26 दिसम्बर, 2022 की सुबह केन्द्रीय जाँच एजेंसी (CBI) ने वीडियोकॉन के संस्थापक वेणुगोपाल धूत को ICICI बैंक मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया। इससे पहले 23 दिसम्बर, 2022 को सीबीआई ने ICICI बैंक की पूर्व एमडी और सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को गिरफ्तार किया था।
कभी अर्थव्यवस्था और बिज़नेस की खबर छापने वाले अख़बार के पहले पन्ने पर रहने वाले ये नाम आज जेल में क्यों हैं? एक दौर था जब भारत के बैंकिंग क्षेत्र में चंदा कोचर का नाम प्रभावशाली और सबसे ताकतवर महिला बैंकर के रूप में लिया जाता था। वो दौर जब यूपीए या यूँ कहें कॉन्ग्रेस के शासनकाल में साल 2010 में चंदा कोचर को देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

एक समय था जब चंदा कोचर को अमेरिका की मशहूर बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स प्रभावशाली महिला और दुनिया भर की टॉप 100 पावर वूमेन की सूची में रखता था।
यही प्रभावशाली और मशहूर महिला बैंकर आज लोन के बदले कैश घोटाले के चलते जेल की सलाखें गिनने की कगार पर खड़ी हैं। ऐसा कहा जाता है कि ICICI बैंक को देश में प्राइवेट सेक्टर का सबसे बड़ा बैंक बनाने में इन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
हालाँकि, सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद इनकी भूमिका कितनी अहम रही घोटाला करने में यह अब नजर आने लगा है।
ICICI बैंक में चंदा कोचर की एंट्री
साल 1984 जब चंदा कोचर ICICI समूह के साथ एक मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में जुड़ीं। चंदा कोचर तत्कालीन चेयरमैन केवी कामत की करीबी कर्मचारी भी रही। काफी समय तक ICICI समूह के साथ जुड़े रहने के बाद आखिरकार साल 2009 में एमडी और सीईओ के रूप में चंदा कोचर को ICICI बैंक की जिम्मेदारी सौंपी गई।
चंदा कोचर और वेणुपोपाल धूत के घोटाले का सम्बन्ध ICICI बैंक से जुड़ने से भी पहले का है। चंदा कोचर परिवार और वेणुगोपाल धूत परिवार के लेन-देन के सम्बन्ध बहुत पहले से रहे हैं।
कम्पनी और शेयर का घालमेल
बात है 24 दिसम्बर, 2008 की जब वीडियोकॉन के धूत बंधुओं और चंदा कोचर के पति दीपक कोचर ने मिलकर न्यूपॉवर रिन्युएल्ब्ल्स नाम की एक कम्पनी बनाई। इस कम्पनी में कोचर परिवार और उनकी एक और कम्पनी पैसिफिक कैपिटल सर्विसेस और धूत बंधुओं की 50-50% की हिस्सेदारी थी।
जब चंदा कोचर, जून 2009 में ICICI की एमडी और सीईओ बनी तो कोचर और धूत ने अपनी कम्पनी न्यूपावर की कुछ हिस्सेदारी, धूत की ही एक कम्पनी सुप्रीम एनर्जी को ट्रांसफर कर दी।
असल खेल तब शुरू होता है, जब धूत की कम्पनी सुप्रीम एनर्जी साल 2009 से 2010 के बीच दीपक कोचर की कम्पनी न्यूपावर रिन्यूएबल को 64 करोड़ रुपए का लोन देती है। सुप्रीम एनर्जी को यह पैसा वीडियोकॉन समूह की ही एक कम्पनी ही देती है।
इसके बाद मार्च 2012 में न्यूपॉवर कम्पनी 10 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से अपने ही 18,97,500 शेयर दीपक कोचर को देती है। इनका मूल्य 1.89 करोड़ बनता है और 1 लाख शेयर सुनील भूटा को जिनका मूल्य बनता है, 10 लाख रुपए।
इस पूरे लेन-देन के बाद चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की हिस्सेदारी इस न्यूपावर रिन्यूएबल कम्पनी में अब 92.67% हो जाती है और सुप्रीम कम्पनी जिसने 64 करोड़ रुपए का लोन दिया था, उसकी हिस्सेदारी मात्र 2.32% रह जाती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि दीपक कोचर को 1.89 करोड़ रुपए में कम्पनी का 92.67% हिस्सा मिल जाता है और 64 करोड़ रुपए लगाने वाली कम्पनी सुप्रीम मात्र 2.32% पर रह जाती है।
इस तरह शेयर को घुमा-फिराकर न्यूपावर रिन्यूएबल कम्पनी का मालिकाना हक दीपक कोचर के हाथों में आ जाता है। आगे जाकर दीपक कोचर अपने ही एक ट्रस्ट पिन्नाक्ल एनर्जी के नाम अपने सारे शेयर कर देते हैं।
इस बीच कोचर परिवार और वेणुगोपाल परिवार लेन-देन की और भी घपलेबाजी करता रहता है।
ICICI बैंक और वीडियोकॉन घोटाला
ICICI बैंक की CEO बनते ही चंदा कोचर ने वीडियोकॉन समूह और उसकी विभिन्न कम्पनियों को साल 2009 से साल 2011 तक 1,876 करोड़ रुपए के 6 लोन दिए। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से अधिकाँश लोन NPA बन गए, जिससे बैंक को तकरीबन 1,730 करोड़ रुपए का चूना लगा यानी आपसी लेन-देन के इस मामले में बैंक को फूटी कौड़ी तक वापस नहीं मिली।
लेन-देन की इस घपलेबाजी को लेकर CBI ने केस दर्ज किया क्योंकि चंदा कोचर ने लोन देते समय बैंक द्वारा निर्धारित नियमावली का उल्लंघन करते हुए करोड़ो रुपए का लोन दे दिया।
साल 2012 में चंदा कोचर की अगुवाई में ICICI बैंक ने वीडियोकॉन समूह को एक बार फिर 3,250 करोड़ रुपए का कर्ज दिया।
कर्ज की यह राशि पहले की तरह इस बार भी वीडियोकॉन समूह की 5 अलग-अलग कम्पनियों को दी गई। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि इन पाँचों कम्पनियों को एक समान धनराशि यानी प्रत्येक कम्पनी को 650 करोड़ रुपए कर्ज के रूप में दिए गए। इसमें भी मजे की बात यह है कि इन पाँचो कम्पनियों को कर्ज देने की तारीख भी एक ही है। तारीख है, 30 अप्रैल, 2012।

इसके अलावा, वीडियोकॉन समूह की एक और कम्पनी जो विदेश में रजिस्टर्ड थी, उसे 660 करोड़ रुपए का कर्जा ICICI की ब्रिटेन और कनाडा स्थित शाखाओं के जरिए दिया गया और इस कर्जे की गारण्टी, भारत में स्थित वीडियोकॉन समूह की 6 कम्पनियों ने दी।
अब सवाल यह है कि जब भी कोई बैंक किसी कम्पनी को लोन देता है तो उस कम्पनी की वैल्यू या नफा-नुकसान जैसी चीजों को देखा जाता है। तो फिर यह कैसे संभव है कि एक ही समूह की सभी कम्पनियाँ एक-समान परफॉर्म कर रही हैं, उन्हें एक समान राशि का लोन मिल रहा है, वो भी एक ही तारीख पर।
इस पर भी बड़ा सवाल यह है कि जब वीडियोकॉन और उससे जुड़ी कम्पनियों को जो लोन पहले दिया गया था, वह NPA घोषित हो चुका था, उसके कुछ महीनों बाद दोबारा लगभग दोगुने से भी ज्यादा लोन कैसे दिया गया?
चंदा की करतूत से बैंक को लगता चूना
बहरहाल, वीडियोकॉन समूह ने ICICI बैंक से जो 3,250 करोड़ रुपए का लोन लिया था, उसमें से मात्र 440 करोड़ रुपए ही चुकाए। बाकी के 2,810 करोड़ रुपए यानी लगभग 86% रुपए का भुगतान नहीं किया। इन पैसों को भी पहले की ही तरह साल 2017 में NPA घोषित कर दिया गया।
यह सारी मिलीभगत उसी दौरान हुई जब चंदा कोचर बैंक की एमडी और सीईओ थी।
करोड़ो रुपए के घालमेल के इस सिलसिले से जुड़ा एक और पहलू है। ICICI बैंक से लोन की मंजूरी मिलने के दौरान वेणुगोपाल धूत ने न्यूपॉवर में अपनी नियंत्रित हिस्सेदारी को अपने ही एक सहयोगी महेश चंद्र पुंगलिया को ट्रांसफर कर दी और पुंगलिया ने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर को मात्र 9 लाख रुपए में अपनी हिस्सेदारी भी बेच दी।
पैसों के इस घालमेल के चलते साल 2018 में CBI ने वेणुगोपाल के सहयोगी महेश चन्द्र पुंगालिया, चंदा कोचर और उनके देवर राजीव कोचर से पूछताछ भी की थी। राजीव कोचर के खिलाफ तो लुकआउट नोटिस तक जारी हुआ था ताकि राजीव देश छोड़कर भाग न पाएँ।

इस दौरान चंदा कोचर एक साल के लिए छुट्टी पर जाती हैं और बाद में बैंक यह कहता है कि कोचर की छुट्टी उनके खिलाफ जाँच पूरी होने तक जारी रहेगी।
चंदा कोचर के खिलाफ ICICI बैंक ने भी शुरूआत में आतंरिक जाँच की। उस समय चंदा कोचर को क्लीनचिट दे दी गई थी। हालाँकि, बाद में जब विवाद बढ़ा तो बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अगुआई में एक जाँच पैनल का गठन किया।
बैंक द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण समिति ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें चंदा कोचर पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया गया।
इसके बाद आरबीआई और सेबी द्वारा इस मामले को CBI और ED को सौंप दिया गया।
इसके अलावा मार्च, 2018 में चंदा कोचर को भगोड़े मेहुल चोकसी के गीतांजलि समूह को भी लोन देने के मामले में मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के तहत सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस द्वारा समन जारी किया गया था।
जब विवाद बढ़ा तो अक्टूबर, 2018 में चंदा कोचर अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही इस्तीफा दे देती हैं और आखिरकार जनवरी 2019 में CBI चंदा कोचर के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने के आरोप में FIR दर्ज करती है। इस पूरे मामले में चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीडियोकॉन के मालिक वेणुगोपाल धूत और अन्य कई प्रमुख बैंकरों का नाम सामने आता है।
चंदा के कार्यकाल के दौरान ICICI बैंक की स्थिति
चंदा कोचर के राज के दौरान ICICI बैंक की माली हालत में खासी गिरावट देखने को मिली। ICICI बैंक की सालाना रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 में ICICI का कुल NPA लोन 9,600 करोड़ रुपए था, जोकि एसेट्स का 1.87% था। चंदा कोचर की रवानगी के साल यानी वर्ष 2018 में बैंक का NPA लोन 54,000 करोड़ रुपए हो गया जोकि इसके कुल एसेट्स का 4.77% था। यानी बैंक का NPA तेजी से बढ़ा।

इसका एक बड़ा कारण चंदा कोचर की अगुवाई में नियमों की अनदेखी कर लोन देना हो सकता है।
एक और आँकड़ा देखें तो ICICI बैंक की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009-10 के दौरान शुद्ध लाभ लगभग 4,000 करोड़ रुपए था। चंदा कोचर के नेतृत्व वाले 10 सालों में इसमें वृद्धि तो दूर की बात इसके उलट गिरावट ही दर्ज की गई। वर्ष 2018-19 के दौरान यह लगभग 3,360 करोड़ रुपए रह गया।

चंदा कोचर के सीईओ बनते समय वर्ष 2009-10 में बैंक ने 4,362 करोड़ रुपए NPA की भरपाई के लिए खर्च किए जबकि वर्ष 2018-19 के दौरान यह बढ़कर 16,800 करोड़ रुपए पहुँच गया।

सरकारी न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक ICICI बैंक की प्रमुख के रूप में चंदा कोचर का कार्यकाल बैंक के लिए नकारात्मक ही रहा, इस दौरान बैंक देश का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक होने का तमगा गँवाकर भी तीसरे नम्बर का प्राइवेट बैंक बन गया।
PM मोदी का ‘फोन अ लोन’ संकेत
साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा कॉर्पोरेट्स को लोन देने के लिए एक शब्द ईजाद किया था। शब्द था ‘फोन अ लोन’। इस शब्द का अर्थ है कि कॉन्ग्रेस राज में बड़े बिजनेस घरानों और सरकार में दखल रखने वाले व्यापारियों की कम्पनियों को बिना जाँचे-परखे सरकारी और निजी बैंकों के ऊपर दबाव बनाकर लोन दिलवाया गया। इसके लिए सरकार में बड़ी हैसियत रखने वाले लोग बैंकों के अधिकारियों को फोन कर अपनी चहेती कम्पनियों और कॉर्पोरेट घरानों को लोन दिलाते थे।
आज चंदा कोचर जैसे फ्रॉड पर मीडिया का वह वर्ग भी ख़ामोश है जो इन्हें यूपीए काल में मसीहा के रूप में सामने रखता आया था, वही लोग जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दी जाने वाली इन ‘फोन अ लोन’ जैसे संकेत को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक में तब्दील कर देना चाहते हैं।
कुछ सवाल चंदा कोचर जैसों के बहाने शेष रह जाते हैं कि बैंकिंग जगत में यूपीए काल में ऐसे ही कितनी बर्बादियाँ होती रही होंगी जिनका अभी सामने आना बाक़ी है। यह सब उन सरकारों की नाक के नीचे होता रहा, वो आरबीआई के लीडर कौन थे जो ये सब होने देते रहे? शीर्ष संस्थाओं पर बैठे वह लोग आज कहीं किसी यात्रा का हिस्सा बनते देखे जा सकते हैं।
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