हरिशंकर परसाई जी ने साठ के दशक के अपने एक निबंध में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के भारत पर दिए गए बयानों पर लिखा था; भुट्टो के बयान सुनकर लगता है जैसे उन्हें हाईस्कूल से उठाकर पाकिस्तान का विदेश मंत्री बना दिया गया है।
परसाई जी यदि आज के भुट्टो द्वारा भारत और भारत के प्रधानमंत्री पर दिए गए बयान पर शायद यह लिखते कि; भुट्टो के बयान को सुनकर लगता है कि उन्हें सिंध के किसी मदरसे से उठाकर विदेश मंत्री बना दिया गया है।
नाना और नाती में अंतर केवल स्कूल और मदरसे का है। वैसे भी आजकल के नाती केवल अपने ही नहीं बल्कि अपने नाना लोगों के इंटेलेक्ट को भी कटघरे में खड़ा कर देते हैं, फिर वे उस तरफ़ के हों या इस तरफ़ के।
बिलावल भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में जो भी कहा उसे सुनकर मदरसे वाली बात के इतर और क्या लग सकता है? भुट्टो की खीझ भले ही विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा पिछले दिनों आतंकवाद पर दिए गए बयान पर हो पर किस देश का विदेश मंत्री आतंकवाद को सह देने और ओसामा बिन लादेन के अपने देश में पाए जाने को लेकर किए गए प्रश्न के जवाब में ऐसी बात बोलेगा? किस देश के विदेश मंत्री को विषय और भाषा की ऐसी तंगी हो सकती है?
पाकिस्तान के विदेश मंत्री को और किसी देश का नाम याद ही नहीं आता। पर यह बात भी मन में आती है कि पाकिस्तान के केवल विदेश मंत्री को ही क्यों, भाषा की ऐसी तंगी पाकिस्तान के किसी भी मंत्री को हो सकती है।
आखिर इसी देश के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश की संसद में खड़े होकर ओसामा बिन लादेन को शहीद बताया था। प्रधानमंत्री के तौर पर यही इमरान खान वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली में दिए गए अपने भाषण में अपने देश के परमाणु हथियारों को आगे रखकर पूरी दुनियाँ को धमकी दे चुके हैं। वही इमरान खान अब विपक्ष में रहते हुए अपने देश की वर्तमान व्यवस्था पर टिप्पणी करने के दौरान अपनी मनःस्थिति की झांकी प्रस्तुत करते हुए बताते हैं कि; उनका मन करता है कि वे बम बाँधकर फट लें।
अपने संदेशों में ऐसी भाषा का प्रयोग एक ऐसा राजनेता कह रहा है जो पूर्व में न केवल प्रधानमंत्री रह चुका है बल्कि खुद को अपने देश का भविष्य बताता है।
पर किसी देश के विदेश मंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति के पास विचार और भाषा की ऐसी तंगी के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या परिस्थितियाँ होंगी कि जिस मंत्री के कंधों पर अपने देश की कूटनीति की ज़िम्मेदारी हो वह विचार और भाषा की ऐसी तंगी का प्रदर्शन करने से खुद को नहीं रोक पा रहा? वो भी ऐसे देश की जिम्मेदारी जो इस समय दुनियाँ भर में एक दो बिलियन डॉलर के लिए मारा-मारा फिर रहा है।
वैसे तो कई कारण होंगे पर यहाँ दो मुख्य कारणों पर बात की जा सकती है। पहला कारण है पाकिस्तान में संस्थाओं का विकास न हो पाना। जब किसी देश में संस्थाओं का विकास होता है, उन्हें पनपने का अवसर मिलता है तो ये संस्थाएँ अपनी भाषा, अपने व्यवहार और अपनी विरासत का निर्माण करती हैं। जब एक देश की संस्थाएँ विश्व के अन्य देशों के साथ खड़ी होती हैं और संवाद करती हैं तो इस प्रक्रिया में जिस भाषा का विकास होता है, जो विरासत बनती है, उसकी रक्षा की ज़िम्मेदारी उन संस्थाओं से जुड़े लोगों के ऊपर रहती है।
पाकिस्तानी जैसे देश के विदेश मंत्री के पास अपने देश की कौन सी विरासत की रक्षा की ज़िम्मेदारी होगी? पिछले सात दशकों में इस देश ने ऐसा क्या विकसित किया जिसकी रक्षा की जिम्मेदारी उसके मंत्रियों पर हो? ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता जिसकी रक्षा को लेकर पाकिस्तान के मंत्री और राज नेताओं को सतर्क रहना पड़े। ऐसे में वैश्विक मंचों पर भुट्टो जैसे बेलगाम लोगों के ऐसे आचरण से आश्चर्य नहीं होता।
दूसरा कारण पिछले सात-आठ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के विरुद्ध अपने संवाद में पाकिस्तानी नेताओं द्वारा भारतीय विपक्षी दलों के संवाद, भाषा और आचरण से उधारी में है।
पाकिस्तानी सरकार, सेना, नेता, बुद्धिजीवी वग़ैरह ने पिछले कई वर्षों से भारतीय विपक्षी दलों के संवाद में इस्तेमाल किए गए तथाकथित तथ्यों और भाषा से बड़े तौर पर उधारी ली है। केवल वर्तमान विदेश मंत्री भुट्टो ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी आर एस एस और मोदी को किस स्तर तक निशाना बनाया, यह किसी से छिपा नहीं है। भारतीय विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए जुमलों और ‘तथ्यों’ का पाकिस्तानी मीडिया और नेताओं द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बार-बार कैसे इस्तेमाल किया गया, यह भी किसी से छिपा नहीं है। कौन नकार सकता है कि भारतीय सेना को लेकर दिए गए हमारे विपक्षी नेताओं के बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तान बार-बार करता है?
सोचें और याद करने की कोशिश करें कि भुट्टो ने अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री मोदी के लिए जिस जुमले का इस्तेमाल किया, उस जुमले इस्तेमाल सार्वजनिक राजनीतिक संवाद में पहली बार किस भारतीय नेता ने किया था? वो भी यह जानते बूझते कि दस से अधिक वर्षों तक भारतीय न्यायिक व्यवस्था के हर स्तर पर नरेंद्र मोदी की समीक्षा बार-बार हुई और वे हर बार खरे उतरे। यह याद करने की कोशिश करें कि वे कौन लोग थे जिन्होंने अमेरिकी सरकार को पत्र लिख कर बार-बार चुने गए मुख्यमंत्री को वीज़ा न देने का आग्रह किया था? यह याद करें कि कैसे विपक्षी नेताओं और दलों के झूठे राजनीतिक वक्तव्यों को पूर्व में पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक में इस्तेमाल किया है।
याद करेंगे तो पाएँगे कि भुट्टो ने जो भी कहा वह उधार के विचार और उधार की भाषा है, जिसे उसने भारतीय विपक्ष के आचरण बैंक से उधार लिया है। वैसे भी सन सैंतालीस में सारे भुट्टो पाकिस्तान नहीं गए थे।