पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए आगामी आठ जुलाई को मतदान होगा और इन चुनावों को लेकर राज्य आजकल सियासी संग्राम का मैदान बना हुआ है। जहाँ एक ओर सभी दल जोर आजमाईश में लगे हैं वहीं इन पंचायत चुनावों में विपक्षी एकता की भी पोल खुल गयी है।
पश्चिम बंगाल में क्या कुछ घट रहा है
सबसे पहले नज़र एक ताज़ा घटनाक्रम पर डालते हैं। कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल के बालुरघाट जिले से एक खबर सामने आयी थी। ममता बनर्जी की पार्टी पर आरोप था कि उन्होंने तीन आदिवासी महिलाओं को सिर्फ इसलिए दंडवत परिक्रमा करवाई क्योंकि वे महिलायें तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थी।
बंगाल की राजनीति में हलचल मच गयी थी। ममता बनर्जी सरकार बैकफुट पर आ गई थी। अब पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने इन्हीं तीन महिलाओं में से एक महिला शिउली मार्डी को ग्राम पंचायत में टिकट दिया है। माना जा रहा है कि आदिवासी वोटबैंक छिटकने के डर से ये फैसला लिया गया है।
इस मामले पर स्थानीय भाजपा नेता का कहना है कि अगर टीएमसी आदिवासी समुदाय का सम्मान करती तो महिलाओं को दंडवत परिक्रमा करने पर मजबूर नहीं करती।
वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी ने हिंसा के एक आरोपी विधायक को Z सिक्योरिटी दे दी है। दरसअल, कुछ दिन पूर्व दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर में भारी हिंसा हुई थी। इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने टीएमसी पर उसके उम्मीदवारों को नामांकन करने से रोकने का आरोप लगाया था।
विपक्षी दलों का आरोप था कि अक्सर तृणमूल कांग्रेस के विधायक सौकत मोल्ला क्षेत्र में शांति व्यवस्था ख़राब करते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद ही ममता बनर्जी सरकार ने सौकत मोल्ला को जेड-श्रेणी की सुरक्षा दी है।
आपको बता दें, 8 जून को पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद से राज्य में सात राजनीतिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। रविवार को कूचबिहार जिले में एक बीजेपी समर्थक की हत्या कर दी गई।
एक ऐसी ही हिंसा की घटना मालदा के सुजापुर में सामने आयी है। जहाँ एक पूर्व पंचायत प्रधान और टीएमसी नेता मुस्तफा शेख की हत्या कर दी गई। उनके परिवार ने स्थानीय कांग्रेस नेताओं पर उनकी हत्या का आरोप लगाया है।
टीएमसी विधायक सबीना कहती हैं, यह एक राजनीतिक हत्या है। जो लोग जमीनी स्तर से टीएमसी को खत्म करना चाहते हैं उन्हें टिकट नहीं दिया गया। वे कांग्रेस में शामिल हो गए और इसके बाद उन्होंने उपद्रव करना शुरू कर दिया, इलाके में आतंक फैलाना शुरू कर दिया।
अब देखिये देश में विपक्षी एकता का शिगूफा छोड़ने वाले तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी, बंगाल में आमने सामने हैं।
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी राज्यपाल को पत्र लिखकर स्वतंत्र और निष्पक्ष पंचायत चुनाव कराने के लिए केंद्रीय बलों की व्यवस्था करने का आग्रह किया है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस पंचायत चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। इसको लेकर ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर हमला बोला है।
देश की विपक्षी एकता बंगाल में गायब
ममता बनर्जी ने कहा “कांग्रेस ने कई राज्यों में शासन किया है। कांग्रेस पार्टी माकपा की सबसे बड़े मित्र है। यहां भी बीजेपी है। फिर भी आप संसद में हमारा समर्थन चाहते हैं? हम भाजपा के खिलाफ आपका समर्थन करेंगे, लेकिन यहां ‘सीपीआई (एम)’ के साथ रहने के बाद बंगाल में मदद के लिए हमारे पास न आएं।”
ममता बनर्जी ने तो एक दावा ये भी किया कि यह पूरे भारत में शांतिपूर्ण नामांकन प्रक्रियाओं में से एक है।
ममता बनर्जी के इस दावे पर माकपा के नेता सुजान चक्रवर्ती ने सवाल उठाये हैं। चक्रवर्ती ने कहा कि राज्य के प्रशासन की स्थिति बेहद खतरनाक है क्योंकि यह सत्ताधारी दल के प्रभाव में कार्य कर रहा है।
एक साक्षात्कार के दौरान चक्रवर्ती कहते हैं कि भांगर आग की लपटों में घिर गया है और पूरे प्रशासन को नपुंसक बना दिया गया है। प्रशासन केवल सत्ताधारी दल के लिए कठपुतली के रूप में काम कर रहा है।
राज्यपाल सक्रिय, सरकार फेल?
पंचायत चुनावों को लेकर सबसे ताजा अपडेट ये है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने राजभवन में एक कण्ट्रोल रूम स्थापित कर दिया है जहां पंचायत चुनाव से पहले धमकी और डराने-धमकाने पर लोगों की शिकायतें सुनी जायेगीं।
राजभवन की ओर से जारी एक बयान में इस कण्ट्रोल रूम को पीस रूम बताया गया है। यहाँ प्राप्त हुई शिकायतों को सरकार एवं राज्य के निर्वाचन आयोग को भेजी जाएंगी। दरअसल इससे पहले राज्यपाल ने चुनावी हिंसा से प्रभावित दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर और कैनिंग का दौरा किया था। अपनी यात्रा के दौरान राज्यपाल ने कहा था कि कुछ जगहों पर भीड़तंत्र हावी हो रहा है और लोकतंत्र का पतन हो रहा है।
पंचायत चुनाव से संबंधित हिंसा की लगातार खबर आने से राज्यपाल बोस से राज्य के मुख्य निर्वाचन कमिश्नर को मुलाक़ात करने के लिए राजभवन बुलाया था पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नज़दीक रहे IAS अफ़सर और वर्तमान मुख्य निर्वाचन कमिश्नर राजीव सिन्हा ने समय की कमी का बहाना करके राज्यपाल से मुलाक़ात नहीं की।
वहीं दूसरी ओर पूरे प्रदेश में पंचायत चुनाव को केंद्रीय सुरक्षा बलों की देखरेख में करवाने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ राज्य का निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है।
अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फ़ैसला देता है। फ़ैसला चाहे जो हो पर प्रतीत ऐसा ही हो रहा है कि इस बार के पंचायत चुनाव पिछले पंचायत चुनावों से अलग नहीं होने जा रहे।
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