मशहूर डच फुटबॉलर योहान क्रुएफ ने कभी कहा था, “पेले एकमात्र फुटबॉलर हैं जिन्होंने हर तर्क को खारिज कर के रख दिया है।”
अपने बचपन के दिनों में नन्हें एडसन को चाय की दुकानों पर काम करना होता था। पिता डोन्डिन्हो स्वयं एक फुटबॉलर थे, परन्तु वह कुछ खास नहीं कर रहे थे। फुटबॉल के प्रति जुनून एडसन को पिता से जागीर के तौर पर मिला था। एडसन महँगे जूते और फुटबॉल नहीं खरीद सकता था। तो वह अपने फटे मोजों में पुराने अखबार के टुकड़े भरकर गेंद बना लिया करता और खाली वक्त में उससे ही खेलता रहता। वह रात दिन खौफनाक फुटबॉल खेल रही उरुग्वे, जर्मनी, इटली, हंगरी आदि से लड़ते हुए ब्राज़ील के लिए विश्व कप जीत कर लाने का ख्वाब देखता रहता।
फिर 07 जुलाई, 1957 का वह दिन भी आया जब अर्जेंटीना के खिलाफ मराकाना स्टेडियम में पेले ने पहली दफा ब्राज़ीली फुटबॉल जर्सी पहनी। उन्होंने अपने पहले ही मैच में ब्राज़ील के लिए गोल दागा था। तब उनकी उम्र मात्र सोलह वर्ष, नौ माह थी। वह आज भी ब्राज़ील के लिए गोल स्कोर करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हैं।
1958 के विश्व कप में उन्होंने चार मैचों में छ: गोल दागे थे। स्वीडन के खिलाफ खेले गए फाइनल मुकाबले में उतरते ही वह विश्वकप में खेलने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हो गए थे। उन्होंने फाइनल मैच में दो शानदार गोल दागे थे जिन्हें विपक्षी स्वीडिश खिलाड़ियों ने भी सराहा था। पेले को इस विश्व कप का उभरता युवा सितारा आँका गया था।
यह भी पढ़ें: फीफा वर्ल्ड कप: त्रासदियों के नायक मेस्सी ने आखिरकार ट्रॉफी को चूमा
आगे चलकर पेले ने गारिंचा, अमारिल्डो, तोस्ताओ, जेरस़न, जैरजिन्हो व रिवेलिनो जैसे सितारों के संग मिलकर न सिर्फ 1962 और 1970 के विश्वकप खिताब जीते बल्कि फुटबॉल इतिहास में सदैव के लिए अपना नाम अमर कर दिया।
हम अभागे ही हैं जो कभी गारिंचा व पेले की जोड़ी को खेलता न देख सके। यह एक ऐसा दर्द है जो कभी खत्म न होगा। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब-जब गारिंचा व पेले मैदान पर साथ उतरे, ब्राज़ील ने कभी कोई भी मैच नहीं हारा। उस दौर में फुटबॉल बेहद क्रूर हुआ करता। घातक डिफेंस हुआ करती व खिलाड़ियों के लिए ज्यादा सुरक्षा न होती। फिर भी इन दोनों को उस वक्त विश्वभर की कोई भी डिफेंस न रोक पाती थी।
योहान क्रुएफ से कई वर्षों पूर्व वो ‘क्रुएफ टर्न’ किया करते थे। आंद्रेस इनिएस्ता से कई वर्षों पूर्व वो ‘ला क्रोक्वैता’ किया करते थे। नन्हें जादूगर लियोनेल आंद्रेस मेस्सी कुक्कूतीनी से कई वर्षों पूर्व ‘ब्लैक डायमंड’ अकेले ही सात-आठ विपक्षी खिलाड़ियों को मजे-मजे में ही छका कर गोल स्कोर कर दिया करते थे। क्रिस्टियानो रोनाल्डो से कई वर्षों पूर्व पेले ऐसी बाइसिकिल किक लगाया करते थे, जैसी बाइसिकल किक फिर कभी कोई नहीं लगा सका।
वह सभी कुछ जो समस्त विश्व में कोई भी फुटबॉलर करता है, पेले वह कई वर्षों पूर्व कर चुके थे। शायद यह एक वाक्य यह बताने के लिए काफी है कि क्यों उनको ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल द टाइम कहा जाता है। कोई भी ड्रिबल, कोई भी किक, वह सभी कुछ कर सकते थे। उनके तरकश में हर बाण हुआ करता।
योहान क्रुएफ हों या आंद्रेस इनिएस्ता, लियोनेल मेस्सी हों या क्रिस्टियानो रोनाल्डो, यह सभी खिलाड़ी सांतोस के खुशियों के सौदागर पेले की परछाईं मात्र हैं। पेले निश्चित तौर पर सदैव इन सभी खिलाड़ियों से कई कदम आगे ही रहेंगे।
अपने करियर की सांझ में जब उन्होंने न्यूयॉर्क कोसमोस का रुख किया था तो कई वर्षों तक अमेरिकी मेडिकल विशेषज्ञ पेले की शारीरिक संरचना की जाँच करते रहे। उन्हें कभी यकीन ही नहीं होता कि कैसे पाँच फुट आठ इंच का यह इंसान यूँ बारम्बार ऐसे जादुई करतब कर सकता है। वह सदैव अपने विरोधियों से दो कदम आगे रहते। जब जी करता, जिसे जी करता, नटमेग व डॉज़ किया करते। गेंद किसी प्रिय पालतू जानवर की भाँति सदा उनके चरणों से चिपकी रहती।
एडसन अरांतेस दो नासिमेंतो ‘पेले’ ने कभी अपनी आत्मकथा के सह-लेखक एलैक्स बेल्लोस से कहा था –
पेले के आगमन से पूर्व फुटबॉल की दुनिया में उरुग्वे, जर्मनी, इटली, हंगरी आदि की टीमों का दबदबा था। यह बेहद खौफनाक फुटबॉल खेला करते। कुछ-कुछ नब्बे के दशक से पहले की वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम की भाँति। 1957 में सत्रह वर्षीय पेले के आगमन के साथ चीजें बदलने लगीं।
यह भी पढ़ें: लियोनेल स्कालोनी: अर्जेंटीना की जीत का डार्क हॉर्स, जिसे कभी माराडोना ने कहा था ‘नालायक’
पेले ने खेल को खूबसूरत बना दिया था। पेले का खेल बीथोवेन की धुनों सरीखा था। एकदम जादुई। ऐसा खेल जिसे देखना सुकून देता। ब्राज़ीली पारंपरिक सांबा नृत्य जैसा अद्भुत। टैंगो सरीखा सुरम्य। साओ पाउलो की सड़कों पर कभी फटे मोजों की गेंद बनाकर खेलने वाला नन्हां एडसन कब संपूर्ण विश्व का राजा बन गया पता ही न चला। फुटबॉल खेलने वाला शायद ही कोई ऐसा राष्ट्र हो जहाँ पेले का स्मारक न हो। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा राष्ट्र हो जहाँ माँ पिता ने अपने बच्चों का नाम पेले के नाम पर न रखा हो।
पूर्व हंगरी व रियल मैड्रिड के स्टार प्लेयर फेरेंस पुस्कास ने पेले को लेकर कहा था,
अन्तरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (IOC) ने सन् 1999 में ‘ओ रेई’ (द किंग) को सदी के महानतम ऐथलीट के खिताब से नवाजा था। एक बड़ी रोचक जानकारी यह भी है कि नाइजीरिया में जुलाई, 1967 से जनवरी, 1970 के मध्य एक सिविल वॉर हुआ था। चाहकर भी तमाम राजनयिक इस युद्ध को समाप्त नहीं कर पा रहे थे। सन् 1969 में सांतोस फुटबॉल क्लब नाइजीरिया की भूमि पर उतरा। पेले तब सांतोस के लिए खेला करते थे। सरकार व विरोधी शक्तियों ने एक दिन के युद्धविराम की घोषणा की थी ताकि सभी पेले को खेलते हुए देख सकें। कुछ ऐसी पेले की आभा थी।
पेले ने कुल 1281 गोल दागे व तीन विश्व कप जीते। यह बेहद खास है। ऐसा अब तक और कोई न कर सका है। पेले के द्वारा लगाए गोलों पर लोगों ने थीसिस लिख डाली। उनको अपने गीतों में उतारा। उन पर तमाम फिल्में बनीं। वह न सिर्फ लातिन अमेरिका बल्कि संपूर्ण विश्व के नायक हैं। पेले एक उम्मीद हैं। पेले एक जश्न हैं। पेले एक जुनून हैं। उनके लिए कहना गलत न होगा कि ‘मोहब्बत करने वाले कम ना होंगे, तेरी महफ़िल में लेकिन हम ना होंगे’।
पेले कोलोन कैंसर से लड़ रहे थे। कैंसर की पीड़ा को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। मगर यह एक तरीके का काव्यात्मक न्याय ही माना जाएगा कि जैसे ही रोसारियो के नन्हें जादूगर मेस्सी ने विश्व कप की ट्रॉफी अपने हाथों में ली, उसके कुछ दिनों पश्चात पेले ने मुस्कुराते हुए साओ पाउलो के एल्बर्ट आइंस्टीन हॉस्पिटल में सदा के लिए अपनी आँखे मूंद ली।
आज न सिर्फ ब्राज़ील की सड़कों पर अपितु सारे विश्वभर में लोगों में गम की लहर है। नेमार से लेकर ओबामा तक तमाम बड़े खिलाड़ी, नेता व सेलिब्रिटी आदि सभी फुटबॉल की दुनिया के राजा के लिए अंतिम संदेश लिखते नजर आए।
इस विश्व ने अपना राजा खो दिया। आज दिलों में एक गहरा गम है। वो एक चिराग था जो बुझ गया है, पेले जैसा फिर कभी कोई न होगा।
शुक्रिया पेले, इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए।
अलविदा!