पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार की कार्रवाई के प्रति विपक्षी दलों का रूख असहयोग का ही रहा है। ईडी और सीबीआई की कार्रवाई को लोकतंत्र के लिए खतरा बताकर मोदी सरकार को घेरने वाले दल करवाई को रोकने के सारे प्रयास खर्च कर देने के बाद अब तंज कसने पर उतर आये हैं। शायद इसलिए क्योंकि ये राजनीतिक दल अपने अन्य विकल्प आजमा चुके हैं और उन्हें लगता है कि प्रवर्तन निदेशालय या सीबीआई की कार्रवाई पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर तंज कसना ही आख़िरी विकल्प बचा है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के OSD और राजनीतिक सलाहकार पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़े तो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद देते हुए इन छापों को उनके जन्मदिन का उपहार बताया। बघेल ने केंद्र सरकार पर तंज कसकर यह तय कर दिया है कि यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से की गई है। प्रश्न यह है कि ऐसी प्रतिक्रिया में नया क्या है? पिछले कई वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय या सीबीआई को विपक्षी नेता भारतीय जनता पार्टी का दाहिना हाथ तक बता चुके हैं।
ईडी छत्तीसगढ़ में 2000 करोड़ रुपए के काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही है। इसमें उच्चस्तरीय अधिकारियों, नेताओं और निजी व्यक्तियों के नाम सामने आते रहे हैं। इनकी जांच करने पर मुख्यमंत्री को सिर्फ इसलिए तो समस्या नहीं हो सकती क्योंकि छापेमारी के दिन उनका जन्मदिन था। कांग्रेस नेता हरीश रावत ने भी कहा कि सिर्फ बीजेपी ही किसी मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर ऐसा कार्य करवाकर उन्हें शर्मसार करने का कार्य कर सकती है।
पहला प्रश्न तो यह है कि भ्रष्टाचार औऱ काले धन की जांच कर रही ईडी की कार्रवाई से बघेल को शर्मसार होने की क्या आवश्यकता है? दूसरा प्रश्न यह है कि क्या ईडी सरकार के कहने पर कार्रवाई करती है?
विशेष दिन हो या सामान्य दिन, मुख्यमंत्री जांच एजेंसियों का सहयोग कर सरकार की पारदर्शिता एवं राष्ट्रीय जांच एजेंसियों में विश्वास का उदाहरण पेश कर सकते हैं। बघेल द्वारा इस कार्रवाई पर तंज कसना उसी कांग्रेसी परंपरा का उदाहरण है जो जांच की कार्रवाई में स्वयं का विशेष दर्जा चाहती है।
वर्ष, 2014 के बाद से राजनीतिक दल निज के लिए विशेष दर्जे का व्यवहार चाहते रहे हैं। यह उसी सोच का नतीजा है जो भारतवर्ष में दशकों से इस प्रश्न में झलकता रहा है कि; आज़ादी के बाद भारत में किस नेता को सजा हुई है?
ऐसे में इन राजनीतिक दल और उनके नेताओं के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल हुआ जा रहा है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई में उन्हें किसी तरह की विशेष छूट नहीं मिल रही। इसी छूट को लेने की ख़ातिर पंद्रह दलों के नेता सर्वोच्च न्यायालय तक गए पर न्यायालय ने इस तरह के किसी भी विशेष छूट देने से मना कर दिया।
न्यायालय से ईडी और सीबीआई की शक्तियों में कटौती नहीं मिलने के कारण अब कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के पास सरकार को लोकतंत्र विरोधी घोषित करने के अलावा कोई चारा नहीं है। इसीलिए ऐसी किसी भी कार्रवाई का भार केंद्र सरकार पर डालने के लिए तंज का सहारा लिया जा रहा है।
भ्रष्टाचार की जांच में सहयोग न करना केंद्र सरकार का विरोध नहीं बल्कि कार्रवाई से बचाव का तरीका ही माना जाएगा। विपक्षी दल ईडी और सीबीआई का सहयोग न करके किसे बचा रहे हैं, यह जवाब उन्हें देना चाहिए।
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