इन दिनों पड़ोसी देशों की आर्थिक हालत कुछ अच्छी नहीं है। श्रीलंका के बाद अब पाकिस्तान की हालत दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार नीचे जा रहा है। इसी के साथ ही पाकिस्तानी रुपया भी अपने सर्वकालिक निचले स्तर को छू चुका है। देश के अंदर जरूरी सामानों की भारी किल्लत है।
सबसे ताज़ा खबर यह है कि पाकिस्तान की तेल कंपनियों ने भी शरीफ़ सरकार को पत्र लिखकर सचेत कर दिया है कि पाकिस्तान किसी भी दिन सड़क पर आ सकता है। पड़ोसी मुल्क की तेल कंपनियों के पास बाहर से तेल ख़रीदने के लिए ज़रूरी डॉलर ही नहीं बचे हैं और तेल के जहाज़ उसके बंदरगाहों पर खड़े हैं क्योंकि उन्हें इसका भुगतान नहीं मिल रहा।
बंदरगाहों पर लगभग 9000 कंटेनर इसलिए फंसे हुए हैं क्योंकि देश के आयात के भुगतान के लिए जरूरी डॉलर नहीं है। ऐसी स्थिति में फँसी पाकिस्तानी सरकार वैश्विक संस्थानों, मुख्यतः अंतरराष्ट्रीय कोष (IMF) से गुहार लगा रही है कि उसकी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जरूरी बेल आउट पैकेज की धनराशि उसे दी जाए।
पाकिस्तान मूलतः अपनी आवश्यकता की अधिकांश वस्तुएं बाहर से मंगाता है। ऐसे में डॉलर की किल्लत होने और उसकी कीमत बढ़ने से देश भर में महंगाई पहले के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। जनता के लिए जरूरत की चीजें जैसे आटा, चीनी, घी जैसी वस्तुएं भी इस समय लग्ज़री बन गई हैं।
क्या है पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक हालत?
पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक हालत संकटग्रस्त है। उसके केन्द्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के पास मात्र 3.09 बिलियन डॉलर का रिजर्व बचा हुआ है। इतने कम रिज़र्व से उसकी जरूरतें मात्र कुछ दिन तक ही पूरी हो सकती हैं। देश बैलेंस ऑफ पेमेंट क्राइसिस की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।
इसके साथ ही पाकिस्तान पर डिफ़ॉल्ट होने का खतरा भी मंडरा रहा है। दरअसल, बैलेंस ऑफ पेमेंट क्राइसिस किसी भी देश की आर्थिक स्थिति के उस दौर को कहते हैं जहाँ पर वह अपने देश में आयात किये गए वस्तुओं का भुगतान करने में असफल होता है। ऐसी स्थिति में उस देश के विदेशी मुद्रा भंडार काफी निचले स्तर पर चले जाते हैं।
भारत के सम्बन्ध में यह स्थिति वर्ष 1991 के दौरान आई थी जब हमारे पास आगे कच्चे तेल और अन्य सामान खरीदने लायक डॉलर भी नहीं बचे थे। ऐसे में अगर पाकिस्तान को समय से विदेशी मदद के रूपर में और डॉलर ना मिले तो वह डिफ़ॉल्ट कर जाएगा।
डिफ़ॉल्ट का अर्थ यह है कि अपने द्वारा पूर्व में लिए गए लोन का भुगतान समय पर नहीं कर पाएगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साख पर इसका दुष्प्रभाव दिखाई देगा। इस स्थिति में पाकिस्तान को दुनिया के बैंक या अन्य आर्थिक संस्थाएं कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होंगें।
यह भी पढ़ें: पाकिस्तान से रूठ गए हैं ‘अच्छे दिन’?
पाकिस्तान कई बार ऐसी स्थिति में जा चुका है। यह इतिहास में 23वीं बार ऐसी स्थिति है जब पाकिस्तान के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं हैं। पाकिस्तान के सामने इसके अलावा एक और समस्या आ गई है। डॉलर की कमी होने के चलते उसकी मांग में भारी बढ़ोतरी आ गई है।
बढ़ती मांग के चलते डॉलर इस समय पाकिस्तानी रुपए के मुकाबले रिकॉर्ड स्तर पर है। पाकिस्तानी अखबार DAWN के अनुसार, वर्तमान में डॉलर की कीमत लगभग 276 पाकिस्तानी रुपए पहुँच चुकी है। इस सप्ताह के पहले तक पाक की केन्द्रीय बैंक ने डॉलर की कीमत 230 रुपए के आस पास रोक रखी थी।
डॉलर के लेन देन को रोक कर तथा बाहर से आने वाले सामानों का भुगतान न कर के सरकार ने उसे नीचे जाने से रोक रखा था, लेकिन कालाबाजारी में डॉलर तब भी 260 रुपए के आसपास के स्तर पर पहुँच गया था। अब पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार ने एलान किया है कि वह डॉलर को बाजार भाव के ऊपर छोड़ देंगें।
पिछले दो दिन में पाकिस्तानी रुपए के रुपए में लगभग 15% की गिरावट आ चुकी है। 26 जनवरी को रुपए में रिकॉर्ड 24 रुपए की गिरावट दर्ज हुई। देश के सामने इन दो समस्याओं के अतिरिक्त इस समय सबसे बड़ी समस्या महंगाई की है, पाकिस्तान में महंगाई लगभग 25% के स्तर पर है।
इसके तुलना में भारत में यह 5.72% है। यह तब है जब भारत में यह सामान्य स्तर से ऊपर है। पाकिस्तान के आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आने वाले समय में पाकिस्तान में महंगाई का स्तर लगभग 40% तक जा सकता है।

पाकिस्तान में इस वर्ष भीषण बाढ़ आई है और उसके कारण सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब के कुछ हिस्सों में काफी नुकसान हुआ। एक आँकड़े के अनुसार, लगभग 3 करोड़ लोग बाढ़ के कारण प्रभावित हुए हैं। इस बाढ़ के कारण भी देश में कृषि को भारी नुकसान हुआ और बड़े पैमाने पर फसलें बर्बाद हो गई। खाद्यान्न की कमी के पीछे यह भी एक कारण रहा।
पाकिस्तान के बैंक अपने व्यापारियों को आयात के लिए जरूरी लेटर ऑफ क्रेडिट नहीं दे पा रहे जिसके कारण बाहर से आने वाली वस्तुएं और उत्पादन के लिए कच्चे माल की भारी कमी आ गई है। लेटर ऑफ क्रेडिट किसी भी बैंक द्वारा व्यापारियों या कंपनियों को दी जाने वाली वह गारंटी है जिससे वह अपना माल पोर्ट से उठा सकते हैं। इसके पश्चात माल बेचने वाले बैंक से अपना पैसा लेते हैं।
क्यों पाकिस्तान के रिजर्व हैं निचले स्तर पर?
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर हैं। अगर जनवरी माह की बात कर लें तो इसमें लगातार गिरावट आई है। जनवरी में यह रिजर्व 5.6 बिलियन डॉलर के स्तर से होते हुए 4.8 बिलियन और अब मात्र 3.7 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ गया है।

यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा के रिजर्व निचले स्तर पर हैं। इससे पहले लगातार पिछले कुछ सालों में वह इनकी पूर्ति के लिए कभी सऊदी अरब, UAE और चीन तथा IMF की शरण में जाता रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पाकिस्तान की बार-बार ऐसी हालत क्यों हो जाती है कि इसके विदेशी मुद्रा भंडार निचले स्तर पर चले जाते हैं?
इसका कारण पाकिस्तान का ‘इम्पोर्ट इकॉनमी’ होना है। पाकिस्तान भारत की तरह ही अपनी जरूरत का कच्चा तेल बाहर से मंगाता है। इसके अतिरिक्त यह देश में खाने का तेल, आटा, चावल, खाद और अधिकांश मशीनरी समेत गाड़ियों का बाहर से आयात करता है।
इन सभी आयात का भुगतान डॉलर में होता है। पाकिस्तान हर साल लगभग 80 बिलियन डॉलर के उत्पाद आयात करता है। आयात के मुकाबले देश का निर्यात पहले से भी अधिक नहीं था पर पिछले कुछ वर्षों में इसमें भारी गिरावट दर्ज हुई है।

किसी भी देश के लिए यह आवश्यक है कि वह जितना आयात कर रहा है उसके बराबर या कम से कम अनुपात में एक स्तर तक निर्यात भी करे या अन्य तरीकों से इस बीच के व्यापार घाटे को पूरा करे। इसके अलावा, लगातार बढ़ते विदेशी कर्ज के भुगतान के लिए विदेशी मुद्रा की बढ़ती मांग ने भी देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाया।
पाकिस्तान की इस बुरी हालत के पीछे की तात्कालिक वजह क्या है?
वैसे तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कभी भी मजबूत नहीं रही पर वर्तमान में इसके बुरी तरह बिगड़ जाने के पीछे लगातार बढ़ती सब्सिडी, उत्पादन की कमी, संस्थानों के बिना दीर्घकालीन आर्थिक प्रबंधन की खराब हालत, वैश्विक अस्थिरता और IMF की शर्तों को ना मानना है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले वर्ष के जनवरी माह से ही खराब स्थिति में है। दरअसल, देश को तब तक IMF से मदद मिल रही थी जिसके कारण वह अपनी अर्थव्यवस्था को चला पा रहा था, परन्तु इस बीच इमरान खान ने IMF से समझौता खत्म कर दिया। इसके कारण पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद बंद हो गई।
पहले से ही खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को और बड़ा झटका फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध के प्रारम्भ होने के बाद लगा। पाकिस्तान, भारत की तरह ही कच्चे तेल और गैस के लिए बाहर के देशों पर निर्भर है। एक आँकड़ें के अनुसार पकिस्तान ने वर्ष 2021 के जुलाई माह से वर्ष 2022 के जून माह के बीच 24.7 बिलियन डॉलर का तेल आयात किया।

ऐसे में जब युद्ध के कारण पूरे विश्व में तेल की कीमतों में रिकॉर्ड स्तर की बढ़ोतरी हुई जिससे पाकिस्तान का तेल का बिल और बढ़ता चला गया। इन कीमतों के बढ़ने के साथ ही देश द्वारा खरीदा जाने वाला तेल भी महंगा हो गया परन्तु तत्कालीन इमरान खान की सरकार ने अपने राजनीतिक फायदे और जनता में रोष की स्थिति को रोकने के लिए तेल की कीमतें पाकिस्तान के अंदर नहीं बढ़ाई।
पाकिस्तान के तत्कालीन वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल के अनुसार इसके कारण पाकिस्तान लगभग 8 बिलियन डॉलर इन सब्सिडी पर खर्च कर रहा था जिसमें तेल पर दी जाने वाली छूट और बिजली के दामों पर दी जाने वाली छूट शामिल थे। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान में जून 2022 से अक्टूबर 2022 के बीच आई बाढ़ के कारण 3 करोड़ लोग प्रभावित हुए, 1700 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और लगभग 80 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
इसके अतिरिक्त, बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ। पाकिस्तान के समाचार पत्र ‘डॉन’ के अनुसार, इन बाढ़ से पाकिस्तान को कुल 10 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है जो कि उसकी पूरी अर्थव्यवस्था का 3% है।

साथ ही देश की मुख्य फसलों में से एक कपास के उत्पादन में वर्ष 2022 में वर्ष 2021 के मुकाबले 40% से अधिक की गिरावट आई। पाकिस्तान के कपास उत्पादकों के समूह की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में जहाँ 71 लाख कपास की गांठों का उत्पादन हुआ था जो कि बाढ़ आने के बाद मात्र 42 लाख कपास की गाँठों पर आ गया।
पाकिस्तान के मुख्य निर्यातों में से एक टेक्सटाइल यानी कपड़ों के उत्पादन पर इस कपास के उत्पादन का भारी दुष्प्रभाव पड़ा। ऐसे में पाकिस्तान को इन निर्यात से आने वाला पैसा भी मिलना कम हो गया है।
DAWN के अनुसार, नवम्बर माह में पाकिस्तान का टेक्सटाइल निर्यात 1.42 बिलियन डॉलर का रहा जो की वर्ष 2021 में नवम्बर माह में 1.72 बिलियन डॉलर रहा था। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में यह 1 बिलियन डॉलर के भी नीचे चला जाएगा। ऐसे में पाकिस्तान के ऊपर पड़ने वाला आयात बढ़ता रहा है जबकि उसे मिलने वाला बाहरी पैसा कम होता गया है।
पाकिस्तान की आखिरी उम्मीद, यानी उसके नागरिकों द्वारा बाहर के देशों से भेजे जाने वाले डॉलर में भी कमी आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश को प्रवासी पाकिस्तानियों से मिलने वाले रेमिटेंसेस दिसम्बर 2022 में 31 माह के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। इस दौरान उसे को मात्र 2 बिलियन डॉलर ही प्राप्त हुए।
युद्ध की दुकान बंद, अब कहाँ से आएगा डॉलर?
पाकिस्तान के पास उसका सबसे बड़ा फायदा दुनिया में उसकी भौगोलिक स्थिति है। पाकिस्तान के बनने के बाद से ही नेताओं ने अमेरिका को यह विश्वास दिलाया था कि वह सोवियत रूस के और आगे बढ़ने से रोकने में आवश्यक हैं। इसके लिए उन्होंने लगातार अमेरिका से नए हथियार और डॉलर पाए।
वर्ष 1979 में सोवियत रूस के अफगानिस्तान में आने से पाकिस्तान के मिलिट्री जनरलों की लॉटरी लग गई। अमेरिका अफगानिस्तान से रूस को बाहर करने के लिए मुजाहिदीन को मदद कर रहा था। इसके साथ ही उसे अमेरिका द्वारा भेजे जाने वाले सभी हथियार और मदद में चोरी समेत अपना हिस्सा लेता था।
इसके पश्चात अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में वर्ष 2002 में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध करने पर पाकिस्तान को एक बार और अमेरिका को स्थानीय सपोर्ट देने का मौका मिला तथा अमेरिका ने अपने हित साधने के लिए पाकिस्तान को मिलने वाले लोन की मदद जारी रखी।

मिलने वाले डॉलर का पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था चलाने और भारत में आतंकवाद फैलाने में उपयोग किया। इस्लामाबाद में स्थित अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट के अनुसार पिछले मात्र बीस सालों में ही अमेरिका पाकिस्तान को मदद के नाम पर 32 बिलियन डॉलर दे चुका है। अमेरिका से मदद कम होने पर पाकिस्तान ने चीन का हाथ पकड़ा और और उससे लोन लेकर काम चलाता रहा है।
समस्याएं हजार, आगे क्या?
आज पकिस्तान भारी आर्थिक संकट के बीच फंसा हुआ है जिससे जल्द निकलने के आसार फिलहाल नज़र नहीं आ रहे हैं। देश में वर्तमान में शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली गठबंधन की सरकार है। पहले इस सरकार ने IMF द्वारा लगाईं गईं कड़ी शर्तों को मानने से इंकार कर दिया था। IMF की शर्तों में बिजली के दाम बढ़ाना, पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाना, अपने टैक्स संग्रह को बढ़ाना समेत अन्य कई शर्ते थी।
पाकिस्तान में इस साल के मध्य में चुनाव होने हैं ऐसे में वर्तमान सरकार IMF की कड़ी शर्ते मानकर जनता को महंगाई का झटका नहीं देना चाह रही थी परन्तु अब पाकिस्तान के सामने करो या मरो वाली स्थिति आ गई है। ऐसे में पाकिस्तानी सरकार IMF से मिलने वाली 1.1 बिलियन डॉलर की मदद के लिए सभी शर्तों को मानने के लिए राजी हो गई है।

पाकिस्तान में 31 जनवरी से IMF का दल आ रहा है जो सरकार द्वारा किए गए सारे कामों को परख कर किश्त जारी कर सकता है। ऐसे में वह डिफ़ॉल्ट होने से आगे कुछ दिन और बच सकता है। पाकिस्तानी सरकार अब फिर से दुनिया में अपनी जगह तलाशने की कोशिश कर रही है।
पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत करने की पेशकश की थी पर शायद सेना के दबाव में उसने फिर से कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया। पाकिस्तान यह भी प्रयास कर रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात भारत से बातचीत करने में उसकी मदद करे।
हालाँकि, भारत की शर्तों के अनुसार, जब तक पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद बंद नहीं करता तब तक यह संभव नहीं है।
फिलहाल पाकिस्तान का भविष्य अँधेरे में दिखाई नहीं दे रहा है। आने वाले कुछ समय में शायद पता चल सके कि पाकिस्तानी फ़ौज देश को दिवालिया होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाती है।