पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय की कब्रों के पत्थर पर इस्लामिक प्रतीक बनाने को लेकर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने अहमदियों की 16 कब्रों पर हमला कर दिया और कब्रों से बेअदबी की। अहमदिया मुसलमानों के समूह को जमात अहमदिया कहते हैं। घटना की जानकारी जमात अहमदिया के प्रवक्ता आमिर महमूद ने मीडिया को दी है। यह कब्रिस्तान लाहौर से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर है।
अहमदिया समुदाय के इस क्रबिस्तान की कई कब्रों के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी थीं। गौरतलब है कि पंजाब के मुस्लिम मौलवियों द्वारा अहमदिया समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के समाचार सामने आते रहे हैं और इसी वजह से कट्टरपंथियों ने अहमदियों की कब्रों से बेअदबी की है। महमूद ने कहा ‘इस घटना से शोक संतप्त परिवार बहुत दुखी हैं और उन्हें सरकार से ही इंसाफ की आशा है। यह काम न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि इंसानियत के सभी मूल्यों के खिलाफ भी है।’
कौन हैं पाकिस्तान में प्रताड़ित अहमदिया मुसलमान ?
अहमदिया भारत में 19वीं सदी के अंत में आरम्भ हुआ एक इस्लामिक आंदोलन है। इसका मिर्जा गुलाम अहमद (1835-1908) ने इसकी शुरुआत की थी। उनके नाम से ही उनके अनुयायियों का नाम अहमदिया हुआ। वे लोग गुलाम अहमद को मुहम्मद के बाद एक और पैगम्बर (नबी) मानते हैं। जबकि मुहम्मद इस्लाम में अल्लाह के भेजे हुए अन्तिम पैगम्बर कहे जाते हैं।
इन्हीं कुछ मान्यता भेदों के कारण अहमदिया एक अलग संप्रदाय बन गया। मुसलमान तो जरा से भेद के कारण इसे काफिर मानने लगे। अन्य मुसलमानों ने अहमदियों का तीव्र विरोध किया और हिंसा और प्रताड़ना तक का सहारा लिया।
अहमदिया समुदाय के लोग खुद को मुसलमान ही मानते व कहते हैं परंतु पाकिस्तान में कानूनों के द्वारा उन्हें इस पहचान से जबरन वंचित किया गया। अहमदिया मुस्लिम मजहब की अल्लाह, कुरान, नमाज़, दाढ़ी, टोपी आदि व रहन सहन की सभी मुस्लिम परम्पराओं को मानते हैं पर केवल हज़रत मोहम्मद को आखरी पैगम्बर नहीं मानते। उनके अनुसार पैगम्बर परम्परा अभी भी चल रही है और नबी आते रहते हैं। अहमदियों ने भारत विभाजन में एक बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी।
मुहम्मद इकबाल थे अहमदिया और जिन्ना का दायाँ हाथ थी ‘जमात अहमदिया’
हालाँकि पाकिस्तान में अहमदियों पर अत्याचार का लम्बा इतिहास रहा है पर यह सच वह लोग नहीं पचा पाते कि उनके यानि पाकिस्तान के “राष्ट्रकवि” अल्लामा मुहम्मद इक़बाल तो खुद अपनी जवानी के आठ बहुमूल्य वर्षों तक ‘अहमदिया’ रहे थे यानि पाकिस्तानी कट्टरपंथियों के अनुसार ‘मुर्तद’ हो गये थे, ‘गुमराह’ हो गए थे।
इक़बाल जब कादियानी हो गये थे, उसी दौर में उन्होंने अपनी सबसे बेहतरीन नज्में लिखीं थीं। “लाहौलबिलाकुवत”, “तौबा-तौबा का मकाम है” पाकिस्तान के कट्टरपंथियों में शोर है! एक मुर्तद के लिखे तराने हम उम्मत का गीत समझ कर गाते रहे, अफ़सोस अफ़सोस!
यह मुहम्मद इक़बाल ही थे जिन्होंने 1930 में सर्वप्रथम ‘द्विराष्ट्र सिद्धान्त’ का शिगूफ़ाछेड़ा था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब और अफ़गान को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी।
पाकिस्तान आन्दोलन चलाने में ‘जमात-अहमदिया’ ने अपनी ताक़त झोंक रखी थी। ‘ज़मात अहमदिया’ पाकिस्तान निर्माण आन्दोलन में जिन्ना का दायाँ हाथ और वित्त-पोषक बनकर काम कर रही थी। पाकिस्तान के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस सलाम भी एक अहमदिया थे जिन्हें फ़िजिक्स में नोबल प्राप्त हुआ था।
पाकिस्तान ने अहमदियों का मुस्लिम सर्टिफिकेट किया कैंसिल
पाकिस्तान की संसद ने 1974 में एक कानून बनाकर अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया था और समुदाय पर खुद को मुस्लिम कहने पर बैन लगा दिया गया था। हालाँकि अहमदिया खुद को मुस्लिम ही मानते हैं। अहमदियों पर धार्मिक उपदेश देने पर भी रोक लगाई गयी थी। अहमदिया लोगों के हज व उमरा के लिए सऊदी अरब जाने पर भी रोक है।
पाकिस्तान की कुल आबादी 22 करोड़ है जिसमें से करीब एक करोड़ आबादी गैर मुस्लिम हैं। पाकिस्तान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद आज अहमदियों की कब्रें भी उस पाकिस्तान में पत्थर खाने को मजबूर हैं।
2022 में अब तक 185 कब्रों से बेअदबी
पाकिस्तान में पहले से ही अहमदिया लोगों की कब्रों को कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है। महमूद के मुताबिक, सिर्फ इस साल 2022 में ही अब तक 185 कब्रों से बेअदबी की जा चुकी है। अहमदिया समुदाय का लगातार उत्पीड़न हो रहा है और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की गहरी भावना है।
हिन्दुओं में भेदभाव बताने वाले इस पर रहे हैं ख़ामोश!
हिन्दू धर्म में वर्ग संघर्ष खड़ा करने की कोशिश करने वाला एक पूरा गिरोह है, जिसका काम ही है इतिहास का विकृतीकरण करके झूठे अत्याचारों की कहानियाँ गढ़ना और समानता की पींगे पढ़ना। चाहे वह शैव वैष्णव जैसे सम्प्रदाय हों या अलग अलग जातियाँ, समानता के झण्डाबरदारों का लक्ष्य कैसे भी इनमें लड़ाई झगड़े ढूँढना ही रहता है।
हिन्दू धर्म में जितने मत पन्थ मान्यता और सम्प्रदाय हैं, शायद ही दुनिया के किसी और धर्म में होंगे। पर कोई भी मत पन्थ या सम्प्रदाय तमाम असहमतियों के बावजूद न तो दूसरी मान्यता पर हिंसक हमले करता है न ही उनके महापुरुषों और पूर्वजों की स्मृतियों से छेड़छाड़ करता है।
भारत में सभी दार्शनिक अद्वैत, द्वैत से लेकर धार्मिक सम्प्रदाय शैव, वैष्णव, शाक्त, जैन और कबीरपंथी, आर्यसमाजी, स्वामीनारायण आदि तमाम मतभेदों के बाद भी पूरे सद्भाव के साथ रहते हैं। हिंसा तो दूर की बात है, सभी का सामाजिक जीवन भी आपस में पूरी तरह घुला मिला रहता है और सभी को एक दूसरे की हिन्दू पहचान से कोई आपत्ति नहीं होती।
वहीं पड़ोसी देशों को देखते हैं तो अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले तो समान हैं ही, पर आपस में एक दूसरे फिरकों की जो लड़ाई है वह भी कम भयावह नहीं होती, चाहे शिया सुन्नी के बीच हो या फिर अहमदिया पर अत्याचार। पर इसपर विचारकों के मानवतावादी विचार शायद ही फूटें।