अब तक वे बिना मिले दूर से ही लड़ रहे थे। कांग्रेस, वाया अधीर रंजन, ममता बनर्जी से लड़ रही थी। केजरीवाल मीडिया में वक्तव्य देकर कांग्रेस से लड़ रहे थे। ओमर अब्दुल्ला कश्मीर में रहकर केजरीवाल से लड़ रहे थे। अखिलेश बिना कुछ बोले कांग्रेस से लड़ रहे थे। शरद पवार तो अपने ही भतीजे को दूर रखकर उससे लड़ रहे थे।
ऐसे में सबने फ़ैसला किया कि मिलकर लड़ते हैं और मिलने के लिए पटना को चुन लिया गया।
पटना में मिलने से सिंबोलिजम की रक्षा भी हो जानी थी। जून का महीना है। वही जून जिसमें कांग्रेस ने इमरजेंसी लगाई थी। वही इमरजेंसी जिसमें से नीतीश और लालू निकले थे। वही नीतीश और लालू जिन्हें समाजवाद का स्तंभ माना गया था। संयोग यह कि नीतीश और लालू लंबे समय तक दूर रह कर लड़ रहे थे। अब मिल कर लड़ रहे हैं। मिलकर लड़ने की इसी लोकल सफलता को नीतीश जी शायद राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहते थे।
कुछ लोग कहते हैं कि दोनों जून के महीने में अपने गुरु जेपी को अद्धा सुमन अर्पित करना चाहते थे। सॉरी, श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहते थे। (टाइपो हो गया था। मैंने उसे वैसे ही रहने दिया। यह साबित के लिए कि टाइपो सही चीज नहीं है इसलिए इससे बचा जाना चाहिए)
ख़ैर, ममता बनर्जी पटना पहुँची। सीधे लालू जी के घर चली गई। तेजस्वी वहीं खड़े थे। उन्हें डर था कि ममता दी मिलकर सच में लड़ने न लगें। तेजस्वी ने ममता दी और लालू जी के लड़ाई के वीडियो यूट्यूब पर देख रखे थे।
पर ऐसा नहीं हुआ। इस बार दीदी ने लालू जी के पाँव छू लिए। पाँव छूकर बोलीं; हम सोब डेमोक्रेसी का रोख्खा ख़ातिर मिल रहा है। इये जो डेमोक्रेसी इस नेशोन से गायोब हुआ है, उसको एक ही मानुष उवापस ला सकता है और उसी मानुष का नाम है लालू जी। हामारा बोलने का तात्पोर्जो है कि लालू जी ईज द रीयोल फाइटर! मोदी को ओही हरा सकता हैं, अउर मोदी का हार में ही हमसब का डेमोक्रेसी का जीत है।
एक पत्रकार ने लालू जी को किया गया उनका प्रणाम देखा और बोला; विपक्षी नेताओं को पटना में मिलकर लड़वाने की क़वायद तो नीतीश जी ने शुरू की थी, तो दीदी उनसे क्यों नहीं मिली? नीतीश जी के पाँव क्यों नहीं छुए?
किसी कोने से जवाब आया; इस समय नीतीश जी का पाँव उनका अपना पाँव नहीं है। वे लालू जी के पाँव पर खड़े हैं। शायद इसीलिए दीदी ने वाया नहीं जाकर सीधा लालू जी का पाँव छुआ।
अगला सवाल आया; पिछले ढाई महीने से नीतीश बाबू माहौल बना रहे थे कि मोदी को उनके नेतृत्व में ही जुटकर हराया जा सकता है। उसका क्या?
जवाब आया; उसका क्या होना है, यह लालू जी तय करेंगे।
तय करने का दिन भी आ गया। 23 जून। बस इमरजेंसी की तारीख़ से दो दिन पहले। हर पार्टी से तीन-चार नेता जुटे। मिलकर लड़ने की बात थी इसलिए दलों ने मात्र एक प्रतिनिधि भेजने का रिस्क नहीं लिया।
डेमोक्रेसी बचाने से बात शुरू हुई। नीतीश जी बोले; आ हमसब का एकजुट होना बहुते ज़रूरी है। हम सब यदि नहीं मिले तो देश में डेमोक्रेसी नहीं बचेगी।
आम आदमी पार्टी के संजय सिंह बोले; लेकिन केंद्र सरकार के काले अध्यादेश पर कांग्रेस ने अपना रुख़ स्पष्ट नहीं किया है। पहले कांग्रेस से इस काले अध्यादेश पर उसका रुख़ पूछा जाए।
बार-बार काले अध्यादेश काले अध्यादेश सुनकर खरगे ग़ुस्सा हो गए। संजय सिंह से बोले; आप एक आर्डिनेंस के बहाने इंडिया का ग्रैंड ओल्ड पार्टी को ब्लैक नहीं कर सकते।
संजय सिंह का चेहरा तमतमा उठा। राघव चड्ढा ने कहा; अरे उनका मतलब ब्लैकमेल करने से था। वे कहना चाहते थे कि ब्लैकमेल नहीं कर सकते।
नीतीश बाबू; अरे रुकिए भाई। अध्यादेश से अधिक ज़रूरी है देश की डेमोक्रेसी।
संजय सिंह बोले; बुरा मत मानिए लेकिन हमारी डेमोक्रेसी उसी अध्यादेश में है। हमारी प्राइवेट डेमोक्रेसी ही देश की डेमोक्रेसी है। आधी डेमोक्रेसी हमने शराब घोटाले में है और बाक़ी की आधी शीशमहल में आठ लाख के पर्दे के पीछे छिपा रखी है। मोदी हमारी डेमोक्रेसी से परदा हटाने पर आमादा हैं। ईडी और सीबीआई हमारी डेमोक्रेसी के पीछे पड़े हैं।
राहुल गांधी ने उनकी बात ध्यान से सुनी। बोले; देखिए, जॉर्ज सोरोस कहते हैं कि डेमोक्रेसी इज अ माइंड ऑफ़ स्टेट! सॉरी सॉरी .. डेमोक्रेसी इज अ स्टेट ऑफ़ माइंड!
उनकी बात सुनकर ममता बनर्जी बोली; इये संजोय जी सही बोलता है। हमारा प्राइभेट डेमोक्रेसी ही नेशोनल डेमोक्रेसी है। अउर ख़ाली बीजेपी ही नेई, इये आपका ही ओधीर रोंजोन भी हमारा डेमोक्रेसी का पीछे पड़ा है। टीचार भोरती, कैश फॉर जॉब्स, कोयला घोटाला, गोरू पचार में हमारा निजस्व डेमोक्रेसी है। उसका रोख्खा कइसे होगा?
केजरीवाल ने ममता दी से पूछा; दीदी, गोरु प्रचार क्या होता है?
ममता दी बोली; आरे बाबा, गोरू प्रोचार नेहीं, गोरू पाचार। पाचार का ओर्थो है, इस्माग्लिंग! तुम्हारा दीमाग़ होमेशा प्रोचार पर ही राहता है। इये किया बात है? हामारा कहना है कि ओ जइसा तुम्हारा मोद्दो का झूठा … सॉरी सॉरी इये जइसा तुम्हारा ऊपर शराब घोटाला का झूठा केस बनाया है मोदी, ओईसा ही हमारा ऊपर काऊ इस्माग्लिंग का झूठा केस बनाया है। ऊपर से केष्टो को पकड़ कर दिल्ली भी लेकर चला गिया है। तुम लोग ख़ुद सोचो, हमारा डेमोक्रेसी का क्या होगा?
नीतीश; अरे, हम लोग यहाँ जो जुटे हैं, वो उसी डेमोक्रेसी को बचाने के लिए ही तो जुटे हैं। देखिए, हमारा सुझाव यह है कि हम मिले हैं तो लड़ें भी।
ओमर अब्दुल्ला बोले; मिलकर लड़ना बहुत ज़रूरी है। हमारे वालिद साहब ने केजरीवाल जी से सीधा सवाल पूछने के लिए हमें कहा है और हम पूछेंगे भी कि; जब 370 हटा और हमारी डेमोक्रेसी पर हमला हुआ तब केजरीवाल जी ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?
उनकी बात सुनकर केजरीवाल बोले; ओमर जी ओमर जी, देखिए, यह भूल जाइए कि मैंने 370 हटने पर क्या कहा था। हम तो वैसे ही यू-टर्न लेने के लिए जाने जाते हैं। आप हमारी डेमोक्रेसी की रक्षा करेंगे तो हम यू-टर्न लेकर आपके डेमोक्रेसी की रक्षा कर देंगे। आख़िर हमलोग डेमोक्रेसी बचाने के लिए ही तो जुटे हैं।
लालू जी बोले; आ हमको तुम्हारे ऊपर बिस्बास कम है। तुम हमको पहले बड़ी करप्ट बोलता था। का गारंटी है कि तुम हमरा डेमोक्रेसी बचाने में हेल्प करेगा? हमारा भी तो अपना डेमोक्रेसी है जो लैंड फॉर जॉब्स में है।
केजरीवाल बोले; लालू जी, जैसा मैंने कहा, मैं तो ओमर अब्दुल्ला के लिए यू-टर्न लेने को तैयार हूँ। आपके लिए भी एक ले लूँगा। आप बताइए क्या कहना है? आपको भ्रष्टाचारी बोला था मैंने। कहें तो अब सदाचारी घोषित कर दूँ?
लालू जी बोले; आ तुम जब हमको भ्रष्टाचारी बोला था, तब तुम्हारा बात का भैलू भी था। अब तुम बोलिये देगा तो का होगा? अब को ची का भैलू रहा तुम्हारा बात में? अब तो ख़ुद हमारा डेमोक्रेसी तुम्हारा डेमोक्रेसी से बढ़िए है। पवार जी, हम सही कह रहे हैं कि नै?
पवार साहब ने सबको देखा और बोले; सबको कोआपरेटिव माहौल में रहने की ज़रूरत है। हमारी डेमोक्रेसी महाराष्ट्र के कोआपरेटिव में रखी थी मैंने। कोआपरेटिव मिनिस्ट्री बनाकर मोदी उसे हमसे छीन लेना चाहते हैं। हमारी डेमोक्रेसी की रक्षा में सबका कोऑपरेशन चाहिए हमें।
पवार साहब की बात सुनकर नीतीश जी बोले; हम लोग तो हइये हैं न कोऑपरेशन ख़ातिर। आप काहे परेशान हो रहे हैं? सब मिलके ख़ाली कोआपरेटे नहीं करेंगे बल्कि आपके डेमोक्रेसी को तो प्रायोरिटी देकर उसकी रक्षा करेंगे। क्या कहते हैं उद्धव जी?
उद्धव ठाकरे बोले; बहुत ज़रूरी है। आपसे रिक्वेस्ट है कि हमारी डेमोक्रेसी की भी रक्षा करें। हम मिलें या न मिलें लेकिन हम लड़ने के लिए तैयार हैं। हमारे शिवसैनिक को मैं जहाँ भी बोलूँगा वो लड़ेंगे।
नीतीश जी ने पूछा; अरे भाई, आप तो लड़ने को लिटरली ले लिये। वैसे आपकी अपनी डेमोक्रेसी किस चीज में है?
उद्धव बोले; बीएमसी में। वर्षों से हमने हमारी पूरी डेमोक्रेसी बीएमसी में रखी थी लेकिन परसों ईडी ने हमारी डेमोक्रेसी पर हमला कर दिया। वह भी कोविड के बहाने। मोदी जी ने हमारी डेमोक्रेसी पर पहले CAG से हमला करवाया और अब ईडी से करवा रहे हैं।
बहुत देर से सबको सुन रहे है अखिलेश बोले; हमाई डेमोकेसी की किसी को चिंता नहीं है। किसी ने यह भी नहीं पूछा कि हमाई डेमोकेसी कीमे है!
नीतीश बाबू बोले; आ त आप खुदे बता दीजिये!
अखिलेश बोले; हमाईं डेमोकेसी मुसइम समाज के वोट में है। कांगेस के खिलाफ पाटी बनाई थी हमाये पिता ने। कनाटक में कांगेस ने जैसे मुसइम समाज का वोट लिया है, उससे तो हमाई डेमोकेसी खतये में पड़ जाएगी।
नीतीश बाबू बोले; अरे भाई, इसी ख़तरे को टालने के लिए ही तो हम सब इकट्ठा हुए हैं। सीताराम जी, क्या कहते हैं?
येचुरी बोले; हम क्या बोले? डेमोक्रेसी का मामला है। आपलोग फ़ैसला लीजिए और हमको पिंग कर दीजियेगा।
राहुल गांधी बोले; चेयरमैन का इज़्ज़त से पूरा नाम लीजिए सीताराम जी। हमारे मन में उनके लिए पूरी इज़्ज़त है और आपके मन में आधी?
ख़ैर, सबकी डेमोक्रेसी जहाँ जहाँ अटकी थी, सबने एक दूसरे को बताया। उसके बाद सब मीडिया के सामने आये। पत्रकारों से मुखातिब हुए। पत्रकार यह जानने के लिये उत्सुक थे कि क्या फ़ैसला हुआ।
नीतीश जी ने माइक सँभाला और बोले; बहुत डिटेल्ड डिस्कशन हुआ और उसके बाद फ़ैसला लिया गया कि हम मिलकर लड़ेंगे।
पत्रकार ने पूछा; मिलकर लड़ने की अगली जगह तय हो गई है?
नीतीश बाबू बोले; हाँ, शिमला!
सब उत्सुक हैं यह देखने के लिए कि शिमला में मिलकर विपक्षी कितना लड़ेंगे!
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