आपने बीते कुछ दिनों में लिबरल वामपंथी और वोक पत्रकारों को एक डायलाग मारते हुए हुए सुना होगा, “अगर एक बन्दा कहता है कि बाहर बारिश हो रही है और दूसरा कहता है कि नहीं हो रही तो मीडिया का काम है कि वह बाहर जाकर चेक करे कि बारिश हो रही है कि नहीं, ना कि दोनों की बातों को सामने रख दे।”
CLAIM: Over 13 Lakh Girls, Women Went Missing Between 2019-2021 In India
ऐसा ही एक मामला रविवार के दिन सामने आया है। कॉन्ग्रेस के एक जाने माने सांसद के घरवालों द्वारा संचालित एक कथित निष्पक्ष मीडिया चैनल ने संसद में दिए गए एक उत्तर का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2019 से वर्ष 2021 के बीच 13.13 लाख बालिकाएं और महिलाएं गायब हुईं। कुछ राज्यों से संबंधित आँकड़े भी बताए गए। फिर देखते ही देखते सारे मीडिया संस्थानों ने इसी एक खबर को लपक लिया।
NCRB के आंकड़े क्या कहते हैं
वैसे यह आँकड़ा आपको एक नज़र में सही और ‘तथ्यात्मक’ लगेगा, लेकिन इसकी सच्चाई कुछ और है जिसके लिए हमें न्यूज़ चैनल्स की क्लिकबेट हेडलाइंस नहीं बल्कि NCRB के असली डाटा को देखना होगा। असल में महिलाओं के ग़ायब होने के इस 13.13 लाख के आँकड़े में मात्र, 7.36 लाख महिलाएं और बालिकाएं ही 2019 से 2021 के बीच गायब हुई हैं।
इससे ज्यादा जितना भी आँकड़ा है वह उन बच्चियों और महिलाओं का है जो कि इससे पहले से गायब थीं और ढूंढी नहीं जा सकीं। इसलिए उन्हें भी इसमें जोड़ कर दिखाया गया है।
एक और आँकड़ा है, जो आपको नहीं बताया गया, वह भी सुन लीजिए, 2019 से 2021 के बीच 7.36 लाख बालिकाएं और महिलाऐं गायब हुईं तो इसी दौरान 7,08,270 महिलाएं और बालिकाएं ढूंढ भी ली गईं, इसमें वो भी शामिल हैं जो 2019 से पहले गायब हुईं थी।
यानी जितनी बालिकाएं और महिलाएं गायब हुईं उसका लगभग 97% से अधिक ढूंढ भी ली गईं। लेकिन ट्विटर पर रीट्वीट बटोरने वाले चैनल्स ने यह बताना जरूरी नहीं समझा।
खैर, अब इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं –
चैनल का कहना है कि 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,348 महिलाएं लापता हुईं जबकि 18 साल से कम की 2,51,430 बालिकाएं गायब हुईं। इसकी सच्चाई के लिए साल दर साल का आँकड़ा ले लेते हैं-
सबसे पहले बात 2019 की, इस दौरान 18 वर्ष से कम आयु की 52,049 बालिकाओं के गायब होने के मामले दर्ज किए गए और इसी दौरान 49,436 बालिकाएं वापस ढूंढ ली गईं और इसमें वह बालिकाएं भी शामिल थीं जो कि 2019 से पहले कभी गायब हुई थीं।
इसी तरह 2019 में ही 18 वर्ष से अधिक आयु 1,96,348 महिलाएं गायब हुईं और इसी दौरान 1,73,513 ढूंढ भी ली गईं। यानी लगभग जितनी महिलाएं गायब हुई उसका 90% ढूंढी गई।
2020 में 45,687 बालिकाएं गायब हुईं और 48,717 को ढूंढ लिया गया, यानी गायब हुई बच्चियों से ज्यादा संख्या उनकी थी जिन्हें इस दौरान ढूँढ लिया गया। जबकि इस दौरान 18 वर्ष से ज्यादा की 1,76,708 महिलाएं गायब हुईं और 1,75,326 ढूंढ ली गईं। यानी फिर से, जितनी महिलाएं गायब हुईं उनका लगभग 99% तलाश लिया गया ।
बात अगर 2021 की जाए तो इस दौरान 59,544 बालिकाएं गायब हुईं, 58,980 ढूंढ ली गईं, यानी फिर से स्ट्राइक रेट लगभग 98% का रहा है। वहीँ, 2021 में 2,05,937 18 साल से ज्यादा की महिलाऐं गायब हुईं और 2,06,501 महिलाएं ढूंढ ली गईं। इसका मतलब है कि 2021 के दौरान देश में गायब हुई महिलाओं से ज्यादा महिलाएं ढूंढ ली गई।
इससे ज्यादा नम्बर्स जो भी हैं वह इससे पहले से ही सालों के उन महिलाओं और बच्चियों के हैं जो कि ढूंढी नहीं जा सकी। लेकिन लगता है कि स्टूडियो में छाता लेकर जानेवाली पत्रकारिता भला इतनी गणित कैसे लगाए जब उसका काम सनसनी फ़ैलाने से चल ही रहा है।
अगर प्रदेशों की बात की जाए तो कहा गया है कि मध्य प्रदेश से 3 सालों में 38,234 बच्चियां लापता हुई, असल में मध्य प्रदेश में 2019-21 के बीच 25,209 बच्चियां लापता हुईं, इससे अधिक जो भी नम्बर है वह पहले के सालों में नहीं मिली बच्चियों का है। इसी दौरान मध्य प्रदेश में 27,122 बच्चियां ढूंढ भी ली गईं।
अच्छा होता कि बजाय समाज में भ्रम फैलाने के, यह चैनल्स कुछ रिसर्च करते, असल आँकड़े सामने लाते। लेकिन भला उससे सनसनी कैसे फैलती?
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