कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा से लेकर गठबंधन के निर्माण तक बहुत सफाई से अपनी राजनीति जमाई थी। राहुल गांधी को एक बार फिर से धीरे-धीरे अघोषित रूप से विपक्ष के नेता के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा था। शुरूआती कुछ बैठकों में इसपर सर्वसम्मति तो नहीं बनी पर कांग्रेस उन्हें चर्चित चेहरा बनाए रखने में कामयाब रही थी फिर वह लालू प्रसाद यादव द्वारा विवाह कर लेने की सलाह से हो या लालू जी से चंपारन मटन बनाना सीखने के बहाने हो।
हालांकि हाल ही में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद लग रहा है कि कांग्रेस की तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया है।
ममता बनर्जी ने केजरीवाल के साथ मिलकर प्रधानमंत्री पद के लिए दलित राजनीति के बहाने मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रोल में प्रोजेक्ट किया है। जाहिर है कि खड़गे प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पसंद हों या न हों, पर ऐसा करने से यह तो स्पष्ट हो गया कि कम से कम ये दो नेता राहुल गांधी को विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाये जाने पर सहमत नहीं हैं।
कर्नाटक और हिमाचल की जीत के बाद कांग्रेस ने विश्वास कर लिया था कि विपक्ष में बैठे अन्य दल अब राहुल गांधी को स्वीकार करने में देर नहीं लगाएंगे। अपने इस विश्वास को और पुख़्ता बनाने के लिए पार्टी ने ३ दिसंबर तक विधानसभा चुनाव के परिणाम की भी प्रतीक्षा की। पर अब लग रहा है कि गठबंधन किसी और ही दिशा में निकल गया है औऱ राहुल गांधी इसका विषय नहीं रहे।
यह शायद इसलिए भी हुआ क्योंकि 5 राज्यों के चुनावों में राहुल गांधी ने जिन मुद्दों को उठाया वो जनता ने सिरे से नकार दिए हैं। चार राज्यों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में गठबंधन के नेताओं का अपने विरोध के साथ अब सामने आना स्वभाविक है।
इस विरोध की शुरूआत चुनाव के बाद हुई यह सोचना गलत होगा क्योंकि विरोध तो शुरू से ही था पर सार्वजनिक रूप से अब सामने आया है औऱ शायद आगे भी आता रहेगा। यह तो गठबंधन की शुरुआत से तय था कि सभी दल मोदी विरोध के कारण एक हुए हैं। इनमें विचारधारा, रणनीति, सीट शेयरिंग और लीडरशीप पर सहमति बनना असंभव ही थी। अब चुनावों के बाद कांग्रेस की स्थिति देखकर यह असहमति सामने आने लगी है। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने तो महज इसकी शुरूआत की है।
ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी या केजरीवाल गठबंधन में सहमति बनाने वाला कोई स्थान रखते हैं पर विपक्षी एकता और राहुल गांधी की ली़डरशीप पर उन्होंने बड़ा प्रश्न उठा दिया है। यह बात राहुल गांधी और कांग्रेस भी जानती है। यही कारण है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के प्रश्नों को चुनाव बाद तय करने को कहा है।
पर विपक्षी दलों के इन नेताओं द्वारा किया गया यह काम केवल राहुल गांधी के बारे में कुछ कह रहा है, ऐसा नहीं है। तथाकथित गठबंधन की हालिया बैठक में जो हुआ, वह कांग्रेस पार्टी को चलाने वाले उन लोगों के ऊपर भी एक तरह से फ़ैसला है जो पार्टी और राहुल गाँधी को इस समय सलाह दे रहे हैं, फिर वह के सी वेणुगोपाल हों या जगराम रमेश। यह शायद कांग्रेस पार्टी को उत्तर भारत कांग्रेस और दक्षिण भारत कांग्रेस में बाँटने की राजनीतिक योजना पर एक तरह से टिप्पणी है।
गांधी परिवार के होते या बिना उनकी अनुमति के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई ऐलान नहीं कर सकते। अब अरविंद केजरीवाल हो, ममता बनर्जी या नीतीश कुमार, सभी धीरे धीरे इस बात को स्वीकार करते से नज़र आ रहे हैं कि इंडी अलायन्स की इस खिचड़ी का पकना कम से कम तब तक संभव नहीं जब तक कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी द्वारा चलाई जाएगी। ऐसे में उन्होंने खड़गे को प्रोजेक्ट करके राहुल गांधी के लिए मुसीबत पैदा कर दी है जो जननायक बनने का प्रयास तो कर रहे हैं पर अभी तक विपक्षी दलों में अपने लिए सहमति नहीं बना पाएं हैं।
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