The PamphletThe Pamphlet
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
What's Hot

हायब्रिड युद्ध में भारतीय पक्ष को रखने की कोशिश है ‘द वैक्सीन वार’

September 29, 2023

पाकिस्तान: जुम्मे के दिन मस्जिद में आत्मघाती बम विस्फोट, 57 की मौत, पख्तूनख्वा प्रांत में हुआ हादसा

September 29, 2023

अब राजस्थान में मिला बंगाल की तरह सड़क पर महिला का अधजला शव, सिर पर हमला कर की हत्या

September 29, 2023
Facebook X (Twitter) Instagram
The PamphletThe Pamphlet
  • लोकप्रिय
  • वीडियो
  • नवीनतम
Facebook X (Twitter) Instagram
ENGLISH
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
The PamphletThe Pamphlet
English
Home » जितने दल, उतने ‘प्रधानमंत्री’: विपक्ष के गठबंधन का क्या है भविष्य
प्रमुख खबर

जितने दल, उतने ‘प्रधानमंत्री’: विपक्ष के गठबंधन का क्या है भविष्य

अभिषेक सेमवालBy अभिषेक सेमवालNovember 24, 2022No Comments8 Mins Read
Facebook Twitter LinkedIn Tumblr WhatsApp Telegram Email
पीएम नरेन्द्र मोदी
पीएम नरेन्द्र मोदी
Share
Facebook Twitter LinkedIn Email

पश्चिम बंगाल की राजनीति में हलचल फिर से तेज हो गई है। भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल की राज्य में “बड़ा खेला” की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, तृणमूल कॉन्ग्रेस के विधायक मदन मित्रा ने मंगलवार को इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा ममता बनर्जी हैं।

समाचार एजेन्सी एएनआई से बात करते हुए टीएमसी विधायक ने कहा कि टीएमसी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बजाय बीजेपी के 30 विधायक टीएमसी में शामिल होना चाहते हैं। मित्रा के अनुसार, “अग्निमित्रा पॉल कहना चाहती थीं कि बीजेपी के 30 विधायक तृणमूल कॉन्ग्रेस में शामिल होना चाहते हैं लेकिन वह सीधे तौर पर यह नहीं कह सकीं और इसके बजाय उन्होंने कहा कि टीएमसी के सभी विधायक बीजेपी में आ रहे हैं।”

इससे एक दिन पहले, यह कहते हुए कि पश्चिम बंगाल में एक “बड़ा खेला” होगा। भारतीय जनता पार्टी के विधायक अग्निमित्रा पॉल ने दावा किया कि इस साल दिसम्बर के बाद तृणमूल कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली राज्य सरकार नहीं बचेगी। उन्होंने यह दावा किया कि सत्तारूढ़ टीएमसी के 30 से अधिक विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार का अस्तित्व दांव पर है।

टीएमसी विधायक के इस बयान के अलग-अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। एक ओर यह बयान पश्चिम बंगाल की राजनीति में आक्रामक हो रही भाजपा को चुनाव परिणाम याद दिलाने की ओर इशारा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह दिखाता है कि ममता बनर्जी को एक बार फिर से देश के नेता के तौर पर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। 2024 के आम चुनावों की सुगबुगाहट तेज़ हो गई है। जिसके चलते टीएमसी नेता और विधायकगण ममता को बंगाल से बाहर चेहरा बनाने में फिर से जुट गए हैं।

हालाँकि, ममता बनर्जी के अलावा भी अन्य कई नेता हैं जो 2024 के आम चुनावों में मोदी के खिलाफ चेहरा बनना चाहते हैं। 

हर एक दल में प्रधानमंत्री उम्मीदवार

नीतीश कुमार 

वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के सपने संजोने वाले बिहार के मुख़्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में हाल में बदले सत्ता समीकरण के बाद एक बार फिर से सक्रिय दिख रहे हैं। नीतीश कुमार आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने हाल ही में दिल्ली का दौरा भी किया था,जहाँ उन्होंने राहुल गाँधी, शरद पवार, अरविन्द केजरीवाल, शरद यादव समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी। 

प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर उनका जवाब था कि ममता बनर्जी से बातचीत हुई है और 2024 में चुनाव से पहले विभिन्न जगहों पर लोग एक साथ होंगे तो अच्छा रहेगा। सब एकजुट होंगे, तो चेहरा तय हो जाएगा। जेडीयू के विधायक,पदाधिकारी भी नीतीश को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने के लिए खुले मंचों से दावा पेश कर रहे हैं।

शरद पवार 

ऐसा ही वाकया पिछले माह एनसीपी के राष्ट्रीय सम्मेलन में देखने को मिला जहाँ राष्ट्रवादी युवक कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह कहा कि यदि वर्ष 2024 में नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को हराना है तो पवार साहेब को ही विपक्ष की कमान संभालनी होगी क्योंकि बीजेपी जैसी पार्टी से टकराने के लिए उनके जैसे अनुभवी और ऊर्जावान नेता की ही जरूरत है।

शरद पवार को उनके अनुभव के आधार पर विपक्षी दल उनमें  नेतृत्व की क्षमता देखते हैं। यही कारण है कि उन्हें कई बार यूपीए का अध्यक्ष बनाने की उम्मीदें जगती रहती हैं। एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने सबसे पहले शरद पवार को विपक्ष का सबसे बड़ा नेता बताकर कहा कि नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर और अखिलेश यादव से लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन तक शरद पवार से इसीलिए मार्गदर्शन लेने आते हैं क्योंकि उनको पता है कि पवार ही विपक्ष को एकजुट रख सकते हैं।

हालाँकि, बैठक के बाद प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं। शरद पवार अपने अनुभव के दम पर भले ही इस बड़ी चुनौती के बारे में विचार कर सकते हैं पर इस दौड़ में एक से अधिक क्षेत्रीय पार्टियों के नेता भी शामिल हैं। ऐसा ही एक नाम है तेलंगाना के मुख़्यमंत्री के चंद्रशेखर राव

केसीआर भी पूर्व में अरविन्द केजरीवाल से लेकर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी जैसे विपक्ष के नेताओं से मिल चुके हैं। ज्ञात हो कि इसी प्रयास के तहत हाल ही में चंद्रशेखर राव द्वारा ने अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदल कर भारत राष्ट्र समिति किया। उनके इस कदम के पीछे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केसीआर स्वयं को तेलंगाना तक ही सीमित नहीं रखना चाहते। वे राष्ट्रीय स्तर के नेता की छवि बनाना चाहते हैं।

केसीआर समय समय पर पीएम मोदी एवं बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्ष के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं। उन्होंने ‘बीजेपी मुक्त भारत’ का नारा भी दिया है। 

वर्ष 2016 में नीतीश कुमार ने भी ‘आरएसएस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। हालाँकि, बाद में वे भाजपा के साथ हो गए। अब भाजपा का साथ छोड़ने के बाद नीतीश कुमार फिर भाजपा-आरएसएस के खिलाफ हैं तथा विपक्षी एकता की बात करते दिख रहे हैं। क्षेत्रीय दलों के नेता एकजुटता की कितनी भी कोशिश कर लें, कॉन्ग्रेस ही सबसे बड़ा विपक्षी दल है, वे इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।

यह बात ममता बनर्जी भी जानती हैं। इसलिए वह स्वयं को मुख्य विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित करने की होड़ में कॉन्ग्रेस के साथ जाने से बचती हैं। विपक्षी दल जिस मोदी और भाजपा विरोध के अजेंडे के तहत एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं। वह राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो सकता है लेकिन राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दल और विपक्षी राष्ट्रीय दल इस कदर उलझे हुए हैं कि राज्यों की राजनीति में वह बंट जाते हैं।

उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल 

तेलंगाना की बात करें तो केसीआर सरकार के विरुद्ध कॉन्ग्रेस मुख्य विपक्षी दल है पर जिन नीतीश के साथ केसीआर राष्ट्रीय विपक्ष की तैयारी कर रहे हैं। वहाँ बिहार सरकार में कॉन्ग्रेस नीतीश सरकार में सहयोगी पार्टी है। दूसरी बात यह कि बिहार के महागठबंधन में शामिल कॉन्ग्रेस भी नीतीश को प्रधानमंत्री के पद लायक कहने से बच रही है क्योंकि यदि नीतीश कुमार प्रत्याशी बनेंगे तो फिर राहुल गाँधी क्या करेंगे?

ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र की राजनीति में दिखता है। हाल ही में सत्ता से बेदखल हुए महाअघाड़ी गठबंधन में कॉन्ग्रेस द्वारा भी शरद पवार को बड़े नेता के तौर पर स्वीकार किया जाता है लेकिन जहाँ बात प्रधानमंत्री के चेहरे पर राहुल गाँधी की बात आती है, महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस और एनसीपी बंटे हुए नज़र आते हैं।

शायद इसलिए राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा में शरद पवार के शामिल होने की अटकलें तेज़ तो थी पर हाँ, ना, हाँ, ना के फेर में अंत में शरद पवार की ओर से बयान आया कि वह बीमार हैं। फिर उद्धव ठाकरे की शिवसेना से आदित्य ठाकरे विपक्षी एकजुटता के प्रतिनिधि के तौर पर भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए।  

शायद ठाकरे परिवार को इस बात का भान था कि यात्रा के दौरान महाराष्ट्र में ही राहुल गाँधी वीर सावरकर को माफीवीर बता देंगे। हालाँकि, ठाकरे परिवार सरकार में रहते हुए भी कॉन्ग्रेस द्वारा वीर सावरकर का अपमान को सह चुका था। 

विपक्षी एकता का भविष्य अंधकार में क्यों?

इन दलों की रणनीति में एक सामान्य बिंदु यह है कि पार्टी के विधायक और मंत्री अपने नेता को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित तो कर रहे हैं। लेकिन, ये नेता स्वयं अपनी उम्मीदवारी नकार दे रहे हैं। इन दलों के साथ आने में मूल समस्या यह है कि बाहर चाहे कितने भी एकजुट नज़र आएं, निजी तौर पर सबके हित स्वयं के लिए सर्वोपरि हैं।

इसी वर्ष संपन्न हुए उपराष्ट्रपति पद के चुनावों में विपक्षी एकता की एक झलक दिख ही गई थी, जब तृणमूल कॉन्ग्रेस ने स्वयं को विपक्ष के उम्मीदवार से अलग कर दिया था। राजनीतिक दलों को समझना होगा कि परिस्थितियाँ 60 या 70 के दशक जैसी नहीं हैं, जहाँ लोहिया और जेपी की गैर कॉन्ग्रेसवाद पर सभी दल एकजुट हो जाते थे। राजनीतिक सुचिता भी ऐसी नहीं रही कि एक वोट न मिलने के कारण प्रधानमंत्री सत्ता से ही इस्तीफा दे दें।

इतिहास भी खिचड़ी सरकारों के पक्ष में अधिक नहीं नज़र आता।चुनाव आयोग के आँकड़ों के अनुसार 1977 से लेकर 2018 तक 138 राज्य सरकारों का गठन हो चुका है, इनमें से 40 सरकारें गठबंधन की थी, जिनका औसत कार्यकाल 26 महीने से भी कम रहा।

अरविन्द केजरीवाल और ओवैसी जैसे नेता, जिन पर राष्ट्रीय दलों की ‘बी पार्टी’ होने का तमगा लगा रहता है, देखना यह होगा कि ऐसी पार्टियां विपक्षी कुनबे में क्या भूमिका निभाएंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल जिन नेताओं को भ्रष्टाचारी घोषित कर चुके हैं, उनके बीच कैसे समन्वय बना पाते हैं?

सब कुछ देखते हुए कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, प्रयास और एकता की भावना अपनी जगह पर राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध एक सहमति बनाना फिलहाल आसान नहीं दिखाई दे रहा है। समय-समय पर नाम उछाले जाते हैं पर उसके बाद के प्रयासों को लेकर एक तरह का एक भ्रम बना रहता है।

मीडिया, विशेषज्ञ और राजनीतिक पंडित अपने-अपने स्तर पर कयास लगाते रहते हैं पर अब तक यह तय नहीं हो सका कि कौन सा नेता है जो 2024 में नरेन्द्र मोदी के मुकाबले विपक्ष को नेतृत्व दे सकता है। 

Author

  • अभिषेक सेमवाल
    अभिषेक सेमवाल

    View all posts

Share. Facebook Twitter LinkedIn Email
अभिषेक सेमवाल
  • Facebook
  • X (Twitter)

Related Posts

हायब्रिड युद्ध में भारतीय पक्ष को रखने की कोशिश है ‘द वैक्सीन वार’

September 29, 2023

पाकिस्तान: जुम्मे के दिन मस्जिद में आत्मघाती बम विस्फोट, 57 की मौत, पख्तूनख्वा प्रांत में हुआ हादसा

September 29, 2023

अब राजस्थान में मिला बंगाल की तरह सड़क पर महिला का अधजला शव, सिर पर हमला कर की हत्या

September 29, 2023

बंगाल: खेत में मिला युवती का अधजला शव, भाजपा ने I.N.D.I. गठबंधन से पूछा- आलोचना भी करेंगे या नहीं?

September 29, 2023

वाइब्रेंट गुजरात: शून्य से उठकर ‘विकसित गुजरात’ तक के दो दशक

September 29, 2023

भारतीय परिवारों की भौतिक आस्तियों में हुई अतुलनीय वृद्धि

September 29, 2023
Add A Comment

Leave A Reply Cancel Reply

Don't Miss
राष्ट्रीय

हायब्रिड युद्ध में भारतीय पक्ष को रखने की कोशिश है ‘द वैक्सीन वार’

September 29, 202319 Views

वास्तव में द वैक्सीन वार नामक यह फिल्म हायब्रिड वारफेयर के दौर में भारतीय पक्ष को रखने की संजीदगी भरी कोशिश है।

पाकिस्तान: जुम्मे के दिन मस्जिद में आत्मघाती बम विस्फोट, 57 की मौत, पख्तूनख्वा प्रांत में हुआ हादसा

September 29, 2023

अब राजस्थान में मिला बंगाल की तरह सड़क पर महिला का अधजला शव, सिर पर हमला कर की हत्या

September 29, 2023

बंगाल: खेत में मिला युवती का अधजला शव, भाजपा ने I.N.D.I. गठबंधन से पूछा- आलोचना भी करेंगे या नहीं?

September 29, 2023
Our Picks

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के राजस्थान दौरे से उतरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के माथे पर पसीना

September 29, 2023

राघव चड्ढा की अमीरी पर सवाल करने वाले कांग्रेसी MLA को पंजाब पुलिस ने उठाया

September 28, 2023

एस जयशंकर ने वैश्विक मंच पर भारतीय एजेंडा तय कर दिया है

September 28, 2023

रोजगार मेला: 51000 युवाओं को सरकारी नौकरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के 46 केंद्रों में बांटे नियुक्ति पत्र

September 26, 2023
Stay In Touch
  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • YouTube

हमसे सम्पर्क करें:
contact@thepamphlet.in

Facebook X (Twitter) Instagram YouTube
  • About Us
  • Contact Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • लोकप्रिय
  • नवीनतम
  • वीडियो
  • विमर्श
  • राजनीति
  • मीडिया पंचनामा
  • साहित्य
  • आर्थिकी
  • घुमक्कड़ी
  • दुनिया
  • विविध
  • व्यंग्य
© कॉपीराइट 2022-23 द पैम्फ़लेट । सभी अधिकार सुरक्षित हैं। Developed By North Rose Technologies

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.