तालिबान की सख्त पाबंदियों के बीच अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। हाल ही में अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में आयोजित ‘जिरगा’ ने तालिबान को धमकी दी है कि अगर छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के लिए स्कूल जल्द से जल्द नहीं खोले गए तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
जिरगा का हस्तक्षेप अफगानिस्तान में निश्चित रूप से बहुत महत्व रखता है। जिरगा पश्तून आदिवासियों के बीच टकराव रोकथाम और समाधान ढूंढने की पद्धति है जो सदियों से अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों के पश्तून समाजों में जीवित है, अभी भी ग्रामीण समुदायों में इसका प्रचलन है।
पक्तिया जिरगा में की गई मांगें
काबुल पर अधिकार करने के बाद, तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान में शरिया कानूनों को सख्ती से लागू कर दिया था। छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाना तालिबान के निर्देशों में से एक था।
लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने के फैसले की अफगान लोगों ने तीखी आलोचना की थी। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने तालिबान से लड़कियों की शिक्षा के मुद्दे का समाधान ढूँढने के लिए भी कहा था।
महिलाओं की शिक्षा के बारे में उठती आवाजों के कारण, 29 जून, 2022 को तालिबान ने लोया-जिरगा का आह्वान किया था। जिरगा के दौरान, तालिबान ने 6वीं कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूल खोलने की मांग को स्वीकार कर लिया था। हालांकि, बिना कोई कारण बताए फिर से स्कूल बंद कर दिए गए।
इसलिए, हाल ही में अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में लड़कियों के स्कूल बंद होने के विरोध में आदिवासी सभा ने तालिबान को चेतावनी दी है कि स्कूलों को तुरंत खोला जाए नहीं तो वे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि, “अगर तालिबान ने इस बार अपना वादा तोड़ा, तो हम उसके खिलाफ विद्रोह करेंगे और इसकी सारी जिम्मेदारी तालिबान की होगी”।
जिरगा क्या है ?
जिरगा शब्द तुर्की के शब्द ‘जिरगा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है गोला। एक जिरगा में, सभी व्यक्ति एक गोल घेरा बनाकर बैठते हैं जो इस बात का प्रतीक है कि उनमें से कोई भी श्रेष्ठ या निम्न नहीं है। सम्बंधित जनजाति के बुजुर्ग भी इस जिरगा में बैठते हैं और विभिन्न पक्षों, जनजातियों आदि के बीच संघर्ष के मुद्दों को सुलझाने का अधिकार रखते हैं।
जिरगा पश्तून इतिहास जितना ही पुराना है और पश्तून संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पहले जनजातियों के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण सदस्य (बा असर अफराद) एक खुली जगह में बैठते थे जहाँ जनजाति के सभी लोग उन वरिष्ठों या सरदारों की बात सुनते थे और यहाँ पर किसी भी मुद्दे पर भविष्य की कार्य योजना तैयार की जाती थी। जिगर द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम होता था और जनजातीय समुदाय उन निर्णयों को मानने के लिए बाध्य होता था।
जिरगा प्रणाली की उत्पत्ति
ऐसा माना जाता है कि जिरगा प्रणाली की जड़ें भारतीय इतिहास के वैदिक युग में थीं। पश्चिमी इतिहासकार भारत में वैदिक युग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक मानते हैं। उस समय सभाओं और समितियों के माध्यम से निर्णय लिए जाते थे। इन सभाओं में, जनजाति के बुजुर्ग, राजा को महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय लेने की सलाह देते थे। इन सभाओं में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त थे।
ऐसा माना जाता है कि सभा और समिति के आयोजन की परंपरा अब पश्तूनों के बीच जिरगा के रूप में बदल गई है। यही परंपरा भारत में पंचायत और खाप के रूप में मौजूद रही है, जिसका विभिन्न जातियों और गाँवों में आज भी पूरा सम्मान किया जाता है।
लोया जिरगा
लोया जिरगा या बड़ी जिरगा का आयोजन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए किया जाता है। इसमें महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विभिन्न जातियों और जनजातियों के लोग बड़ी संख्या में मिलते हैं।
पहला लोया-जिरगा 1747 में अफगानिस्तान के राजा का चयन करने के लिए आयोजित किया गया था। बाद में, अहमद शाह अब्दाली को राजा के रूप में चुना गया, जिसने बाद में भारत पर आक्रमण किया और पानीपत की प्रसिद्ध लड़ाई (1761) में भाग लिया।
निष्कर्ष
तालिबान शासन के तहत महिलाओं का जीवन कठिन होता जा रहा है। तालिबान के सद्गुण प्रचार और अपराध रोकथाम मंत्रालय ने अफगानों की स्वतंत्रता में दखल देते हुए महिलाओं और लड़कियों पर विशेष रूप से कठोर प्रतिबंध लगाए हैं।
महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा किसी भी समाज के लिए महत्वपूर्ण होती है। शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास और प्रगति की कुंजी है। तालिबान शासन ने महिलाओं और लड़कियों को अपने घरों में कैदी की तरह बना दिया है। शासन ने महिलाओं की स्वतंत्रता, शिक्षा और रोजगार को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप आधी अफगान आबादी का दमन हो रहा है।