पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को मंगलवार, 9 मई के दिन अर्धसैनिक बलों ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट परिसर से अगवा कर लिया। पड़ोसी देश में भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए बने नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (NAB) के आदेश पर यह कार्रवाई की गयी है।
NAB के अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को अलक़ादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ्तार किया गया है। इमरान खान पर गलत तरीके से ट्रस्ट की जमीन बिल्डर मलिक रियाज़ को ट्रांसफर करने का आरोप है। इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पूरे देश में सेना के खिलाफ हिंसा कर रही है। पाकिस्तान के अधिकतर क्षेत्रों में इंटरनेट बंद किया गया है और उपद्रवियों को गोली मारने का आदेश जारी कर दिया गया है। इस सब के बीच सवाल ये है कि पाकिस्तान में आज गृहयुद्ध की जो स्थिति है, पाकिस्तान यहाँ तक कैसे पहुंचा?
पाकिस्तान: राजनीतिक संकट के बीच सबसे निचले स्तर पर पड़ोसी देश की मुद्रा
पाकिस्तान की क्रोनोलॉजी
वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान इमरान सरकार के ख़राब प्रबंधन की आलोचना शुरू हुई और फिर उसी वर्ष अप्रैल में चीनी के मूल्य निर्धारण में घोटाला सामने आया। इस से इमरान सरकार को आर्थिक मोर्चे पर भी बड़ा झटका लगा। 2021 आते आते इमरान सरकार का जनसमर्थन कम होने लगा और फिर उसी वर्ष अक्टूबर में सरकार और सेना के बीच टकराव का पहला मामला देखा गया। यह पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी (ISI) से जुड़ा हुआ था।
दरअसल, ISI के नए प्रमुख की नियुक्ति होनी थी और इमरान खान कथित तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को पद पर बनाए रखना चाहते थे लेकिन नवंबर 2021 में एक नए व्यक्ति लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को नियुक्त कर दिया गया।
2022 की शुरुआत से इमरान खान सेना के खिलाफ अधिक मुखर होने लगे थे इस पर कुछ जानकारों ने कहा था कि इमरान सैन्य नेतृत्व को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे थे।
बड़ा बदलाव आया अप्रैल 2022 में, जब इमरान खान सरकार सत्ता से बाहर हो गई। दरअसल, सत्ताधारी दल पीटीआई की प्रमुख सहयोगी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान ने विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया, जिससे सरकार को संसद में अपना बहुमत खोना पड़ा।
इमरान खान के इस्तीफे के बाद पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई पीएमएल-एन के शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
सत्ता से बेदख़ल किए जाने के बाद इमरान ख़ान ने पूरे देश में कई रैलियां की जिसमें राजधानी इस्लामाबाद तक भी एक मार्च शामिल था। पद से हटने के बाद इमरान खान पर 100 से अधिक मुक़दमे दर्ज़ हो चुके हैं जिनमें चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होने, भ्रष्टाचार और अदालत की अवमानना जैसे मुक़दमे भी शामिल हैं।
इन सभी मामलों में अदालत ने उन्हें कई बार पेश होने के लिए कहा। अदालत में पेश नहीं होने के कारण इस्लामाबाद पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए लाहौर स्थित उनके घर दो बार पहुंची थी।
अब सेना के द्वारा इमरान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान में सवाल है कि क्या इमरान खान अपने दम पर पाकिस्तान में सेना के वर्चस्व को खत्म कर पाएंगे?
पाकिस्तान सरकार बनाम सेना
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान की राजनीति को तय करने में वहां की सेना की अहम भूमिका रहती है। कई बार तो सेना ने ही तख्तापलट कर ख़ुद सत्ता पर कब्जा किया है। वर्ष 2018 में जब इमरान खान प्रधानमंत्री बने थे तो माना गया कि वो सेना की मदद से ही जीतने में कामयाब हुए थे।
लेकिन फिर इमरान और सेना के बीच टकराव क्यों हुआ और इसमें बाहरी शक्तियों का क्या रोल था ?
इमरान खान अपने कार्यकाल में विदेश नीति अपने हिसाब से तय करने लगे थे और सेना के हस्तक्षेप को उन्होंने कम कर दिया था। अमेरिका को इमरान की यह नीति पसंद नहीं आ रही थी क्योंकि इमरान खान का झुकाव अमेरिका के कथित प्रतिद्वंदी रूस एवं चीन की ओर अधिक प्रतीत हो रहा था।
इमरान ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कई बार फोन पर बातचीत की और रूस जाकर उन्हें पाकिस्तान आने का न्योता दिया। इमरान खान जब पाकिस्तान वापस लौटे तो उन्होंने पुतिन की जमकर तारीफ करते हुए रूस से सस्ती गैस और गेहूं खरीदने का भी ऐलान कर दिया।
इसके बाद ही इमरान की कुर्सी चली गयी। उन्होंने अमेरिका और सेना प्रमुख बाजवा पर सांठगांठ के आरोप भी लगाए लेकिन अमेरिका ने इमरान खान के आरोपों से स्वयं को अलग कर दिया।
यहाँ तक कि इमरान के जाने के बाद नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने विश्वसनीय आसिम मुनीर को पाकिस्तान का नया सेना प्रमुख नियुक्त किया जो इमरान खान का धुर विरोधी माना जाता था। कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के दबाव में आसिम मुनीर को महज आठ महीने बाद ही ISI के चीफ का अपना पद छोड़ना पड़ा था।
लेकिन अब इन्हीं आसिम मुनीर की मुश्किलें बढ़ रही हैं। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद सेना में फूट पड़ गई है। कई जगहों पर पीटीआई समर्थकों पर बल प्रयोग से सेना ने इनकार किया है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद का गुट इमरान खान का समर्थन कर रहा है।
पाकिस्तान की इस बुरी स्थिति के पीछे सिर्फ सेना बनाम सरकार का पहलू नहीं है बल्कि यह आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान सरकार की विफलता का भी परिणाम है।
‘इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान’ बना ‘कंगाल पाकिस्तान’
पाकिस्तान अब तक के अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, पिछले 25 वर्षों में पाकिस्तान पर कर्ज तीन लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए से बढ़कर 62.5 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए तक पहुंच चुका है। पाकिस्तान के आर्थिक जानकारों का मानना है कि इस आर्थिक संकट के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान जिम्मेदार हैं।
पाकिस्तान में सभी बड़ी कंपनियां बंदी की घोषणा कर चुकी हैं। पाकिस्तान हुक्मरानों द्वारा कई रेवड़ियां बांटी गईं। सरकारी सब्सिडी का बेतरतीब इस्तेमाल हुआ, जिससे खजाने पर बोझ पड़ा।
इमरान खान की सरकार ने बिना अपने देश की आर्थिक स्थिति देखे हुए, महंगे कच्चे तेल के समय में जनता का समर्थन लेने के लिए पेट्रोल डीजल की कीमतों पर सब्सिडी बांटी। इस दौरान यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध छिड़ने के कारण कच्चे तेल की कीमतें और बढ़ गईं। पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफताह इस्माइल का कहना है कि एक समय पर पाकिस्तान जो कि हर साल लगभग 25 बिलियन डॉलर का कच्चा तेल आयात करता है, वह उस दौरान खाड़ी देशों से भी सस्ता तेल बेच रहा था।
इन सब क़दमों से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची। जबकि भारत सरकार ने इसी दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार से तालमेल बनाते हुए अपने देश में तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखा। हालाँकि कुछ लोगों द्वारा इस पर भारत सरकार की आलोचना भी हुई थी लेकिन भारत सरकार एवं राज्यों सरकारों ने राजस्व बनाये रखा और अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की वहीं पाकिस्तान आज कंगाली की कगार पर पहुंच गया।
इन सभी संकटों से घिरे पाकिस्तान पर अब भारत सहित पूरी दुनिया की नज़र बनी हुई है। पाकिस्तानी सेना के पास दो विकल्प हैं। पहला, वह हस्तक्षेप करे और विवाद को खत्म कराए। जिसके लिए चुनाव कराने होंगे लेकिन चुनाव पारदर्शी तरीके से होंगे इस पर भी कहा नहीं जा सकता है। दूसरा विकल्प यह है कि सेना देश पर कब्जा कर ले और मिस्र की तरह से मार्शल लॉ का ऐलान कर दे। ऐसे में अगले कुछ घंटे पाकिस्तान की आवाम के लिए महत्वपूर्ण होने वाले हैं।