भारत के विदेश मंत्री सुब्रमन्यम जयशंकर इन दिनों अपने 10 दिवसीय अमरीकी दौरे पर हैं, यहाँ वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भाग लेने के लिए गए हुए हैं। साथ ही वह कई देशों के नेताओं से मुलाकात और विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं।
अपने दौरे के तीसरे दिन उन्होंने अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक बातचीत में हिस्सा लिया। जयशंकर के विभिन्न विषयों पर विचार जानने के लिए भारत के नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया ने उनके साथ बातचीत की, इस दौरान उनका दिया गया एक जवाब काफी सुर्खियाँ बटोर रहा है। अपने वक्तव्य के दौरान जयशंकर ने उन तीन ऐतिहासिक चीजों का जिक्र किया जो भारत के साथ गलत हुईं।
क्या कहा जयशंकर ने?
पनगढ़िया के द्वारा भारत और चीन के आर्थिक तरक्की के बारे में कही गई एक बात के जवाब में जयशंकर ने
कहा कि यदि आप भारतीय इतिहास की बात करें तो मेरे विचार से तीन चीजें ऐसी हैं, जो भारत के साथ गलत रहीं। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के शुरुआत में ही बंटवारा हुआ, इस कालखंड में जहाँ भारत को समस्याएँ झेलनी पडीं, वहीं चीन इस दौर में तरक्की कर रहा था।
इसके बाद उन्होंने भारत के परमाणु विकल्प को देरी से अपनाने को एक गलती ठहराया, उन्होंने कहा कि चीन ने 1964 में ही परमाणु बम का परीक्षण कर लिया था, भारत ने पहले ही देर लगाईं और जब 1974 में किया तो वह भी आधा-अधूरा था। इस आधे-अधूरे परीक्षण के कारण भारत को दोबारा 1998 में परमाणु परीक्षण करना पड़ा जिससे इस बीच पाकिस्तान को परमाणु हथियार बनाने का मौका मिल गया।
सबसे गंभीर मुद्दा आर्थिक सुधारों में देरी करना रहा, चीन 1970 -80 के दशक से ही आर्थिक सुधारों की तरफ चला गया, वहीँ भारत को यही काम करने में एक दशक और लगा। जयशंकर ने कहा कि चीन ने अपनी कथित सांस्कृतिक क्रान्ति की भूलों को समझा तब उनके पास आर्थिक सुधारों के साथ जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वहीं भारत ने इसी काम के लिए एक दशक और लिया।
उन्होंने भारत के द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों में कमियों को भी गिनाया, उन्होंने कहा कि सुधारों में देरी, सही विजन का नहीं होना, सही रणनीति का नहीं होना और एक गलत ग्लोबलाइजेशन मॉडल का 2 दशकों तक अनुसरण करना वे कारण रहे जिनके कारण हमारी आर्थिक तरक्की चीन के बराबर नहीं हो पाई।
जयशंकर ने भारत के अमेरिका के विषय लम्बे समय तक संदेह की दृष्टि रखने के विषय में कहा कि आज प्रधानमंत्री मोदी बिना किसी वैचारिक भार के सभी वैश्विक हालातों को जायजा लेकर भारत के लिए सबसे ज्यादा हितों वाले रिश्ते विश्व में तैयार कर रहे हैं।
जयशंकर ने भारत के संयुक्त राष्ट्र् में परमानेंट सीट को लेकर भी बात की, उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में लम्बे समय से बदलाव की जरुरत है। उन्होंने कहा कि 80 साल पहले बने संगठन में बदलाव की काफी जरुरत है, विश्व में आजाद देशों की संख्या 4 गुना हो चुकी है, ऐसे में बदलाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम भारत की परमानेंट सीट के लिए काम कर रहे हैं।
चीन से जारी तनातनी के बीच उन्होंने संबंधों के बारे में कहा कि हमारे रिश्ते चीन से सामान्य नहीं है। जयशंकर ने चीन के साथ रिश्ते चलाना काफी कठिन बताया।
नेहरु, इंदिरा और राजीव: तीन नेता और तीन गलतियां
जयशंकर के द्वारा गिनाई गई इन गलतियों का सम्बन्ध भारत के द्वारा अलग-अलग द्वारा समय अपनाई गई नीतियों से है। जयशंकर के द्वारा सबसे पहले भारत के बंटवारे का मुद्दा उठाया गया। कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है नेहरु ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा के कारण कांग्रेस पर यह दबाव डाला कि वह विभाजन के फार्मूले को स्वीकार करें।
जयशंकर ने भारत के देरी से परमाणु हथियारों की तरफ जाने को भी एक भूल बताया, भारत के जाने-माने पत्रकार राज चेंगप्पा के द्वारा ट्रिब्यून में लिखे एक लेख के अनुसार, परमाणु शक्ति के प्रति नेहरु का दोहरा रवैया था।
उन्होंने एक ओर होमी जहाँगीर भाभा को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के विषय में अनुसंधान करने के लिए कहा, वहीं दूसरी तरफ वह परमाणु हथियारों के विकास से बचते रहे। नेहरु के तथाकथित आदर्शवादी रवैये के कारण भारत को परमाणु हथियार बनाने में देर लगी, ऐसा कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है।
नेहरु की इस भूल को उनकी पुत्री इंदिरा ने 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण करके सुधारने की कोशिश तो की, पर पूरी तरीके से इस क्षमता को पाने में भारत को अगले 24 सालों का इन्तेजार करना पडा, इस दौरान पाकिस्तान को भी परमाणु हथियार बनाने का मौका मिल गया।
आर्थिक मोर्चे पर इंदिरा गांधी ने नेहरु से भी कड़े समाजवादी कदम उठाए और उनके फैसलों से कई विदेशी कंपनिया जैसे IBM, कोका कोला आदि को भारत छोड़ कर जाना पड़ा।
राजीव गांधी, अपनी सरकार में रिकार्ड बहुमत से जीत कर आए थे, उनके द्वारा भी अपने शासन काल के दौरान उन्होंने कट्टरपंथी मौलानाओं के हक़ में संसद में क़ानून बनाने पर जरूर दिया बजाय इसके कि भारत में आर्थिक सुधार करके पूरे विश्व के साथ कदमताल की जाए।