प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राजकीय दौरे पर अमेरिका पहुँच चुके हैं। जहां भू-राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ इस दौरे का आकलन कर रहे हैं वहीं इस दौरान एंटी इंडिया लॉबी का सक्रिय होना भी स्वाभाविक है। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने हर्ष और उल्लास के साथ ट्वीट करके जानकारी दी कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के उपलक्ष में ही 75 अमेरिकी सीनेटर और कांग्रेस के सदस्यों द्वारा एक पत्र लिखा गया है जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से धार्मिक असहिष्णुता, प्रेस की स्वतंत्रता, इंटरनेट पहुंच और नागरिक समाज समूहों को निशाना बनाने जैसे विषयों पर पीएम मोदी के साथ चर्चा करने की बात कही गई है। यह पत्र सीनेटर क्रिस वान होलेन और प्रतिनिधि प्रमिला जयपाल द्वारा जारी किया गया है जो कि भारत विरोधी एजेंडे के लिए जाने जाते हैं। भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का बीड़ा इन्होंने अमेरिका से उठाया हुआ है।
प्रमिला जयपाल वही हैं जिन्होंने अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगे प्रतिबंधों के खिलाफ अमेरिकी संसद में प्रस्ताव पेश किया था। इसके अलावा भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल, इल्हान उमर और कई एंटी-हिंदू और भारत विरोधी व्यक्तियों द्वारा मानवाधिकारों के नाम पर प्रोपगेंडा चलाया जा रहा है। हाल ही में भारत की प्रभावी विदेश नीति और भू-राजनीति में बढ़े कदम से कई बुद्धिजीवियों का भारत विरोधी चेहरा सामने आना स्वाभाविक था। अमेरिका में रह रहे कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भारत विरोधी मानसिकता भी इससे अलग नहीं है। विरोध के इस घोषित और अघोषित एजेंडे में फंडिग से लेकर धर्म परिवर्तन और राजनीतिक लाभ से जुड़े कई कारण शामिल हैं।
हालांकि इस मामले में कांग्रेस के प्रवक्ता द्वारा भारत विरोधी व्यक्तियों का समर्थन करना राजनीतिक के अलग निचले स्तर को दर्शा रहा है। वैसे यह इसमें कुछ भी नया नहीं है। कांग्रेस ने आज कल भारत में लोकतंत्र की गुणवत्ता के परीक्षण का काम ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के विरोध का काम भी विदेशियों को सौंप रखा है। एक समय था जब वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्हें वीज़ा न दिए जाने की अपील अमेरिका की सरकार से भारत के नेता, सांसद और बुद्धिजीवी करते थे। अब शायद इन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री को वीजा न दिये जाने की अपील भारत से करना सही नहीं है, इसलिए विदेशी ताक़तों की मदद लेना स्वाभाविक है। अमेरिकी सीनेटर और अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधियों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का यह समर्थन दो ही संभावनाओं को जन्म दे रहा है कि या तो विपक्ष में रहकर कांग्रेस को हर बात का विरोध करने की आदत लग गई है या भारत विरोधी गैंग के समर्थन से कांग्रेस को कुछ लाभ की उम्मीद है। हाल ही में गठित राजनीतिक परिस्थितियों का आकलन करें तो दूसरा विकल्प सही प्रतीत हो रहा है।
शायद यही कारण है कि कांग्रेसी प्रवक्ता ने इन 75 अमेरिकी सीनेटरों का पत्र शेयर करते समय उसमें लिखी गई सामग्री को हाईलाइट किया है। कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि भारत में धार्मिक असहिष्णुता और प्रेस फ्रीडम पर खतरा है। अब इन बातों पर गौर करें तो अभी हाल ही में यही संदेश राहुल गांधी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान दिया था। जहां उन्होंने भारत में मुस्लिमों और दलितों पर खतरा, लोकतंत्र के खात्मे और प्रेस फ्रीडम की बात की थी। अमेरिका में सक्रिय भारत विरोधी संगठन और राहुल गांधी के बयानों की समानता आश्चर्यजनक है। यह समानता क्यों है? कांग्रेस इसके लिए जवाबदेह नहीं है क्योंकि वो विपक्ष में है और सरकार का विरोध करना उसका काम है।
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यह समानता तब और खतरनाक बन जाती है जब राहुल गांधी की विदेश यात्राओं में भारत विरोधी संगठनों का साथ सामने आता है। राहुल गांधी की यूके यात्रा के दौरान हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ‘जज बिज़नेस स्कूल’ के प्रो वाइस चांसलर और पाकिस्तानी कमल मुनीर के साथ मंच साझा किया था। वहीं अमेरिका की यात्रा के दौरान हुए कार्यक्रम में पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी और मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े मोर्चों का हाथ सामने आया था जिसमें उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी। वहीं भारत के अंदर धार्मिक मामलों पर घृणा और अमेरिका में झूठी जानकारियाँ फैलाने वाले संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने 16 अन्य संगठनों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रात्रिभोज का आमंत्रण न देने की अपील की गई है। दिलचस्प बात यह है कि राहुल गांधी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान इसी संगठन के व्यक्तियों के साथ बैठक की थी।
ऐसे में सुप्रिया श्रीनेत का सीनेटरों के पत्र के साथ सामने आना दर्शा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की स्टेट विजिट के पहले राहुल गांधी जो पेड़ लगाकर आए थे उससे कांग्रेस अब फल तोड़ने का काम कर रही है।
अमेरिका में रहकर नेताओं के लिए भारत में धार्मिक मामलों पर घृणा फैलाने के लिए झूठ बोलने वाले कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अपना नरैटिव है। वे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दमन का विरोध करते हैं। अल्पसंख्यक के आगे मुस्लिम इसलिए लगाया है क्योंकि इस्लामी देशों में हो रहे कट्टर प्रदर्शन और महिलाओं की स्थिति पर यह मौन रहते हैं। जाहिर है इस्लामी देश में मुस्लिमों पर अत्याचार बहुसंख्यकों का मुद्दा है और अमेरिका के एक्टिविस्ट अल्पसंख्यकों (इसमें इस्लामी देशों में बसे गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक शामिल नहीं है।) की आवाज उठाते हैं।
जहां तक भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति का सवाल है तो उसकी जमीनी हकीकत कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दावों से बिलकुल अलग है। यह एंटी इंडिया लॉबी धर्म विशेष को मुद्दा बनाकर भारत को लक्ष्य बनाए रखती है पर इसके लिए आंकड़े प्रस्तुत करने से कतराती है। भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति की सच्चाई को गैर-पक्षपाती अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर अपने 2018 के सर्वे सामने ला चुका है। सर्वे में भारत के 98% भारतीय मुसलमानों ने कहा कि वे भारत में अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। साथ ही सर्वे में जब भारत में रहने वाले मुसलमानों से सवाल किया गया था कि क्या उन्हें भारतीय होने पर गर्व है तो 90% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अत्यधिक गर्व महसूस कर रहे हैं, जबकि 4% ने कहा कि उन्हें मामूली गर्व है।
पर तथाकथित मानवाधिकार संगठन और दुनिया भर में लोकतंत्र के स्वघोषित अमेरिकी ठेकेदार इन आंकड़ों को बड़े आराम से सिरे से नकार देते हैं। यही कारण है कि इल्हान उमर ने कहा कि भारत में मुसलमान नरसंहार की कगार पर हैं। आश्चर्य की बात है कि नरसंहार के खतरे में कोई व्यक्ति सुरक्षित और गौरान्वित किस प्रकार महसूस कर सकता है? यही वास्तविकता है कि उमर सिर्फ एंटी इंडिया लॉबी का हिस्सा है और उनके दावे भारत की स्थिति को सही रूप में प्रदर्शित नहीं करते हैं। रिसर्च का निष्कर्ष भारत विरोधी कार्यकर्ताओं के राजनीतिक लाभ के लिए दिए गए इन बयानों को कमजोर कर रहा है जो भारत में मुसलमानों के संबंध में व्यापक भेदभाव का झूठ फैलाने में लगे हैं।
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हालांकि समस्या का विषय अमेरिका में बसे भारत विरोधी कार्यकर्ता नहीं बल्कि देश के राजनीतिक संगठन हैं जो अपने राजनीतिक विरोध में व्यक्तिगत कुंठा के निम्न स्तर तक पहुँच चुके हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंदी के विरोध के लिए देश विरोधी कार्यकर्ताओं का समर्थन कर रहे इन दलों से जवाब मांगा जाना चाहिए। आखिर कांग्रेस की प्रवक्ता को क्या आवश्यकता है कि वो भारत विरोधी कार्यकर्ताओं के लिए देश में प्रचारक का कार्य करें? क्या कांग्रेस के भारत विरोधी नरैटिव से यह बात मान लेनी चाहिए कि कांग्रेस और उसके नेताओं को भारतीय न्यायपालिका में आस्था नहीं है? आख़िर वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय हर बात पर नज़रें गड़ाये रखता है। क्या कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र के मृत्यु की जो घोषणा करती रहती है, उसमें सच में विश्वास करती है? यदि पार्टी और उसके नेताओं को लगता है कि देश की न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है तो वह अपने दावों के साथ तथ्य भी पेश करे।
भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के विरोध के लिए फेक नरैटिव चला रही कांग्रेस पार्टी से यह प्रश्न क्यों न पूछा जाये कि भारत विरोधी ताकतों का समर्थन करने के पीछे उसकी मंशा क्या है?
देश में उनको मंच प्रदान करने के लिए कांग्रेस को जरूर ही जवाब देना चाहिए कि क्या वो अब राजनीतिक घृणा में भारत विरोधी बन गई है?