सोमवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार के नोटबंदी वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा।
ओवैसी ने कहा, “मेरा सुझाव है कि पीएम मोदी ‘नोटबंदी दिवस’ मनाएं, वे अब क्यों नहीं मनाते? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि नोटबंदी के कारण प्लंबर, ड्राइवर, कलाकार, बिजली मिस्त्री आदि बर्बाद हो गए।”
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उन्होंने आगे कहा, “प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को (नोटबंदी के लिए) सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ओवैसी ने कहा कि 50 लाख लोगों की नौकरी चली गई और 100 लोगों की मौत हो गई। ओवैसी ने कहा, पीएम मोदी ने भारत के कार्यबल को छोटा कर दिया है।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था और देश के लोगों को जो भी परिणाम भुगतने पड़े हैं, उसके लिए सरकार जिम्मेदार है।
खड़गे ने कहा “मोदी सरकार द्वारा लागू की गई नोटबंदी के दुष्परिणामों में 120 लोगों की जान जाना, करोड़ों लोगों का रोजगार छिनना, असंगठित क्षेत्र का तबाह होना, काला धन कम न होना और नकली नोटों का बढ़ना शामिल है। मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमेशा गहरे घाव की तरह रहेगा।”
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को 4-1 के बहुमत से केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि केंद्र सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई दोष नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र के पास बैंक नोटों की सभी शृंखलाओं को डिमोनेटाइज करने की शक्ति थी। नोटबंदी के निर्णय को अनुचित नहीं कहा जा सकता है और न ही यह आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित था।
आनुपातिकता का सिद्धांत (Doctrine of Proportionality) को आमतौर पर प्रशासनिक कार्रवाई से जुड़े अधिकांश मामलों में न्यायिक समीक्षा के आधार के रूप में माना जाता है।
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