विदेशी फंड में हेराफेरी के आरोपी वैश्विक एनजीओ ऑक्सफेम ने एक बार फिर से बड़े-बड़े आंकड़े दिखा कर आम जनमानस को गुमराह करने की कोशिश की है। सितम्बर 14, 2022 को जारी एक रिपोर्ट में एनजीओ ने भारत में अमीर-गरीब के बीच की खाई और लोगों के सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच ना होने की बात कही है।

रिपोर्ट में बढ़ते लखपतियों की संख्या को चिंताजनक तरीके से पेश किया गया है और साथ ही अन्य आँकड़ो से धर्म के आधार पर रोजगार में भेदभाव की बात कही गई है।यह वही एनजीओ ऑक्सफैम है जिसपर विगत सप्ताह सितम्बर 07, 2022 को आयकर विभाग ने विदेशी फंड में अनियमितताओं और विदेशी फंडिंग कानून के उल्लंघन के कारण छापेमारी की थी।
रिपोर्ट के दावे
रिपोर्ट के अनुसार, मात्र 10% भारतीयों के हाथों में भारत की 70% से ज्यादा संपत्ति है, इसी के साथ ही भारत में लगातार 2018 से 2022 के बीच रोज 70 लोग लखपति बन रहे हैं। भारत में अरबपतियों की संपत्ति एक दशक के अंदर दोगुनी हो गई है और वर्ष 2018-19 में उनकी कुल संपत्ति भारत के वार्षिक बजट से अधिक हो गई है।
इसी के साथ ही रिपोर्ट ने लिखा है भारत में 6.3 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं में बेतहाशा खर्चे के चलते गरीबी की स्थिति में आ गए हैं। रिपोर्ट भारत के रोजगार बाजार के बारे में बताती है कि भारत में महिलाएँ और मुस्लिम, अन्य वर्गों की अपेक्षा कम कमा रहे हैं और उनके लिए रोजगार बाजार में कम मजदूरी दी जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019-20 की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान जहाँ अनुसूचित जाति एवं जनजाति के स्वरोजगार वाले लोगों ने 10,819 रूपए कमाए, वहीं इस दौरान मुस्लिमों ने स्वरोजगार से 15,088 रूपए कमाए और इसी के साथ ही अन्य ऊंची जातियों एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगो ने 15,490 रुपए कमाए।
लेकिन यही रिपोर्ट अपने ही दावे के अंतर्विरोध से भी भरी नजर आती है। आंशिक समय के लिए मिलने वाले रोजगार या अर्थशास्त्र की भाषा में प्रच्छन्न रोजगार के अंर्तगत सबसे ज्यादा कमाई करने वालो में मुस्लिम ही थे।
रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ो के अनुसार, वर्ष 2019-20 की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान भारत में जहाँ अनूसूचित जाति एवं जनजातियों के लोगो को 13,081 रुपए इस प्रकार के रोजगार से मिले, वहीं मुस्लिम समाज के लोगों को 15,117 रूपए प्रच्छन्न रोजगार से मिले।
सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खाते दावे
रिपोर्ट में किए गए काफी दावे सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं, उदाहरण के तौर पर रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो इलाज पर बेतहाशा खर्चे के चलते गरीबी के दंश को झेल रहे हैं, जबकि हाल ही में आई सरकारी विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आम जनमानस द्वारा स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्चे में करीब 16% तक की कमी आई है।

इसी के साथ ही सरकार द्वारा किए जा रहे स्वास्थ्य पर खर्चे में भी काफी बढ़ोतरी देखी गई है, जहाँ केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 के दौरान 47,000 करोड़ रुपए स्वास्थ्य बजट के लिए आवंटित किए थे वहीं यह राशि 2022-23 के दौरान करीब 75% बढ़कर 83,000 करोड़ पहुँच चुकी है।
साथ ही रिपोर्ट का यह बताना कि भारत में 2018-22 के बीच में प्रत्येक दिन भारत में 70 नए लोग लखपति बने, यदि देखा जाए तो यह एक प्रसन्नता की बात है। यदि इस आंकड़े को हम पूरे पांच साल यानी 2018-22 के लिए लें तो यह बत्ताता है कि भारत में 1.25 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो इस दौरान आर्थिक रूप से सशक्त होने में सफल रहे हैं।
रोजगार की स्थितयों के बारे में कुछ समय पहले आई EPFO की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 2017-22 के बीच 5.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला, ऐसे में यह स्थिति पैदा होने की संभावना असंभव ही दिखाई देती है कि इस में मुस्लिमों को रोजगार नहीं मिला होगा।
एनजीओ का विवादों से नाता
भारत में विदेशी फंडिंग में अनियमितताओं में फंसे इस एनजीओ का विवादों से पुराना नाता रहा है। इस एनजीओ की पैरेंट संस्था ऑक्सफैम का कई देशों में संचालन होता है। साल 2021 में सामने आए एक मामले में कांगो में इस एनजीओ के कर्मचारियों के ऊपर यौन शोषण के आरोप लगे थे, जिसके कारण ब्रिटेन ने इस एनजीओ की फंडिंग रोक दी थी।

वहीं इससे पहले 2018 में दक्षिण अमेरिकी देश हैती में सामने आए ऐसे ही आरोपों के कारण एनजीओ की फंडिंग पर तीन साल की रोक लग गई थी। हैती में यह एनजीओ 2010 के बाद आए भूकम्पों के बाद लोगों की मदद में संलग्न होने का दावा कर रहा था, जिसके बाद यह आरोप सामने आए।
भारत में इस एनजीओ का विदेशी फंडिंग पाने के लिए जरुरी लाइसेंस इस वर्ष जनवरी में खत्म हो गया था। सरकार के अनुसार एनजीओ ने FCRA कानून का पालन नहीं किया था। सितम्बर 2022 में इस संगठन पर पड़े छापे भी इसी तरफ इशारा करते हैं।