“यह डेनमार्क नहीं पाकी-लैंड है” डेनमार्क में वायरल एक वीडियो में यह बातें सुनाई दे रही है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि कुछ लोग स्थानीय डेन लोगों को ‘टेक ओवर’ करने की धमकी देते हुए अपशब्द बोल रहे हैं और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं।
वीडियो में एक मुस्लिम व्यक्ति कहता है कि, हमारे 10-15 बच्चे हैं तुम्हारे। कुछ सालों में यहाँ डेन लोग नहीं बचेंगे, जल्द ही तुम लोगों को खत्म कर दिया जाएगा। यकीन नहीं आता है तो स्वीडन को देख लो, नॉर्वे, और फिनलैंड को देख लो।
यह पहली बार नहीं है जब कोई ऐसा वीडियो सामने आया हो, इससे पहले भी कई वीडियो सामने आए हैं जिसमें एक विशेष समुदाय अपनी विस्तारवादी नीति का बखान करता नजर आता है। ऐसा ही एक वीडियो भारत में भी वायरल हो रहा है, जिसमें पटियाला की एक डॉक्टर 18 बच्चों के पिता के बयान के बारे में बात करती नजर आ रही हैं।
डेनमार्क के वीडियो में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करता मुस्लिम व्यक्ति गलत नहीं कह रहा है, यूरोप में ही क्या दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म मुस्लिम ही है। हालाँकि, अब एक्स-मुस्लिमों (ऐसे मुस्लिम जिन्होंने मजहबी कट्टरता के चलते इस्लाम त्याग दिया) की बढ़ती संख्या को देखते हुए इस पर भी विमर्श शुरू हो रहा है।
फिलहाल नॉर्वे की बात करें तो, यहां मुस्लिम आबादी को जो विस्फोट हुआ उसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस यूरोपीय देश में ईसाई धर्म के बाद दूसरे नंबर पर सबसे बड़ा धर्म इस्लाम ही है। स्वीडन में हालात और बदतर नजर आ रहे हैं जहाँ पर स्थानीय आबादी अल्पसंख्यक होने की कगार पर पहुँच गई है।
एक रिपोर्ट की बात करें तो, अगले 45 वर्षों में स्वीडिश लोग अपने ही देश में अल्पमत में आ जाएंगे। रिपोर्ट में मुस्लिम शरणार्थियों के बारे में यह भी बताया गया है कि यह स्थानीय लोगों से घुलने-मिलने के बजाए अपने घेट्टो बना रहे हैं। घेट्टो उस झोपड़पट्टी नुमा इलाके को कहते हैं, जिसमें एक ही समुदाय के लोग बेहद गंदे और भीड़भाड़ वाले माहौल में रहते हैं।
तकरीबन यही हालात पूरे यूरोप में दिखाई देता है, जहाँ उनका मानवीकरण उनकी ही संस्कृति के लिए खतरा बनते नजर आ रहा है। पूरी दुनिया से शरणार्थियों को स्वीकार तो किया जा रहा है लेकिन, नीतियों की कमी में यह शरणार्थी ना सिर्फ अपनी आबादी बढ़ा लेते हैं बल्कि इस स्थिति में आ जाते हैं कि देश के महत्वपूर्ण निर्णयों पर प्रभाव डाल सकें।
अक्सर यह कहा जाता है कि, मुस्लिम आबादी में आई तेजी का कारण धर्म नहीं शिक्षा है। लेकिन, यह बात कहाँ तक सच है जब ऐसे बयान सामने आते हैं। पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री का बयान था कि, मुस्लिमों को गैर-मुस्लिम देशों में जाकर बच्चे पैदा करने चाहिए। ऐसे समय वो विश्व में सिर्फ आबादी बढ़ाने की नहीं बात करते हैं एक मुस्लिम देश बनाने की कर रहे होते हैं।
हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की जनसंख्या में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 14 प्रतिशत यानी 17.22 करोड़ से ज्यादा है जो कि 1951 में मात्र 3.4 करोड़ थी। जनसंख्या के साथ मुस्लिम आबादी के प्रजनन दर में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसमें मुस्लिम आबादी की दर औसत से अधिक पाई गई है।
भारत में भी एक तबके से भड़काऊ बयान सामने आते रहते हैं। जहाँ AIMIM के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान देते हैं कि, पुलिस को 15 मिनट हटा दो और हम 100 करोड़ हिंदूओं का सफाया कर देंगे। AIMIM के ही असद्दुदीन औवेसी ने कहा था, “जब मोदी हिमालय चला जाएगा और योगी मठ चला जाएगा तो तुमको बचाने कौन आएगा। याद रखना।”
AIMIM पार्टी की यह परंपरा ही नजर आती है क्योंकि इसी पार्टी के नेता का बयान सामने आता है कि, हम 15 करोड़ हैं लेकिन, 100 करोड़ के ऊपर राज करेंगे।
यह ‘सर तन से जुदा’ से जुदा करने वाली मानसिकता नई नहीं है यह वो आवाज है जो देश के कई हिस्सों से सुनाई देती है। नुपूर शर्मा का ही मामला ले लें तो गलत और सही की परिभाषा से इतर उनको मिली जान से मारने की धमकियां लोकतांत्रिक तरीका तो नहीं है।
नॉर्वे में कुरान जलाने पर हिंसक प्रदर्शन, फ्रांस में एक कार्टून बनने पर कई मुस्लिम देशों द्वारा गोलबंदी करना एकेश्वरवाद को दुनिया पर थोपने जैसा ही नजर आता है।
किसी की आबादी बढ़ने को निशाना बनाकर उन्हें बुरा नहीं बताया जा सकता लेकिन, समस्या तब खड़ी हो जाती है जब यही आबादी अपने आपको लोकतंत्र को प्रभावित करने की स्थिति में ला खड़ा करती है।
समस्या तब खड़ी होती है जब वह अपने स्वधर्म को लोकतंत्र का धर्म बनाने की कोशिश करते हैं। समस्या तब खड़ी होती है जब लोकतांत्रिक देश में रहकर उसका इस्लामीकरण किया जाता है।