मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि एक व्यक्ति जिसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया हो वह अपनी जाति साथ नहीं ले जा सकता है।
न्यायालय की मदुरै पीठ की ऑब्जर्वेशन उस समय आई जब एक हिन्दू व्यक्ति जिसने अपना धर्म परिवर्तन कर इस्लाम को अपनाया, वह अब जाति के आधार पर पिछड़े वर्ग को मिलने वाला आरक्षण भी माँग रहा था।
न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन की मदुरै पीठ तमिलनाडु लोक सेवा आयोग की कार्रवाई को चुनौती देने वाले एक उम्मीदवार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
दरअसल, तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने एक मुस्लिम व्यक्ति जो पहले हिन्दू (विमुक्त समुदाय, DNC) था, उसे सिविल सेवा परीक्षा में पिछड़े वर्ग में नहीं माना और व्यक्ति को सामान्य वर्ग की श्रेणी में रख दिया।
इस फैसले को चुनौती देने के लिए व्यक्ति ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। हालाँकि, न्यायालय ने इस याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि हिन्दू धर्म से इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद युवक को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने एस यासमीन केस का हवाला देते हुए कहा कि एक व्यक्ति धर्मांतरण के बाद भी अपने जन्म के समुदाय को आगे जारी नहीं रख सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि धर्मांतरण के बाद भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए या नहीं? यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में याचिकाकर्ता का आरक्षण पाने का दावा तर्कसंगत नहीं है इसलिए तमिलनाडु लोक सेवा आयोग का फैसला ही मान्य होगा।
क्या कहते हैं राज्य के नियम
मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार ने साल 2010, 2012, 2017 और 2019 के नोटिफिकेशन में यह निर्धारित किया था कि जो उम्मीदवार अन्य धर्म से इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं, उन्हें केवल ‘अन्य श्रेणी’ के रूप में माना जाएगा, उन्हें पिछड़े वर्ग में नहीं माना जाएगा।
क्या था मामला?
याचिकाकर्ता अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) हिन्दू समुदाय से था। जो साल 2008 में इस्लाम में परिवर्तित हो गया। साल 2018 में, याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु सिविल सेवा परीक्षा दी।
जब परिणाम सूची में नाम नहीं आया तो आरटीआई दायर की, जिसमें जानकारी मिली कि तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने उन्हें सामान्य श्रेणी के आवेदक के रूप में माना था, न कि पिछड़े वर्ग के मुस्लिम वर्ग से सम्बन्धित व्यक्ति के रूप में।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि उसने अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर अपनी पसन्द का धर्म अपनाया। मुसलमान बनने से पहले हिन्दू था और उसे एमबीसी का दर्जा प्राप्त था। जबकि तमिलनाडु सरकार कुछ मुस्लिम समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में मान्यता देती है।
वहीं, राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि तमिलनाडु सरकार सभी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग की श्रेणी से सम्बन्धित नहीं मानती है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं मामले
मद्रास हाईकोर्ट की यह टिप्पणी उस समय में आई है जब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लम्बित है जिसमें ईसाई और इस्लाम अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की माँग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र में भाजपा सरकार से इस विषय पर ‘दलित ईसाइयों की नेशलन कमेटी’ और अन्य याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था।
बीते माह 10 नवम्बर को केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था, “संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 ऐतिहासिक आँकड़ों पर आधारित था, जो स्पष्ट रुप से परिभाषित करता है कि ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों ने पिछड़ेपन या किसी भी तरह के उत्पीड़न का सामना नहीं किया था।”
केन्द्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि हिन्दू धर्म से अन्य धर्म में परिवर्तित होकर अनुसूचित जाति के अन्तर्गत मिलने वाले आरक्षण को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
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