अमेरिका की तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान की तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के सामने इस्लामाबाद में ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की ओर संकेत करते हुए टिप्पणी की थी कि “Snakes in your backyard won’t bite only your neighbors”
यह बात पाकिस्तान पर सटीक बैठ रही है क्योंकि पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों में प्रभावशाली तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने अपनी नई सामानांतर सरकार की घोषणा कर दी है।
TTP, अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में लौटे तालिबान को ही अपना आदर्श मानता है और तालिबान की ही तर्ज पर शासन करना चाहता है। TTP अपनी नई सरकार के लिए प्रधानमंत्री समेत रक्षा, ज्यूडिशरी, इनफार्मेशन, पॉलिटिकल अफेयर्स, एजुकेशन आदि कई पोर्टफोलियो भी बाँट चुका है।
अपनी नई सरकार की घोषणा के साथ ही TTP ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (POJK) के क्षेत्रों को भी अपना हिस्सा बताया है।
TTP द्वारा नए सरकार के गठन से पाकिस्तान की मौजूदा सरकार के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना को भी चुनौती दे दी है। TTP अफ़ग़ान तालिबान के सत्ता में वापसी के साथ ही पाकिस्तानी सरकार, सेना और उनके समर्थकों पर भी हमलावर रही है।
पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अपने कार्यकाल के अन्तिम वर्ष यानी मई 2022 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से समझौता कर लिया। मसलन:
- अनिश्चितकाल के लिए TTP और सेना के बीच संघर्ष विराम।
- पाकिस्तानी जेलों में बन्द TTP के लड़ाकों को रिहा करना।
- पश्तून बहुल क्षेत्र से सैनिकों की संख्या कम करना।
हालाँकि, टीटीपी ने छ: महीनों में ही सीज़फायर को मानने से इंकार कर दिया था, साथ ही अपने लड़ाकों को पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ फिर से हमले करने के आदेश दे दिए थे।
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान के लिए 1971 जैसी स्थिति पैदा होने लगी है। जब पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में एक अलग देश बना।
TTP कौन है?
तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सभी चरमपंथी संगठनों को एकजुट करने के लिए 2007 में गठित एक आतंकवादी गठबंधन है। TTP के घोषित उद्देश्यों में पाकिस्तान में संघ प्रशासित जनजातीय क्षेत्रों (FATA) और पड़ोसी खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में इस्लामाबाद के प्रभाव को ख़त्म करना, पूरे पाकिस्तान में शरिया को सख्ताई से लागू करना।
TTP समूह के नेता सार्वजनिक रूप से यह भी कहते पाए जाते हैं कि वे पाकिस्तान में एक इस्लामी खिलाफत स्थापित करना चाहता है, जिसके लिए पाकिस्तानी सरकार को उखाड़ फेंकना होगा। TTP का इतिहास देखने पर पता चलता है कि TTP, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के अन्य आतंकी संगठनों से भी सम्बन्ध रखती है। इसमें प्रमुख तौर पर 9/11 हमले का जिम्मेदार आतंकी संगठन अल-कायदा भी शामिल है। TTP में पाकिस्तान के अल-कायदा के संचालन के पूर्व प्रमुख भी शामिल थे।
अलक़ायदा द्वारा किए गए 9/11 हमले के बाद जब अमेरिका ने अफ़ग़ान तालिबान से ओसामा-बिन-लादेन को प्रत्यर्पित करने की मांग की, जिसे तत्कालीन तालिबान सरकार ने खारिज कर दिया था। इस घटना के बाद अमेरिका ने अपनी अलाइड फोर्स के जरिए तालिबान पर हमले किए और अन्तत: तालिबान को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
वर्ष 2004-05 के करीब अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के दबाव में तालिबान समर्थकों पर पाकिस्तान सरकार द्वारा सैन्य कार्रवाई की गई थी। इस घटना के बाद अफ़ग़ान तालिबान के समर्थन से कई छोटे-छोटे आतंकी संगठनों ने मिलकर पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए TTP की नींव रखनी शुरू की।
एक संगठन के रूप में TTP जुलाई 2007 में अस्तित्व में आया। जब इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के निर्देश पर एक सैन्य कार्रवाई की गई थी। यह सैन्य कार्रवाई तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के निर्माण में ताबूत की आखिरी कील साबित हुई।
TTP जो मुख्य रूप से पाकिस्तान के दक्षिणी वज़ीरिस्तान में मौजूद था। अब धीरे-धीरे पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में भी अपना दबदबा बना चुका है। पश्तून समर्थित आंदोलन से उपजा यह संगठन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे पश्तून आबादी को बाँटने वाली डुरंड लाइन (दोनों देशों के बीच अन्तरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण करने वाली रेखा) को भी मानने से इंकार करता है, जो पाकिस्तान के लिए लम्बे समय से एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
तालिबान की पैरोकारी करता पाकिस्तान
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी में पाकिस्तान की अहम भूमिका रही है। भारत जहाँ अफ़ग़ानिस्तान में हालात सामान्य बनाने की कवायद में लगा रहा, वहीं पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी का समर्थन कर रहा था।
अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी सरकार, जिसका भारत से सम्बन्ध अच्छे हो, यह पाकिस्तान के लिए कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता है। भारत ने बीते कुछ वर्षों में अफगानिस्तान में लगातार बड़े स्तर पर निवेश किया। भारत सरकार द्वारा कई बड़ी परियोजनाओं को पूरा भी कर लिया गया था जबकि कई परियोजना पूरी होने वाली थी।
भारत ने अफगानिस्तान में लगभग 3 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था, जिस पर तालिबान की वापसी के बाद आंशिक रूप से अनिश्चिचता की स्थिति पैदा हो गई है। भारत इस समय भी मानवीय आधार पर अफ़ग़ानिस्तान को कई तरह की सहायता दे रहा है और अधूरे पड़े कई परियोजनाओं को पूरा करने पर भी विचार कर रहा है।
पाकिस्तान में गृह-युद्ध जैसे हालात
पाकिस्तानी हुकूमत को अपेक्षा थी कि अफ़ग़ान तालिबान को समर्थन के बदले वह पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पर लगाम लगाएगा। उस समय तक दोनों एक-दूसरे की पीठ खुजाने में लगे हुए थे। हालाँकि, मौजूदा हालात इसके विपरीत दिखाई दे रहे हैं।
बीते एक साल में ही पाकिस्तान के पश्चिमी बॉर्डर पर TTP द्वारा कई हमलों में सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया गया जबकि कई फिदायीन हमले में पाकिस्तानी एस्टाब्लिशमेंट्स को निशाना बनाया गया है।
दिसम्बर, 2022 में TTP के आतंकियों द्वारा पाकिस्तान काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट के मुख्यालय पर हमलाकर कई ऑफिसर्स को होस्टेज बना लिया गया था। इसके अलावा काबुल स्थित दूतावास में भी पाकिस्तानी राजदूत पर जानलेवा हमला किया गया था। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रोविंस (ISKP) ने ली थी, जो 2014 में TTP से अलग होकर अस्तित्व में आया है।
पाकिस्तान में TTP अकेला आतंकी संगठन नहीं है जो आज़ादी और बँटवारे की माँग कर रहा है। पाकिस्तान के आर्थिक हितों के लिए बेहद जरूरी माने जाने वाले बलूचिस्तान में भी लम्बे समय से आज़ादी की माँग उठती रही है।
पाकिस्तानी सरकार द्वारा यहाँ के लोगों और प्राकृतिक सम्पदाओं का भरपूर दोहन किया जाता है लेकिन बदले में इन्हें पाकिस्तानी सेना की द्वारा प्रताड़ित किया जाता रहा है।
बलूचिस्तान प्रान्त में कई संगठनों द्वारा सशस्त्र विद्रोह जारी है, जिनमें बलूच लिबरेशन फ्रंट और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी प्रमुख हैं। छापामार पद्धति में माहिर यह संगठन लगातार पाकिस्तानी एस्टाब्लिशमेंट्स को निशाना बनाते रहते हैं। इन हमलों में आए दिन पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की खबरें आती रहती हैं। IED ब्लास्ट के फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं।
इसके अलावा पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में भी सशस्त्र विद्रोह करने वाले संगठन सक्रिय हैं। जिसमें सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी प्रमुख संगठन है। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (POJK) से भी लगातार आज़ादी की माँग उठती रहती है।
अब देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान जैसा देश जो एक तरफ राजनीतिक अस्थिरता, दूसरी तरफ आर्थिक संकट से जूझ रहा है। पाकिस्तान में आज़ादी की माँग कर रहे यह संगठन अलग-अलग मोर्चे पर पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को इन मोर्चों को लम्बे समय तक संभाल पाएगा या फिर यह पाकिस्तान के अस्तित्व का संकट का प्रमुख कारण बनेगा?