भयानक आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में सरकार और न्यायपालिका के बीच नई जंग छिड़ गई है। 21 जनवरी को पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJP) की शक्तियाँ कम करने वाले विधेयक को कानून के तौर पर लागू कर दिया गया है।
पाकिस्तान के गजट में इसकी सूचना दी गई है। नया कानून पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की बेंच का निर्धारण करने और स्वतः संज्ञान लेने की शक्तियों पर रोक लगाता है।
बीते कुछ दिनों से पाकिस्तान में गठबंधन सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने सामने हैं। दोनों के बीच मध्यावधि चुनावों को लेकर रस्साकशी चल रही है। पाकिस्तान में वर्तमान में कभी एक दूसरे की धुर विरोधी रहीं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (PML-N) की सरकार है।
यह सरकार पिछले वर्ष इमरान खान के विश्वास मत खोने के बाद सत्ता में आई थी। जब से यह सरकार सत्ता में आई है तब से ही लगातार इमरान खान और सरकार के बीच गतिरोध बरकरार है। दोनों के बीच की इस लड़ाई में अब सुप्रीम कोर्ट की एंट्री हो चुकी है।
पूरा मामले में पाकिस्तान में राज्यों के चुनाव से जुड़ा हुआ है। दरअसल, पिछले वर्ष सत्ता से बाहर होने के बाद इमरान खान लगातार सरकार पर यह दबाव बनाते आए हैं कि वह जल्द ही नए चुनाव कराए। पाकिस्तान में राज्य और केंद्र चुनाव एक साथ होते हैं। शहबाज शरीफ की सरकार कम से कम अक्टूबर तक चुनाव कराने के मूड में नहीं है। उसके चुनाव ना कराने के पीछे अपने तर्क हैं।
उसका कहना है कि देश में भयानक आर्थिक संकट है और साथ ही यह सरकार पूरी तरीके से वैध है इसलिए इमरान के कहने पर चुनाव क्यों कराए जाएं। अलग-अलग चुनाव कराने में होने वाला खर्चा देश अर्थव्यवस्था सहन नहीं कर सकती।
इमरान ख़ान ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए अब तक रैलियाँ, बड़े जलसे और अन्य कई हथकंडे अपनाए हैं परन्तु सरकार बिलकुल भी झुक नहीं रही है। फरवरी माह में इमरान ने केंद्र सरकार को चुनाव पर मजबूर करने के लिए एक नया पैंतरा चला था।
इमरान ने अपनी पार्टी तहरीक ए इन्साफ (PTI) के सत्ता वाले राज्यों पंजाब और खैबर पख्तून्ख्वाह की राज्य विधानसभाएं भंग कर दी थीं। इसके अतिरिक्त इमरान खान की पार्टी के सांसदों ने भी बड़ी संख्या में देश की नेशनल असेम्बली से इस्तीफ़ा दे दिया था।
इसके पीछे इमरान का यह सोचना था कि जब देश के दो बड़े सूबों में सरकार ही नहीं होगी तो ऐसी स्थिति में केंद्र को चुनाव कराने ही पड़ेंगे और राज्य और केंद्र के चुनाव एक साथ होते हैं इसलिए उसका मकसद पूरा हो जाएगा। यहाँ पर इमरान की बाजी उलटी पड़ गई। शहबाज शरीफ की सरकार ने चुनाव कराने से मना कर दिया।
इमरान के खिलाफ कई केस भी खोल दिए गए जिनमें से तोशाखाना वाले एक केस को लेकर इमरान के समर्थकों और पुलिस के बीच खासी झड़प भी हुई थी। इसी को लेकर यह पूरा कानूनी दांवपेंच चालू हुआ था।
पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों को लेकर कोई एक्शन नहीं लिया था, जबकि पाकिस्तान के संविधान में यह कानून है कि विधानसभा या नेशनल असेम्बली भंग होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव कराए जाने चाहिए। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने देश के उत्तर पश्चिमी हिस्सों- खैबर और बलोचिस्तान में हिंसा के बढ़ने और खराब आर्थिक हालत का हवाला देकर चुनाव कराने में अपनी असमर्थता जताई थी।
इसको लेकर इमरान खान की पार्टी से आने वाले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने खुद ही चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था।
अल्वी के ऐसा किए जाने के बाद उनकी आलोचना हुई थी और यह भी प्रश्न उठा था कि राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में चुनाव की तारीखों का ऐलान करना आता है या नहीं। इसके बाद ही यह पूरा ड्रामा चालू हुआ है।
चुनावों को लेकर सरकार द्वारा ना नुकुर किए जाने पर फरवरी माह में पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंडिआल ने स्वतः संज्ञान ले लिया था और मामले पर एक 9 सदस्यीय संवैधानिक बेंच का गठन किया था।
इनमें से चार जजों ने अपना नाम मुकदमे की सुनवाई करने से वापस ले लिया था। इसके बाद पुनः बेंच का गठन किया गया था। इस मामले में फिर ड्रामा हुआ और दो और जजों ने नाम वापस ले लिए।
बेंच निर्धारण के ऊपर भी पाकिस्तान में काफी बवाल हुआ था। इसके पश्चात तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की। इसी मामले की सुनवाई करते हुए 4 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चुनाव आयोग 14 मई को दोनों सूबों में चुनाव कराए। इससे पहले पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने फैसला किया था कि चुनावों को अक्टूबर तक टाल दिया जाए।
इसके बाद ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच गतिरोध का नया दौर चालू हुआ। पाकिस्तान की गठबंधन सरकार ने यह फैसला मानने से मना कर दिया।
इसको लेकर नेशनल असेंबली में एक प्रस्ताव भी पास किया गया। इससे पहले पाकिस्तान ने न्यायपालिका की शक्तियों को कम करने वाला विधेयक 28 मार्च को पाकिस्तान की कैबिनेट में पेश किया गया था जहाँ इसे मंजूरी मिल गई थी। यह कानून पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किसी मामले को स्वतः संज्ञान में लेने की शक्ति को सीमित करता है।
नए कानून के तहत CJP और दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति यह तय करेगी कि किसी मामले को न्यायपालिका द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया जाए या नहीं। इससे पहले यह अधिकार CJP के पास था।
31 मार्च को इसे नेशनल असेम्बली से भी मंजूरी मिल गई थी। जिसके बाद इस कानून को इमरान खान की तहरीक ए इन्साफ से संबंध रखने वाले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने लौटा दिया था। पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के एक संयुक्त सत्र में इस कानून को दोबारा 10 अप्रैल को पास कर दिया गया था।
अब पाकिस्तान की सरकार ने इस बिल को कानून की हैसियत दे दी है। इस कानून को 19 अप्रैल को दोबारा पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से मना कर दिया था।
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने का भी एक आदेश पारित किया हुआ है। अब न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच का यह गतिरोध और गहरा रहा है।
वहीं प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने नेशनल असेम्बली की सर्वोच्चता की बात कही है। पाकिस्तान के सत्ताधारी गठबंधन के समर्थकों का कहना है कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश इमरान खान द्वारा लाए गए थे इसलिए वह उन्हें फायदा पहुंचाने वाले फैसले ले रहे हैं।
हाल ही में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 20 अरब रुपए(पाकिस्तानी) दोनों चुनावों के लिए उपलब्ध कराने को कहे थे, पाकिस्तान की सरकार ने इसको लेकर भी वित्त विधेयक नेशनल असेम्बली में पास नहीं होने दिया।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि न्यायपालिका द्वारा स्वतः संज्ञान जनता के सार्वजनिक हितों के लिए जाने चाहिए ना कि किसी एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए।
पाकिस्तान में जारी सुप्रीम कोर्ट और शरीफ सरकार के बीच जारी इस गतिरोध का क्या हल निकलता है देखने वाली बात होगी।
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