पाकिस्तान 100 अरब डॉलर के कर्ज के नीचे दबा हुआ है। इसमें से 21 अरब डॉलर तो इसी वित्तीय वर्ष में चुकाने हैं। वहीं अगले तीन सालों में करीब 70 अरब डॉलर की देनदारी है। इस समय पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 4.6 अरब डॉलर रह गया है। उसमें भी लगातार गिरावट देखी जा रही है।
ऐसे में पाकिस्तान किस तरह से ऋण चुका पाएगा? यह ऐसा प्रश्न है जिसके उत्तर की तलाश में पाकिस्तान की सरकार भी परेशान दिखाई दे रही है।
विश्व बैंक द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था इस समय एशिया की सबसे कमजोर अर्थव्यवस्था है। 2023 में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर 2% के आस-पास रह सकती है जो किसी भी विकासशील देश के लिए खतरे का संकेत है। ऐसे में तमाम क़यास लगाए जा रहे हैं और उनमें से एक यह है कि 2025 या उससे पहले ही पाकिस्तान दिवालिया देश घोषित हो जाएगा।
पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति अचानक आई किसी आपदा का परिणाम नहीं है। यह 70 वर्षों से भी अधिक समय तक उसके द्वारा लिए गए निर्णयों और नीतियों के परिणाम है। आज उसे वैश्विक सहायता मिलनी भी मुश्किल हो रही है। इमरान खान सरकार के दौरान IMF ने पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर देने का वादा किया था। परन्तु आर्थिक हालात को देखते हुए IMF ने इसके भुगतान पर रोक लगा दी है। मुद्रा कोष पहले ही पाकिस्तान को 23 बार कर्ज दे चुका है। वहीं विश्व बैंक से भी पाकिस्तान को 1.1 बिलियन डॉलर का लोन मिलने की उम्मीद थी लेकिन विश्व बैंक ने भी फिलहाल इसे रोक दिया है।
पाकिस्तान की इस आर्थिक स्थिति की चर्चा पिछले कई वर्षों से हो रही थी लेकिन अब सरकार भी हथियार डालती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने संयुक्त अरब अमीरात के चैनल अल अरेबिया को दिए इंटरव्यू में भारत से वार्ता करने की बात रखी। उन्होंने कहा कि उन्होंने तीन युद्धों से सबक ले लिया है।
हालाँकि, इसके तुरन्त बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कश्मीर मुद्दे को आगे कर दिया गया। अब इसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा। दिवालिया होने की कगार पर खड़ा पाकिस्तान आज भी कश्मीर का मोह नहीं छोड़ पा रहा। यह लगभग वैसा ही है जैसे किसी एयरक्राफ्ट की पानी में इमरजेंसी लैंडिंग के बाद कोई यात्री उससे इसलिए ना निकल रहा हो क्योंकि निकलने पर उसका सेलफोन भीग जाएगा।
पाकिस्तान द्वारा अपनी हर समस्या के हल के लिए जम्मू-कश्मीर को आगे रख देना आज की कोई नई नीति नहीं है बल्कि दशकों की दिशाहीन यात्रा का परिणाम है। सात दशकों तक तमाम सरकारों की गलत नीतियों को कश्मीर के नाम पर सही ठहराने की इस्लामिक संस्कृति को ना तज पाने का नाम ही पाकिस्तान है।
धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन पर पाकिस्तान के हिस्से में पंजाब प्रांत आया था जिसे अनाज का कटोरा कहा जाता था। ऐसे में यह प्रश्न लाजिमी है कि आवश्यक संसाधन, कृषि संस्कृति और एक बड़ा मजदूर वर्ग होने के बावजूद आज पाकिस्तान दाने-दाने के लिए मोहताज क्यों है?
स्थाई सरकार और दीर्घकालीन नीतियों का महत्व क्या होता है? यह पाकिस्तान को देखकर समझा जा सकता है। पाकिस्तान को दशकों तक स्थाई सरकार ना मिलने का परिणाम उसके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उन्नति पर देखा जा सकता है।
सैनिक शासक हों या ‘जम्हूरियत’ के झंडाबरदार, सेना और जेहाद की संस्कृति से इस देश को कभी छुटकारा नहीं मिला। यही कारण था कि स्थाई नीतियों और जनता के कल्याण की सोच बन ही नहीं पाई। शायद अस्थाई सरकार की संभावनाओं के कारण ही पाकिस्तान के नेताओं ने सत्ता में आकर लोगों के लिए परियोजनाओं पर नहीं बल्कि सत्ता की मजबूती पर ध्यान दिया।
इसके ऊपर सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि लोकतंत्र के नाम पर चुने जाने वाले शासक, फिर वे चाहे भुट्टो हो, शरीफ़ या फिर इमरान ख़ान, सबको डेमोक्रेसी की ट्रेनिंग पाकिस्तानी सेना से ही मिली। एक कारण यह भी है कि पाकिस्तान के ज़ेहन से ना तो जेहाद निकल सका और ना ही कश्मीर।
यही कारण है कि 5 युद्ध लड़ने के बाद भी पाकिस्तान आज आर्थिक हालातों से निकलने के लिए कश्मीर पर ही बात करना चाहता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह मूर्खता हो सकती है लेकिन पाकिस्तानी सोच के अनुसार यह विदेश नीति है।
अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज प्रोग्राम के डायरेक्टर प्रोफेसर मुक्तदर खान के अनुसार “पाकिस्तान के हालात इतने खराब हैं कि भारत चाहे तो जंग का ऐलान कर पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (POJK) और बाकी इलाकों को अपने क्षेत्र में शामिल कर सकता है। उन्हें भारत का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि वो ऐसा नहीं कर रहा है।”
खैर, पाकिस्तान की ताजा हालात एक और कारण उसके War Brokering business (युद्ध कमीशन का व्यापार) भी है। परवेज मुशर्रफ ने एक साक्षात्कार में कहा भी था कि वो दुनियाभर से मुजाहिदीन इकठ्ठा करते थे। इन्हीं लड़ाकों का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान और कई क्षेत्रों में युद्ध के लिए किया जाता था और इसके बदले में पाकिस्तान को कई तरीक़ों से डॉलर मिलता था।
बदलती वैश्विक व्यवस्था में आज वह संभव नहीं है। अमेरिका से डॉलर मिलना बंद हुआ तो पाकिस्तान ने पैसे के लिए चीन की खोज कर ली परन्तु अमेरिका की तरह चीन को डेमोक्रेसी वग़ैरह में कोई दिलचस्पी नहीं थी। ऐसे में उसने पाकिस्तान को ना केवल अपने कर्ज के जाल में फँसाया बल्कि उसने और पैसे देने से मना भी कर दिया है।
ऐसे में और अन्य देशों के सामने जाकर पैसे के लिए गिड़गिड़ाने के अलावा पाकिस्तान के पास रास्ता क्या है? परन्तु पैसे के लिए और देशों के सामने गिड़गिड़ाने के साथ ही कश्मीर की बात करना उसकी मजबूरी है। यह उसके शासकों का अंतिम तरीक़ा है, पाकिस्तान के अस्तित्व को सही ठहराने का।
विभाजन से लेकर अब तक पाकिस्तान कश्मीर को लेकर युद्ध, आतंकवाद और सैन्य अभियानों का प्रोपगैंडा बार-बार लगातार इस तरह से चलाया है कि अब वह अपने प्रोपगैंडा को ही हकीकत मानने लगा है। ऐसी स्थिति से निकलना किसी व्यक्ति के लिए तो शायद संभव हो परन्तु एक पूरे देश के लिए लगभग असंभव है। इस असंभव को ढोना ही अब पाकिस्तान की नियति है।