“अगर भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया तो 1.5 करोड़ हिंदुओं की हड्डियां और राख मिलेगी।”
ये धमकी थी, सरदार पटेल के लिए, भारत की अखंडता के प्रयासों के विरुद्ध।
भारत आजाद हो चुका था। पाकिस्तान का निर्माण हुआ, दंगे हुए, रियासतों का भारत और पाकिस्तान में विलय हुआ। हैदराबाद का मसला अलग रहा। रार-तकरार, समझौता, राजनीतिक बैठकें, सरदार-नेहरू की नाराजगी, हिंदुओं को मारने की धमकी। इसमें सब कुछ था, जो एक रोमांचक पटकथा में होता है। विलेन-हीरो और हीरो का सहयोगी।
हैदराबाद पर उस समय देश का सबसे अमीर आदमी और अंतिम निजाम अली उस्मान खान बहादुर का शासन था जो अंग्रेजों का वफादार साथी था। जिसे केएम मुंशी ने गंदा, धर्मांध, कंजूस और तानाशाह कहकर चित्रण किया था और करे भी क्यों नहीं। निजाम अकूत संपत्ति का मालिक था लेकिन, निहायती कंजूस।
वर्ष 1931 में निजाम की कुल संपत्ति 5000 करोड़ रुपए आंकी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि जहाँ वो रहता था वहाँ के कमरों में हीरा-जवाहरात जमीन पर फैले रहते थे और वो घंटों अपनी संपत्ति को निहारता रहता था। यहाँ तक कि उसने अपनी सनक में ठान लिया था कि वो हैदराबाद से पाकिस्तान तक की सुरंग बनवाएगा।
आजादी के समय 1.6 करोड़ की आबादी वाले हैदराबाद का वार्षिक राजस्व 26 करोड़ रुपए था। आबादी का 85% हिस्सा हिंदू समुदाय का था जो बहुलता के बाद भी दमन का शिकार थे। निजाम ने लॉर्ड माउंटबेटन से कहा था कि वो भारत या पाकिस्तान दोनों का हिस्सा नहीं बनेगा।
हालाँकि, भारत के साथ हैदराबाद की ‘स्टैंड स्टिल’ समझौता हो चुका था, यानि यथास्थिति बनाए रखने का समझौता। इसी दौरान दोनों अलग-अलग ‘देशों’ में फैसला हुआ अपने-अपने प्रतिनिधि भेजने का। भारत की ओर से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने चुना केएम मुंशी यानि कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को, जो एक स्वतंत्रता सेनानी रहने के साथ ही उस समय के श्रेष्ठ बुद्धिजीवी एवं संविधान सभा के सदस्य थे।
सरदार वल्लभभाई अपने स्वतंत्र निर्णय और मजबूत व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। वे जब कोई योजना बनाते थे तो भले ही इसकी चर्चा सबके सामने करें पर उसका क्रियान्वयन कैसे करना है, यह स्वयं तय करते थे। शायद यही बात जवाहर लाल नेहरू को खटकती भी थी। केएम मुंशी का चुना जाना ऐसे ही निर्णयों में से एक था लेकिन सरदार पटेल तय कर चुके थे।
हालाँकि, केएम मुंशी के नाम पर मुहर लगाने से पहले पटेल ने महात्मा गाँधी से बात की थी और कहा था कि निजाम नहीं माना तो हम क्या करेंगे। इस पर महात्मा गाँधी ने कहा था, “फिर सब खत्म करने के अलावा विकल्प क्या होगा तुम्हारे पास”। पटेल इशारा समझ भी चुके थे और निर्णय भी ले चुके थे। महात्मा गाँधी ने ही केएम मुंशी को कहा था कि जो करने जा रहे हो वो तुम्हारा धर्म भी है और कर्तव्य भी।
केएम मुंशी के औपचारिक नियुक्ति के 5 दिन पहले सरदार पटेल ने उन्हें बुलाकर कहा, “हैदराबाद भारत का कैंसर है, क्या तुम वहाँ जाना पसंद करोगे?” केएम मुंशी ने इस पर लिखा है कि सरदार पटेल का ये निवेदन एक दोस्त के लिए आदेश था।
25 दिसंबर, 1947 को केएम मुंशी की नियुक्ति हुई और 5 जनवरी, 1945 को केएम मुंशी हैदराबाद पहुँचे। जहाँ पूरे देश ने इस निर्णय का स्वागत किया था, वहीं हैदराबाद में उन्हें नया नाम मिला था ‘शैतान’! कहा जा रहा था कि शैतान आ रहा है। मुंशी पहुँचे तो क्रूर निजाम ने उन्हें रुकने के लिए कोई जगह नहीं दी लेकिन ये बाधाएं उन्हें कहाँ रोकने वाली थीं?
केएम मुंशी को भले ही निजाम या हैदराबाद की जनता ने कम आँका हो वो बाहर कितना प्रभाव रखते थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उनको हैदराबाद के लिए नियुक्त किया गया तो उनके एक मित्र ने कहा था ‘निजाम इज फिनिश्ड’ ।
केएम मुंशी ने सेना की एक इमारत में स्वयं के रहने का इंतजाम कर लिया था। यहाँ रहते हुए उन्हें जो जानकारी मिली वो ये थी कि मामले में सबसे बड़ा विलेन निजाम नहीं बल्कि कासिम रिजवी था। कासिम रिजवी कौन था?…कट्टर मुसलमान, इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन संगठन का अध्यक्ष। वही संगठन जो आज AIMIM पार्टी के नाम से जाना जाता है, जिसके वर्तमान अध्यक्ष हैं कट्टर ‘धर्मनिरपेक्ष’ असदुद्दीन ओवैसी।
बहरहाल, केएम मुंशी की निजाम से मुलाकात हुई। उन्होंने सरदार पटेल को रिपोर्ट भेजी कि निजाम की योजना है कि अगर भारत सरकार की सेना हैदराबाद में प्रवेश करती है तो रजाकारों की मदद से वो लड़ाई लड़ेगा। साथ ही, उसे उम्मीद है कि अरब देशों की सेनाएं भारत आकर उसका बचाव करेंगी।
अब ये रजाकार क्या है? यहाँ यह समझ लेना जरूरी है। रियासतों के विलय के समय हैदराबाद में दो गुट बन गए थे। एक का मानना था कि पाकिस्तान में विलय संभव नहीं इसलिए हमें भारत का हिस्सा बन जाना चाहिए। दूसरा गुट रजाकार था, कट्टर इस्लामिक समूह, स्वतंत्र इस्लामी देश का समर्थक। कासिम रिज़वी इसी गुट का हिस्सा था।
कासिम ने ही रजाकारों के साथ मिलकर निजाम रियासत में उस्मानाबाद, लातूर आदि कई ठिकानों पर हिंदुओं की संपत्ति लूटी, हत्याएँ की और हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने जैसे काम किए। केएम मुंशी की रिपोर्ट पटेल के पास थी। शांति से उपाय का कोई रास्ता नहीं था। हैदराबाद जल रहा था। उसे शांत करने के लिए सरदार पटेल ने ऐतिहासिक फैसला लिया और फिर शुरू हुआ ऑपरेशन पोलो।
ऑपरेशन पोलो का असर भयानक था। रजाकार लड़ाके के एम मुंशी के आवास के आस-पास ही रहते थे। वे जहाँ भी जाते उनका पीछा किया जाता था। इस पर मुंशी ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर कहा, “मेरी हालत वैसी ही है जैसे अशोक वाटिका में माता सीता की थी।”
हालाँकि ऑपरेशन पोलो रुकने वाला नहीं था। जब निजाम और उसके सहयोगियों को इसकी जानकारी मिली तो कासिम रिजवी दिल्ली गया और सरदार पटेल से मुलाकात कर कहा, “अगर भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया तो 1.5 करोड़ हिंदुओं की हड्डियां और राख मिलेगी।”
सरदार पटेल ने दृढ़ शांति से जवाब दिया, आपको क्या लगता है, जब आप ये कर रहे होंगे तो हम क्या कर रहे होंगे? सरदार पटेल के जवाब में शांति थी लेकिन असर भयानक था।
रजाकारों ने हिंसा करनी शुरू कर दी थी। हिंदुओं को लूटा गया, रेलगाड़ियों पर आक्रमण किए गए। हैदराबाद ने तो संयुक्त राष्ट्र जाने की भी तैयारी कर ली थी, लेकिन भारत ने कहा था कि ये उसका अंदरूनी मामला है। हैदराबाद के पीएम ने अमेरिकी राष्ट्रपति को पत्र भी लिखा। ये खतरनाक था, क्योंकि देश के अंदर ही पाकिस्तान बन चला था।
दूसरी ओर, ऑपरेशन पोलो के 1-2 दिन पहले दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक होती है। जवाहर लाल नेहरू को ऑपरेशन पोलो की खबर मिलती है। बैठक में मौलाना आजाद और वीपी मेनन सहित कई महत्वपूर्ण नेता शामिल होते हैं। सरदार पटेल तो थे ही। जवाहर लाल नेहरू मामले को लेकर खुश नहीं थे। उन्होंने सरदार पटेल के फैसले पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि अब से इस मामले की हर बैठक में वो शामिल रहेंगे। मतलब कि रियासतों के विलय, जिसकी जिम्मेदारी पटेल को दी गई थी को अब वो देखेंगे, कश्मीर की तरह।
सरदार पटेल नेहरू की बात सुनकर बीच बैठक से उठकर बाहर निकल गए और उनके पीछे-पीछे ही वीपी मेनन भी निकल गए। अगले दिन वीपी मेनन ने नेहरू से कहा कि आपने जो किया वो ठीक नहीं है। अगर आपका ये ही मानना है तो मेरे होने का क्या मतलब है मैं इस्तीफा दे देता हूँ।
हालाँकि, दूसरी ओर सरदार का ध्यान इस ओर था ही नहीं कि नेहरू या कोई और इससे नाराज है उन्हें तो बस रियासतों के एकीकरण से मतलब था। उन्होंने भारतीय सेना को हैदराबाद भेजा, युद्ध हुआ, भारतीय सेना विजयी रही और रियासत का भारत में विलय भी हुआ।
13 सितंबर 1948 को मेजर जनरल जेएन चौधरी और लेफ्टिनेंट जनरल महाराजा राजेंद्र सिंहजी के नेतृत्व में ऑपरेशन पोलो शुरू हुआ और 17 सितंबर, 1948 को खत्म हो गया। देश में कहीं भी साम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई। हैदराबाद का भारत में विलय हो गया था। हैदराबाद ही क्यों देश के एक भी हिस्से में हिंसा का माहौल नहीं बना। सरदार पटेल की नीतियां इतनी प्रभावी थी कि उन्होंने शस्त्र नहीं कूटनीति से रियासतों का विलय किया और भारत की अखंडता बनाए रखी।
सरदार पटेल ने रियासतों के एकीकरण का कार्य जो उन्हें मिला था, बखूबी निभाया। 560 रियासतों को उन्होंने अपनी रणनीतियों से भारत में मिला लिया था। हालाँकि, नेहरू के हठ के कारण कश्मीर में ऐसा हो न सका। ये मात्र एक रियासत थी जिसकी जिम्मेदारी सरदार पटेल के पास ना होकर नेहरू के पास थी, परिणाम हमें पता है….