पैरालंपिक 2024 में भारत के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर खुशी जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट करके कहा है कि यह उपलब्धि हमारे एथलीट्स के अटूट समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण है। पूरा देश Paralympics 2024 में India के अद्भुत और ऐतिहासिक प्रदर्शन से गौरवान्वित है।
Paralympics 2024 में India का Performance
क्या आप जानते हैं देश को गर्व करने का ये मौका यूँ ही नहीं मिल गया बल्कि इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पीएम मोदी और केंद्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों से निरंतर योजनागत तरीके से काम किया है।
जब पूरा देश अलग-अलग विषयों पर चर्चा करने में व्यस्त था और किसी को भी पैरालंपियन की पड़ी नहीं थी, उस समय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पैरालंपियन समूह के पेरिस जाने से पहले उनसे बात की, चर्चा की, उनका हौंसला बढ़ाया, उन्हें ये हिम्मत दी कि चाहे जो हो जाए देश का प्रधानमंत्री उनके साथ खड़ा है।
इसके बाद खेल के दौरान भी जब कोई खिलाड़ी कोई भी मेडल जीतता तो पीएम मोदी निजी स्तर पर फोन करके उसे बधाई देते- शाबाशी देते, उसका हौंसला और हिम्मत बढ़ाते।
भारतीय पैरालंपियन 29 मेडल जीतकर घर लौटे हैं। Paralympics 2024 में India का ये अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। पैरालंपिक की शुरूआत से लेकर अबतक भारत ने इसमें कुल 60 मेडल जीते हैं और इन 60 में से 29 मेडल तो इसी 2024 पैरालंपिक में और 60 में से 52 मेडल अंतिम तीन संस्करणों में यानी रियो, टोक्यो और पेरिस पैरालंपिक में जीते हैं। पूरी संभावना है कि इस बार के पैरालंपिक खिलाड़ियों के साथ भी प्रधानमंत्री मोदी मुलाकात करें।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इस नई खेल संस्कृति की शुरूआत देश में की है। ओलंपिक और पैरालंपिक टीम के खिलाड़ियों से मिलकर उनका उत्साह बढ़ाने और हौंसला देने की संस्कृति। ऐसा नहीं है कि ज्यादा मेडल जीतने पर ही पीएम मोदी ऐसा करते हैं।
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2016 रियो पैरालंपिक में भारत ने सिर्फ 4 मेडल जीते थे इसके बाद भी पीएम मोदी ने सभी खिलाड़ियों से मुलाकात की। उनका उत्साह बढ़ाया।
एक प्रधानमंत्री से मिला ये उत्साह, हौसला और उमंग लेकर और सरकार की मजबूत खेल नीतियों के साथ 2020 टोक्यो पैरालंपिक में खिलाड़ी उतरे और उन्होंने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए 19 मेडल जीते।
टोक्यो पैरालंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री ने फिर खिलाड़ियों से मुलाकात की– उनके साथ भोजन किया- उनके साथ बातचीत की। हर एक खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाया।
सफलता संयोग का परिणाम नहीं होती। उसके लिए अवसर, अनुशासन, योजना और उसके अनुसार काम करना होता है। ज़ाहिर है कि भारतीय पैरालिंपिक सफलता भी इसी रस्ते पर चल कर पाई गई है।
आप ये क्रोनोलॉजी देखिए- 2012 लंदन पैरालंपिक में भारत ने 1 मेडल जीता। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, 2 वर्ष बाद ही 2016 में रियो पैरालंपिक हुआ। ऐसे में बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी 1 मेडल से बढ़कर भारत ने 4 मेडल जीते।
इसके बाद 2020 में टोक्यो पैरालंपिक में 19 और अब पेरिस पैरालंपिक में 29 मेडल देश ने जीते हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पैरालंपिक के खेलों में भारत ने झंडे गाढ़े हैं।
अब सवाल है कि ऐसा हुआ कैसे? कैसे एक देश, जो एक मेडल लाता था इतने कम समय में वो 29 मेडल लेकर आ रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और उनके नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले 10 वर्षों में ऐसा क्या किया है, जिससे दिव्यांगजनों के खेल में अभूतपूर्व बदलाव आया है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
दिव्यांगजनों के बेहतरी और उनके खेल की बेहतरीन संस्कृति की नींव गुजरात के राजकोट में तब रख गई थी जब नरेंद्र मोदी ने राजनीति में पदार्पण भी नहीं किया था।
Paralympics 2024 में India ने तोड़ा रिकॉर्ड
दरअसल, राजकोट के एक डॉक्टर पीवी दोषी, नरेंद्र मोदी के जानने वाले थे। मोदी जब भी उनसे मिलने जाते तो डॉक्टर साहब को अपनी बेटी के साथ विकलांग बच्चों की सेवा में जुटा पाते।
नरेंद्र मोदी उन्हें देखते तो उनके मन के अंदर भी एक चेतना जागती, एक संस्कार उठता, एक संवेदना आती कि वे भी विकलांग बच्चों के लिए कुछ कर पाएं।
इसे शायद नियति का खेल ही कहेंगे कि मोदी जो चाहते थे वो मौका उन्हें मिल गया। नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और इसके बाद राजनीति में जो हुआ वो इतिहास है लेकिन विकलांगजनों के लिए उन्होंने जो किया वो वर्तमान में परिलक्षित होता दिखाई देता है।
आज भारत ने पैरिस पैरालंपिक में इतिहास बनाया है। पिछली बार का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा है। उसकी नींव नरेंद्र मोदी ने विकलांगों के प्रति अपनी संवेदनशीलता के कारण मुख्यमंत्री बनने के बाद गुजरात में ही रख दी थी और प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने उन प्रयासों में बढ़ोतरी की।
विकलांगों के प्रति उनकी संवेदनशीलता ही थी कि गुजरात का मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने निर्णय किया कि सामान्य बालक न्यूनतम 35 अंक में पास होता है तो विकलांग बालक को न्यूनतम 25 अंक में पास माना जाए।
गुजरात में ऐसे तमाम निर्णय करने के बाद जब 2014 में वे देश के प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आए तब उन्होंने विकलांगों से संबंधित हर चीज को बारीकी से देखा और समग्रता से निर्णय लेना शुरू किया।
पीएम मोदी ने दिसंबर 2015 में मन की बात में आह्वान किया कि हमें विकलांगों के लिए विकलांग शब्द नहीं बल्कि दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए।
पीएम मोदी के इस आह्वान को देश ने हाथों हाथ लिया और तब से विकलांग शब्द आधिकारिक तौर पर ख़त्म हो गया और दिव्यांग शब्द ने उसकी जगह ले ली। इसलिए हम भी आगे के लेख में दिव्यांग शब्द ही इस्तेमाल करेंगे।
प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी ने केवल विकलांग शब्द की जगह दिव्यांग शब्द ही नहीं दिया बल्कि दिव्यांगों को मुख्यधारा में लाने के लिए तमाम प्रयास शुरू किए।
स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी दिव्यांगों के लिए एक विशेष भाषा नहीं थी, ऐसे में पीएम मोदी ने एक देश-एक साइन लैंग्वेज की शुरूआत की और इसके लिए विशेष कानून बनाया गया। इसके साथ ही सरकार ने 3 दिसंबर, 2015 को सुगम्य भारत अभियान की शुरूआत की।
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दिव्यांगों को सुरक्षित, स्वतंत्रत, सरल और सम्मानजनक वातावरण उपलब्ध कराने के लिए सुगम्य भारत अभियान के तहत सार्वजनिक भवनों, अस्पतालों, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों, घरेलू हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों को पूर्ण रूप से सुगम्य बनाए जाने की पहल की है। ऐसे कई कदम, कई निर्णय सरकार ने उठाए। जैसे-
दिव्यांगजनों के लिए केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण पहल
1. दिसंबर, 2023 तक लगभग 14 हजार शिविर लगाकर 25 लाख से अधिक दिव्यांगों को सीधी सहायता दी गई।
2. सरकार की ओर से दिव्यांगजनों के लिए आयोजित 10 कार्यक्रमों को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया।
3. 6-18 वर्ष की आयु तक बच्चों को मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया।
4. दिव्यांगजनों के कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय योजना की शुरूआत की गई।
5. इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई।
6. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 को लागू किया गया।
दिव्यांगजनों को मुख्यधारा में लाए पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक तरफ दिव्यांगजनों को मुख्यधारा में लाने के लिए ऐसी तमाम योजनाएं लागू कर रहे थे, दूसरी तरफ वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेलों में दिव्यांगजनों की भागेदारी बढ़ाने के प्रयासों में भी जुटे थे।
ग्वालियर में दिव्यांगजनों के लिए नए स्पोर्ट्स सेंटर को बनाने की बात हो या फिर उन्हें विशेष ट्रेनिंग देने की- पीएम मोदी ने हर वो कदम उठाया जिससे कि दिव्यांगजन उत्साह के साथ खेलों में प्रतिभाग करें। जैसे- टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम यानी TOPS में भी पैरालंपियन को शामिल किया गया।
इस योजना के तहत खिलाड़ियों को विदेशों में ट्रेनिंग, अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भागेदारी, बेहतरीन साजो-सामान और कोचिंग कैंप का आयोजन और हर महीने एथलीट को 50 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है।
इसके साथ ही खेलो इंडिया के तहत वार्षिक तौर पर खेलो इंडिया पैरा गेम्स के आयोजन की शुरूआत की गई। जिससे कि दिव्यांगजनों के लिए बेहतरीन खेल संस्कृति का निर्माण किया जा सके।
भारत सरकार के इन प्रयासों का परिणाम है कि 2012 के लंदन पैरालंपिक में 1 मेडल जीतने वाले India ने आज Paralympics 2024 में 29 मेडल जीते हैं। आज तक भारत ने कभी भी पैरालंपिक में इतने मेडल नहीं जीते थे।
कुछ लोग कहेंगे कि खिलाड़ियों के लिए सरकारें पहले भी योजनाएं बनाती रही हैं, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष योगदान क्या है? तो आइए समझते हैं कि कैसे एक प्रधानमंत्री अपने देश के खिलाड़ियों के जीत की गारंटी बन जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के दिव्यांगजनों को सम्मान, स्वतंत्रता, समानता और सुगम्यता देने के प्रयास किए। दिव्यांगजनों को मुख्यधारा में लेकर आए। उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी की।
इससे हुआ ये कि आम दिव्यांगजन हीनभावना से ग्रस्ति होने के बजाय आत्मविश्वास से भर गए और आगे बढ़कर आने लगे।
जब आम दिव्यांगजन आगे बढ़ रहे थे फिर दिव्यांग खिलाड़ी कैसे पीछे रहते। पीएम मोदी ने पैरालंपिक खिलाड़ियों को भी ओलंपिक खिलाड़ियों जैसी अहमियत देना शुरू किया, उनसे खेल से पहले और खेल के बाद मिलना शुरू किया, निजी स्तर पर फ़ोन करके बधाई देना शुरू किया, हारने-जीतने पर, गोल्ड-सिल्वर या फिर ब्रॉन्ज कोई भी मेडल लाने पर उन्हें वैसा ही सम्मान देना कई स्तरों पर खिलाड़ियों को प्रभावित करता है- उनके उत्साह में वृद्धि करता है।
ऐसे में एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि केंद्र सरकार की योजनाओं, नीतियों के साथ-साथ दिव्यांगजनों के लिए पीएम मोदी के अंदर की संवेदनशीलता के कारण ही आज पैरालंपिक में भारत का झंडा शान से लहरा रहा है और हर भारतीय गौरवान्वित महसूस कर रहा है।