मणिपुर के मुद्दे को लेकर विपक्ष सदन की कार्यवाही को हंगामें की भेंट चढ़ा रहा है। मानसून सत्र विपक्ष के हंगामे के कारण बार-बार स्थगित करना पड़ रहा है। हालांकि सरकार द्वारा विपक्ष को विश्वास दिलाया गया है कि वह सदन में मणिपुर पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। गृहमंत्री अमित शाह, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मिलकर स्पष्ट कर दिया कि सरकार मणिपुर की घटना पर चर्चा के लिए तैयार है। हालांकि विपक्ष द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि सरकार जवाब देने से बच रही है। सरकार चुप है। सभी नेता अपने-अपने तरीके से सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं।
कांग्रेस की पूरी लॉबी इस पर अलग-अलग नेताओं के जरिए एक ही विषय को मुद्दा बनाकर अड़ी है कि मणिपुर में सदन पर चर्चा हो। गृहमंत्री अमित शाह जब चर्चा के लिए तैयार होते हैं तो विपक्ष कहता है कि जवाब उन्हें सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी से चाहिए। हालांकि वर्ष, 1993 और 1997 में मणिपुर में हुई हिंसा पर एक बार तो संसद में चर्चा ही नहीं हुई और एक बार गृह राज्य मंत्री ने बयान दिया था। फिर भी सदन में प्रधानमंत्री के साथ ही चर्चा की संभावना को देखा जाए तो विपक्ष इसके लिए तैयार नजर नहीं आता है।
दरअसल, राजनीतिक चर्चा करना और बहस करना दो अलग चीजें होती हैं और विपक्ष इसमें फर्क करने में विफल रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि स्वस्थ चर्चा और सदन की कार्यवाही को लेकर विपक्ष कभी गंभीर रहा ही नहीं है। बीते वर्षों में बजट सत्र, मानसून सत्र या ऐतिहासिक बदलावों में विपक्ष द्वारा चर्चा के स्थान पर विरोध औऱ वॉक आउट का सहारा ही लिया गया है। मणिपुर की तरह ही पिछली बार राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को अडानी के ऊपर जवाब देने के लिए आह्वान दिया था। राहुल गांधी द्वारा इसके लिए अपने समर्थकों को खुश करने के लिए भाषण भी दिया गया। हालांकि जब प्रधानमंत्री मोदी दूसरे ही दिन जवाब देने के लिए सदन में आए तो राहुल गांधी उपस्थिति ही नहीं हुए।
वैसे भी राहुल गांधी का काम सदन में अपने समर्थकों में जोश भरने तक सीमित रहता है। सदन की कार्यवाही और सांसद के रूप में अपनी जिम्मेदारी के प्रति तो वे कभी ईमानदार रहे ही नहीं। हम इस वीडियो में बता चुके हैं कि सदन में अपनी जिम्मेदारियों के प्रति राहुल कितने विश्वसनीय रहे हैं।
खैर, अब सदन में राहुल गांधी नहीं हैं पर उनके समर्थक जरूर है और उनके ही कदमों पर चलते हुए सदन की कार्यवाही में बाधा डाले हुए हैं। बहस, विरोध और वॉकआउट ऐसे हथियार हैं जिससे विपक्ष सरकार को घेरने का प्रयास करता है। हालांकि यह निज के बचाव की तकनीक अधिक प्रतीत होती है। तीन तलाक कानून की बात आई तो विपक्ष ने बहस न करके वॉक आउट किया। राज्यसभा में चुनाव सुधार विधेयक पारित हुआ था तो विपक्ष ने वॉकआउट किया था। कांग्रेस के द्वारा बनाए गए दो बड़े मुद्दे राफेल और अडानी इसपर भी हंगामा करके सरकार का जवाब सुनने से इंकार कर देना भी विपक्ष की राजनीतिक शैली ही समझी जाएगी। यह भी गौर करने वाली बात है कि राफेल के मुद्दे पर राहुल गांधी द्वारा उठाए गए तथ्यहीन दावों का जब अरूण जेटली ने जवाब दिया गया था तो क्या कांग्रेस ने उसे स्वीकार किया था?
समस्या भी यही है। विपक्ष के पास जो सवाल हैं उन्होंने उसके जवाब भी तय कर रखे हैं। सरकार के जवाब उन्हें स्वीकार नहीं है। वे मणिपुर पर जवाब नहीं ढूँढ़ रहे हैं यह उनके लिए राजनीतिक मुद्दा है। विपक्ष मणिपुर के प्रति जो संवेदनशीलता दिखा रहा है वो छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जाते-जाते खत्म हो जाती है। वे उसका राजनीतिकरण नहीं चाहती है।
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विपक्ष को जवाब देश के गृह मंत्री से भी मिल सकता है। समस्या यह है कि विपक्ष को जवाब नहीं चाहिए। जवाब मिलने पर उसे आईना दिखने का डर है। कांग्रेस मणिपुर पर चर्चा करने से बच रही है क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी अक्षमता उजागर हो जाएगी। कांग्रेस की सत्ता के दौरान मणिपुर महीनों तक व्यावहारिक रूप से बंद रहा था। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूती थीं। हिंसा औऱ अफस्फा के दंश से सामान्य जीवन की कामना करना मणिपुर वासियों के लिए विलासिता से कम नहीं था। कांग्रेस शासन ने इन मुद्दों पर आंखें मूंद लीं थी और अब उनमें अपनी विफलताओं का जवाब देने की हिम्मत नहीं है।
मणिपुर में अबतक 9 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। आज स्वयं को I.N.D.I.A. बताकर मणिपुर में एक बार फिर आईडिया ऑफ इंडिया की बात करने वाले राहुल गांधी यह जवाब क्यों नहीं देते कि यह आईडिया अब तक लागू क्यों नहीं किया गया था?
आईडिया ऑफ I.N.D.I.A. को प्रचारित करने वालों से यह प्रश्न सदन में नहीं पूछ लिया जाए इसलिए बहस से बचने का प्रयास जारी है।