पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र (UN) के संगठन UNFPA द्वारा भारत की जनसंख्या के सम्बन्ध में जारी की गई एक रिपोर्ट पर खूब शोर मचा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है। अब पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले कुछ समय से जारी जनगणना के आँकड़े सामने आ गए हैं।
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिक्स (PBS) पिछले कुछ समय से पूरे पाकिस्तान में जनगणना करवा रहा है। इस बार पाकिस्तान में जनगणना डिजिटल तरीके से हो रही है। पाकिस्तान में जनगणना के नए आंकड़ो के अनुसार, अब पाकिस्तान की जनसंख्या 24,95,66,743 हो चुकी है। इससे पहले वर्ष 2017 में जनगणना की गई थी।
वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान की जनसंख्या 20.7 करोड़ थी। नई जनगणना में सामने आया है कि पाकिस्तान का पंजाब प्रांत सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है। पंजाब की जनसंख्या 12.74 करोड़ है जबकि सिंध की जनसंख्या 5.79 करोड़ है।
वहीं, कबाइली इलाकों वाले राज्य खैबर पख्तून्ख्वाह की जनसंख्या 3.98 करोड़ और पाकिस्तान का दमन झेल रहे रहे राज्य बलूचिस्तान की जनसंख्या 2.19 करोड़ है। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद, जिसका प्रशासन पाकिस्तान की केंद्र सरकार के हाथों में है, उसकी जनसंख्या 23.5 लाख है।
यह भी पढ़ें: कंगाल पाकिस्तान ने सिन्धु जल समझौते की कानूनी लड़ाई के लिए कहाँ से जुटाए 15.3 करोड़ रुपए
पाकिस्तान में इस बार की जनगणना पूरी तरह डिजिटल तरीके से की गई है, जनगणना करने वाले कर्मियों को टैबलेट दिए गए थे। इस जनसंख्या की शुरुआत फरवरी माह से की गई थी, इसमें नागरिकों को अपने आप जानकारी भरने का भी विकल्प दिया गया था।
पहले इस जनगणना को अप्रैल माह तक पूरा कर लेने का लक्ष्य था लेकिन बाद में इसकी तारीख बढ़ा दी गई थी। PBS का कहना है कि वह जल्द ही यह आँकड़े चुनाव आयोग को उपलब्ध करा देगा। चुनाव आयोग आने वाले पाकिस्तानी चुनावों में इन आंकड़ों के आधार पर प्रबन्धन कर सकेगा।
अभी सामने आए आंकड़े शुरूआती हैं और इनमें थोड़ा बहुत बदलाव होने की संभावना है। पाकिस्तान में इस जनगणना पर राजनीतिक विवाद भी हुआ था। पाकिस्तान में जनसंख्या के यह आंकड़े बिजनेस रिकॉर्डर के अखबार ने PBS के हवाले से बताए हैं।
इस जनगणना पर पाकिस्तान के मुख्य विपक्षी दल पाकिस्तान तहरीक ए इन्साफ (PTI) और वर्तमान पाकिस्तानी सरकार में शामिल पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) समेत मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) ने सवाल उठाए हैं। PTI ने इस जनगणना के विरोध में पूरे पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन किए हैं। उसका कहना है कि कराची समेत कई क्षेत्रों की जनसंख्या कम करके दिखाई जा रही है।
सबसे ज्यादा विरोध कराची की जनसंख्या को लेकर हो रहा है। कराची जनसंख्या के लिहाज से पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर है। अप्रैल में शहर की जनसंख्या के लगभग 90% पूरा होने पर भी इसमें 15.8% की कमी देखी गई थी। इस दौरान 1.34 करोड़ का आँकड़ा सामने आया था जो कि पिछले 1.61 करोड़ से कम है।
जबकि मई की शुरुआत आते-आते यह आँकड़ा लगभग 1.79 करोड़ पहुँच गया था। उधर कराची के अलावा भी ऐसे इलाकों की जनगणना में गड़बड़ी का आरोप लगाया गया था जहाँ जनसंख्या बढ़ने की दर तेज थी। इस बात को लेकर सिंध के मुख्यमंत्री ने पत्र भी लिखा था। जनसंख्या को कम करके गिनने के आरोपों पर PPP ने सरकार तक छोड़ने की धमकी दी थी।
इस जनगणना में लोगों को कम करके गिनने के अलावा कई जनजातियों को न गिनने और जनगणना से बाहर रखने का आरोप लगाया है। हिन्दुओं और ईसाइयों पर अत्याचार के लिए कुख्यात पाकिस्तान पर इन समूहों ने भी यह आरोप लगाया है कि उनकी जनगणना सही से नहीं हो रही। जनगणना करने वाले कर्मचारी कई चर्च को छोड़ रहे हैं जबकि वहां पर लोग रहते हैं।
पाकिस्तान की इस जनगणना में मुस्लिमों के अतिरिक्त, हिन्दू, सिख, पारसी, ईसाई और अनूसूचित वर्ग का विकल्प रखा गया है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान में शोषण और उत्पीड़न का दंश झेल रहे अहमदियों को अलग धर्म का दर्जा दिया गया है।
पाकिस्तान से सामने आए जनसंख्या के नए आंकड़े उसके लिए मुसीबत की तरह हैं। पाकिस्तान वर्तमान में भयानक आर्थिक संकट में फंसा हुआ है, बढती जनसंख्या के लिए भोजन और आवास का इंतजाम करना पाकिस्तान के लिए एक और समस्या होगा।
पाकिस्तान में जनसंख्या बढ़ने की दर को देखा जाए तो यह पिछले 6 वर्षों में लगभग 20% की वृद्धि हो गई है। वर्तमान में पाकिस्तान के पास बाहर से जरूरी सामान मंगाने के लिए तक डॉलर उपलब्ध नहीं हैं। पाकिस्तान अपनी जरूरत की चीजे भारी मात्रा में बाहर से आयात करता है। पाकिस्तान का रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है।
जहाँ भारत की बड़ी जनसंख्या उसके लिए एक बड़ा उपभोक्ता बाजार और ज्यादा काम करने वाले हाथों के रूप में परिणित होती है वहीं पाकिस्तान में शिक्षा और एक मजबूत मध्यम वर्ग के अभाव के कारण उसके लिए यह एक समस्या बनती है।
यह भी पढ़ें: भारत की जनसंख्या: जानिए UN के आंकड़े क्यों नहीं हैं चिंता की वजह