पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने सयुंक्त राष्ट्र महासभा में बयान दिया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ ही पाकिस्तान भी अफगानिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से सहमा हुआ है। उन्होंने कहा कि फिलहाल पाकिस्तान में आईएसआईएस, टीटीपी और अल-ऐदा जैसे संगठन सक्रिय हैं और इनके खिलाफ कड़े कदम उठाना जरूरी है।
बहरहाल, पाकिस्तान के इस दोहरे रवैए पर काबुल तालिबान के साथियों, अफगानिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ताओं और पख्तूनख्वा के लोगों द्वारा कड़ी आपत्ति जताई गई है। खैबर पख्तूनख्वा के एक कार्यकर्ता ने तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को याद दिलाया है कि उनके ही देश की सेना ने खैबर पख्तूनख्वा के कई क्षेत्र चरमपंथी संगठन टीटीपी को सौंपे थे।
अफगानिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से सहमे पाकिस्तान के ऐटाबाद में ही तो उसके विश्वसनीय सहायताकर्ता अमेरिका ने आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को 2011 में मार गिराया था। अब पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक कर रहा है जिससे आतंकवाद से लड़ा जा सके। हालाँकि, भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे मसूद अजहर पर कार्रवाई के नाम पर वो चुप्पी क्यों साध लेता है?
पाकिस्तान पीएम शाहबाज शरीफ ने यूनाइटेड नेशन की महासभा में कहा था कि दुनिया के सभी मुख्य आतंकवादी संगठन अफगानिस्तान से संचालित हो रहे हैं, जो कि विश्व और पाकिस्तान के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। तालिबान की 20 साल की गुलामी का नतीजा आज यह है कि वह खुद को खत्म महसूस कर रहे हैं।
शाहबाज शरीफ ने यूएन की महासभा में अफगानिस्तान की आलोचना कर के अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताया है कि जो भी अफगानिस्तान का शासन चला रहा है, पाकिस्तान उसका समर्थन नहीं करता है।
शाहबाज शरीफ के बयान को अशरफ गनी के ट्वीटर फॉलोअर्स फैला रहे हैं। दोनों का मकसद अफगानिस्तान और पख्तूनख्वा दोनों प्रांतों का खात्मा है। हालाँकि, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति राष्ट्रपति हामिद करजई और तालिबान ने भी पाक पीएम की बातों का खंडन किया है।
पाकिस्तान के दोहरे रवैए पर पश्तून बुद्धिजीवी और खैबर पख्तूनख्वा के राजनीतिज्ञ अफरासियाब खट्टकी ने कहा कि यूनाइटेड नेशन में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वार दिए बयान को कोई गंभीरता से कैसे ले सकता है? पाकिस्तान ही तो आतंकवाद का निर्माता है, यही तालिबान के आतंकवादियों का प्रशिक्षक और निर्यातकर्ता है।
शाहबाज शरीफ ने ही तो टीटीपी को खैबर पख्तूनख्वा के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा करने की इजाजत दी थी। इसका मुद्दा शाहबाज शरीफ पाकिस्तान की संसद में क्यों नहीं उठाते हैं। इसका कारण यह भी है कि यहाँ के नागरिकों को देश की अफगानिस्तान के साथ नीतियों पर बोलने की आजादी नहीं है।
पाकिस्तान की यह दोतरफा नीति 1980 से जारी है, जब पाकिस्तान उन पश्चिमी समूहों का समर्थन कर रहा था जो सोवियत संघ को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे थे, चीन भी इसका समर्थक रहा था। हालाँकि, अब चल रहे नए शीत युद्ध में पाकिस्तान के बीच वो ताकत नहीं बची है।
2014 में पाकिस्तान में हुए तख्तापलट ने इसकी हालत ओर खराब कर ही दी थी कि अब हाल ही में इमरान सरकार को हटाकर वहाँ पाक के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ सरकार चला रहे हैं। और, वही अफगान के आतंकवादी संगठनों से ‘आतंकित’ होने की बात कर रहे हैं।
पाकिस्तान के लिए यह जरूरी है कि वो महा शक्तियों के साथ संतुलन बना कर रखे लेकिन, इसके लिए भी देश में संतुलन और स्थिरता होनी चाहिए। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अपने निचले स्तर पर है। देश के संचालन के लिए सरकार के पास दो ही रास्ते हैं कि या तो वो चरमपंथी घटनाओं पर अंकुश लगा कर विकासशील योजनाओं को बढ़ावा दे या अपने पश्चिमी सहयोगियों की योजनाओं में सहयोग करे। अब पाकिस्तान के वर्षों के इतिहास को देखें तो विकल्प स्पष्ट नजर आता है।
पाकिस्तान की रणनीति में अबतक कोई बुनियादी बदलाव सामने नहीं आया है। लोकतांत्रिक परिवेश और आर्थिक मदद के लिए पाकिस्तान को आज भी तख्तापलट करने वाले और पश्चिम से वित्तपोषण करने वाले संस्थानों पर निर्भर रहना पड़ता है।
ऐसे में अफगानिस्तान को आतंकवाद का पनाहगार साबित करना पाक की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। बहरहाल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। एक कार्यकर्ता वली स्टानिकज़िक ने कहा है कि जहाँ-जहाँ अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं है, वहाँ पाकिस्तान उसका स्थान ले लेता है।
वहीं, अभी अज्ञात सूत्रों से यह भी खबर आई है कि पाकिस्तान पुलिस द्वारा अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के क्वेटा स्थित घर छापा मारा गया है। इसमें उसकी पत्नी और 16 वर्षीय बेटी को पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहाँ उन पर नकली पहचान पत्र बनाने का आरोप लगाया गया है। दोनों महिलाएं एयरपोर्ट रोड पुलिस स्टेशन में बंद है, जहाँ से खिलजी जनजाति गठबंधन उन्हें छुड़ाने की कोशिश कर रहा है।
शाहबाज शरीफ के खिलाफ अफगानिस्तान सरकार में विदेश मंत्री अमीर मुत्ताकी पाकिस्तान का नाम नहीं ले सकता है उसको पाकिस्तान में स्थित उसकी संपत्ति की भी चिंता है। मुत्ताकी के लिए यह संभव था कि वो पाकिस्तान की इस तरह गुलामी नहीं करता अगर क्वेटा में उसकी संपत्ति नहीं होती।
अफगानिस्तान के हमीदुल्लाह ओमारी ने पाकिस्तान की कर्ज उतारने की योजना पर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामिक अमीरात को प्रशासन में ऐसे लोगों को जगह नहीं देनी चाहिए जो अफगानिस्तान की सेवा करना नहीं जानते। पाकिस्तानी सूदखोरों और प्रभाव में लेने वाले लोग अफगानिस्तान की छवि को धूमिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
खैबर पख्तूनख्वा में सक्रिय एक कार्यकर्ता सुलेमान ने कहा कि वो यहाँ केवल युद्ध चाहते हैं। अमेरिका के लिए अफगानिस्तान युद्ध का क्षेत्र है। पाकिस्तान की सेना और अमरुल्ला सालेह के समूह राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (NRF) एक दूसरे के सहयोगी हैं और देश के दुश्मन हैं।
शहबाज शरीफ के बयान पर पूरे अफगानिस्तान में उबाल है। अफगानिस्तान के लगमान प्रांत के नसीबुल्लाह जाहिदी का कहना है कि पाकिस्तान इस बात से मुँह नहीं मोड़ सकता कि आतंकवाद को वैश्विक परिदृश्य में लाने का काम उसने ही किया है। दहेश यानी आईएसआईएस का उदय पाकिस्तान से हुआ था, तहरीके-ए-तालिबान (TTP) पाकिस्तान में पल-बढ़ रहा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान को उसके दोहरे रवैए के लिए सजा मिलनी चाहिए।
पंजाब तो हमेशा से ही आतंकवाद का गढ़ रहा है जहाँ कई आतंकवादी संगठनों का उदय हुआ और अभी भी वहाँ मौजूद है, जिनमें जैश-उल-अद्ल, लश्कर-ए-झंगवी, जैश-ए-मुहम्मद, सिपाह-ए-सहाबा, तहरीक-ए-जाफरिया, तहरीक-ए-इस्लाम, जमात-ए-फुरकान, जमात-उद-दावा, अहरार-उल-हिंद इनमें शामिल है।
हालाँकि, पाकिस्तान के दोमुँहे रवैए पर मुत्ताकी का कोई जवाब नहीं आया है। लोगों का कहना है कि वो अफगानिस्तान में पाकिस्तान का ही प्रतिनिधित्व करता है।
इस पूरे परिदृश्य में पाकिस्तान के अमेरिका से संबंध साफ नजर आ रहे हैं तो अमेरिका भी अफगानिस्तान में शांति नहीं चाहता है। अफगानिस्तान के लोगों का मानना है कि आतंकवाद के मुद्दे पर देश को भारत से बात करनी चाहिए जो कि खुद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है।
न्यूयॉर्क की अपनी यात्रा पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी यूएन महासभा में बिना पाकिस्तान और चीन का नाम लिए कहा था कि आतंकवाद का संरक्षण करने के समर्थन में कोई भी बयान या सफाई खून के दागों को नहीं ढँक सकता है।
उन्होंने कहा था कि जो देश आतंकवादियों की रक्षा करने के लिए यूएनएससी 1267 प्रतिबंध का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे ना तो अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं ना ही अपने देश की प्रतिष्ठा को।
बहरहाल, पाकिस्तान यूएनजीए में जा कर आतंकवाद को बढ़ाने का ठीकरा अफगानिस्तान पर फोड़ रहा है लेकिन, इसमें उसके अलग ही हित नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान आतंकवाद को गढ़ रहा है इसी कारण वो वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (FATF) की लिस्ट में शामिल है। हाल ही में पाकिस्तानी सेना ने खैबर पख्तूनख्ता के कई क्षेत्र चरमपंथी संगठन तहरीक-ए -तालिबान को सौंप दिए थे।
बीते वर्ष अफगानिस्तान में तालिबान शासन का पाकिस्तान ने स्वागत किया था। अब एक वर्ष में ही पाकिस्तानी सरकार के सामने कौनसी ज्योति प्रज्वलित हुई है जो उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अफगान पर दोषारोपण को मजबूर कर रही है?