स्वात और उसके आसपास के इलाक़ों में अगस्त माह में बाढ़ आई थी। इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई है और लगभग 30 हज़ार घर तबाह हो गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि बाढ़ के कारण तीन दर्जन के लगभग पुल टूट गए हैं।
स्वात और उसके आसपास के इलाक़ों में स्वात नदी का प्रकोप जारी है। मालाकंड और चकदरा के बीच संपर्क भी टूटा है और इसी कारण चकदरा, लोअर दीर और अपर दीर के इलाक़ों में खाने पीने की वस्तुओं की कमी हो गई है।
दीर जिले के लोग कई घंटों की पैदल यात्रा करने के बाद स्वात नदी पार करते हैं और तब बटखेला पहुँच पाते हैं। इतनी मेहनत से वे बाढ़ में फँसे अपने परिजनों के लिए खाना ले जा पा रहे हैं। प्रशासन ने स्वात नदी पर एक अस्थाई पुल बनाया है। हालँकि, इस पर एक साथ केवल 10 से 15 लोग ही पार कर सकते हैं।
प्रशासन की संवेदनहीनता से लोग नाराज
पाकिस्तान में सरकार और तंत्र की नाकामी और पश्तूनों के नेतृत्व की वजह से, लोगों का राज्य सरकार के प्रति रवैया पिछले एक दशक में पूरी तरह बदल गया है। पहले तो पहाड़ियों में नारेबाजी एक असंभव सी बात थी। पहले ये नारे राज्य के महत्वपूर्ण शहरों के बार और कमरों में सुनाई दिए, जिसकी वजह से राज्य अराजकता का शिकार हुआ। क्रांति बस होने ही वाली थी। संस्थाएँ वापस अपनी धुरियों पर चली गईं और तब हालात में कुछ सुधार हुआ। हालाँकि, यह स्थिति दूसरी जगहों से अधिक पंजाब में दिखती है। वहीं, दूसरी जगहों खासकर खैबर पश्तून ख्वा की स्थिति पहले की तरह ही हो गई है। तबाही का युग फिर से वापस आ गया है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया इतनी तीव्रता से आई जिसने सरकार को भी प्रांत के बारे में सोचने पर मजबूर किया। कुछ दिनों पहले एक स्कूल वैन पर हमला हुआ था, जिसके बाद स्वात के लोग मैदान में उतर गए। मिन्गोरा के इतिआसे में एक ऐतिहासिक रैली की गई, जिसमें पश्तून प्रोटेक्शन मूवमेंट के अध्यक्ष मंजूर पश्तीन, स्वात ओइसी पसुन के अध्यक्ष फवाद, वरिष्ठ राजनेता अफरासियाब खट्टक, अवामी नेशनल पार्टी (केपी) के अध्यक्ष अमील वली खान, जमा-ए-इस्लामी के सांसद मुश्ताक अहमद खान, स्वात ओइसी पसुन के सुप्रीमो, सिविल सोसायटी के सदस्य, विद्यार्थी, शिक्षक, वकीलों, डॉक्टरों, ट्रांसपोर्टर और युवकों-युवतियों ने हिस्सा लिया। मतलब यह कि हरेक क्षेत्र के लोग इसमें शामिल थे। रैली के बाद नेताओं ने भाषण दिए, जिसमें एक बात निकल कर सामने आई।
लोगों ने ‘और नहीं हो आतंकवाद’ और ‘हम राज्य से चाहें शांति’ के नारे लगाए। शांति रैली में आए लोगों ने माँग रखी कि सरकार तुरंत ही हालिया हमले में शामिल लोगों को गिरफ्तार करे वरना वे लोग देश की राजधानी की तरफ कूच करेंगे। उनके मुताबिक, आतंकवादियों को सरकार का समर्थन है। स्वात कौमी जिरगा के प्रवक्ता खुर्शीद काकाजी के मुताबिक स्वात के लोग बहुत जागरूक हो गए हैं और वे लगातार के आतंकी हमलों से थक गए हैं। शांति के लिए अब खैबर पश्तून के लोग ऐसी रैलियाँ लगातार करेंगे। उनके मुताबिक ये शांति रैलियाँ पश्तून लोगों के दुखों के संदर्भ में आयोजित होंगी। राज्य-प्रायोजित आतंकवाद ने लोगों का बहुत नुकसान किया है।
खुलकर पाक सरकार के विरोध में उतरे हजारों लोग
इलाके का व्यापार भी बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। खुर्शीद काकाजी ने कहा कि आतंकवाद की वजह से हजारों जानें गईं और इसीलिए अब वे लोग खुलकर गलियों में आए हैं। दूसरे वक्ताओं ने कहा कि पश्तूनों का खून पानी की तरह बहाया गया। वे सवाल पूछते हैं, “अगर हमारी सेना एक मच्छर को भी उपग्रह के जरिए देख सकती है, तो तालिबान को क्यों नहीं? अगर हमारी सेना मुट्ठी भर तालिबानियों से हार जा रही है, तो स्वात हमारे हवाले कर दें।” यहां के लोग यह सुनिश्चित करेंगे कि आपकी मदद से शांति स्थापित की जा सके। हमारे बच्चे मर रहे हैं और हमारा दिल रो रहा है। देश के हरेक नागरिक को संविधान में दिए गए अधिकार मिलें, यह राज्य सुनिश्चित करे।
हालाँकि, भारी-भरकम रक्षा बजट के बावजूद सरकार यहाँ शांति स्थापित करने में विफल रही है। एक वक्ता ने कहा, “मैं इसे ले लूँगा। हम खैबर पख्तूनख्वाँ के लोग स्वात के लोगों के साथ खड़े हैं और उन्हें अकेले नहीं छोड़ेंगे।हमारी सरकार माँ की भूमिका नहीं निभा रही है। पश्तूनों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। यह 2008 और 2009 की आतंकी घटनाओं की प्रतिक्रिया है और उन्होंने (यानी लोगों ने) जता दिया है कि वे फिर से उसी जंजाल में महीं फँसना चाहते। ”
वहाँ आए लोगों ने कहा, “सरकार तो दावा कर रही है कि तहरीक-ए-तालिबान खत्म हो चुका है, फिर ऐसी घटनाएँ लोगों की चिंता बढ़ाती है।” पश्तून बहुत ही कठिन हालातों में हैं। अगर सरकार ने उनकी तकलीफों को दुरुस्त नहीं किया तो उसका भी एक तरीका है। ऐसे हालात में, यह जरूरी है कि एक-दूसरे को दोष देने के बजाए पश्तून मिलकर हालात का सामना करें। इस वक्त, उत्तर और दक्षिण के पश्तून ख्वाजा मिलकर एक राष्ट्रीय जिरगा का ऐलान करें, जिसमें सभी वर्ग शामिल हों। इसमें सारे मसलों पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए, जो समस्याओं को सुलझाए। पश्तूनों की धरती पर शांति स्थापित होने से पूरा इलाका और देश प्रभावित होगा।