से निकलकर विपक्ष को अपने दृष्टिकोण का विस्तार करने की आवश्यकता है। आजादी को 75 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है। यह समय है कि पारिवारिक घमंड को छोड़ ये राजनीतिक दल देश के अंतिम व्यक्ति का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों और पदों पर सम्मान करने के लिए तैयार रहे।
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