प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के लिए उज्बेकिस्तान स्थित समरकंद में दो दिवसीय दौरे पर हैं। एससीओ की 22वीं बैठक में सभी आठ देशों के प्रमुख 15 और 16 सितम्बर को भाग लेंगे। कोविड-19 महामारी के बाद पहली बार यह बैठक प्रत्यक्ष रूप से हो रही है। इससे पहले आभासी रूप (Virtual) में यह बैठक हुई थी।
इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा चीनी प्रीमियर शी जिनपिंग और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी शामिल होंगे।
शंघाई सहयोग संगठन क्या है?
शंघाई सहयोग सगंठन (एससीओ) अंतर-सरकारी, अन्तरराष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन यूरेशियाई राजनीति, आर्थिक और सैन्य मामलों पर केन्द्रित है। इसका लक्ष्य सदस्य देशों के बीच शान्ति, सुरक्षा एवं स्थिरता बनाए रखना है।
जनसंख्या और भौगोलिक आधार पर यह दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है, जो यूरेशिया के तकरीबन 60 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करता है। यह संगठन दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी और 30 प्रतिशत से अधिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान देता है।
शंघाई सहयोग संगठन साल 2001 में बना, इसका मुख्यालय बीजिंग में है। भारत साल 2017 में एससीओ से जुड़ा था। वर्तमान में इस संगठन के सदस्य देशों में कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, रूस, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।
शंघाई सहयोग संगठन की संरचना
राष्ट्र प्रमुखों की परिषद: यह सबसे बड़ी निकाय है जो अन्य देशों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के साथ आंतरिक गतिविधियों के माध्यम से वार्तालाप कर अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करती है।
शासन प्रमुखों की परिषद: यह परिषद आर्थिक क्षेत्रों से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा कर निर्णय लेती है और संगठन के बजट को मंजूरी देती है।
विदेश मंत्रियों की परिषद: यह दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से सम्बन्धित मुद्दों पर विचार करती है।
क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (RATS): यह आतंकवाद, अलगाववाद, उग्रवाद और चरमपंथ से निपटने का काम करता है।
भारत और शंघाई सहयोग संगठन
भारत की भू-राजनीति, आर्थिकी और सुरक्षा के लिए यह संगठन महत्वपूर्ण है। खासतौर पर भारत और मध्य-एशियाई देश के सम्बन्धों को और मजबूती देने के लिए यह संगठन एक अवसर के रूप में भुनाया जा सकता है। भारत की ‘कनेक्ट मध्य एशिया पॉलिसी’ को यह संगठन अधिक बल प्रदान करने में सहायक हो सकता है, जिसके जरिए क्षेत्रीय-सहयोग, भू-राजनीति, आर्थिक और सामरिक मामलों से लाभ ही होगा।
भारत विगत कई दशकों से आतंकवाद और कट्टरपंथ की चुनौतियों से जूझ रहा है। पाकिस्तान प्रशस्त आतंकवादी आए दिन भारत में घुसपैठ करने की कोशिश करते रहते हैं और चीन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की मदद करता रहता है। आतंकवाद और कट्टरपंथ के जरिए भारत को अस्थिर करने की लगातार कोशिश होती रहती है। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन की क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है। यह संगठन आतंकी संगठनों, साइबर सुरक्षा और नशाले पदार्थों की तस्करी पर खुफिया जानकारी प्रदान करता है।
भारत-चीन सीमा पर चल रही तनातनी में हाल ही में कुछ कमी नजर आई है। भारत और चीन ने गोगरा-हाटस्प्रिंग इलाके के पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 से अपने-अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है। सेना वापसी का यह प्रकरण शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से पहले हुआ है। इसे भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार का संकेत माना जा सकता है।