केंद्र की NDA सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) पर एक कदम और आगे बढ़ाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इसका अर्थ ये है कि अब सरकार समकालिक चुनावों को लेकर कानूनी मसौदा तैयार करने और आवश्यक संविधान संशोधन करने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
ऐसे में आइए विस्तार से समझते हैं कि ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है? देश के लिए यह क्यों आवश्यक है? इससे क्या लाभ होंगे? इसके लिए बनी समिति ने क्या सिफारिशें की हैं?
One Nationa, One Election का इतिहास
आम तौर पर ‘एक देश, एक चुनाव’ जिसे कहा जाता है उसका अर्थ है समकालिक चुनाव, अर्थात लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराना।
ऐसा नहीं है कि पहली बार समकालिक चुनाव कराने की बात की जा रही है। इससे पहले भी ऐसा हो चुका है। 1957 में बिहार, बॉम्बे, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर-प्रदेश और पश्चिम बंगाल की विधानसभाओं को तय अवधि से पूर्व भंग किया गया और फिर एक साथ चुनाव कराए गए।
समकालिक चुनाव की व्यवस्था कुछ हद तक 1967 के चौथे आम चुनाव तक लागू रही लेकिन फिर समकालिक चुनाव का चक्र बाधित होने के बाद देश में अलग-अलग चुनाव होने लगे।
2014 में जब केंद्र में NDA की सरकार बनी, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब दोबारा से समकालिक चुनाव पर चर्चा शुरू हुई। पीएम मोदी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा कि विस्तार से चर्चा करके इस पर देश को विचार करना चाहिए।
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लंबे समय तक चर्चा होने के बाद 2 सितंबर, 2023 को केंद्र सरकार ने One Nation, One Election को लेकर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
उच्च स्तरीय समिति के सदस्य
1. अमित शाह, गृह और सहकारिता मंत्री
2. गुलाम नबी आजाद, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, राज्य सभा
3. एन. के. सिंह, पूर्व अध्यक्ष, 15वां वित्त आयोग
4. सुभाष सी. कश्यप, पूर्व महासचिव, लोकसभा
5. हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता
6. संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त
7. अर्जुन राम मेघवाल, विधि और न्याय राज्य मंत्री, (स्वतंत्र प्रभार)
8. डॉ. नितेन चंद्र, सचिव, भारत सरकार
उच्च स्तरीय समिति ने 191 दिनों तक काम किया। इस दौरान 65 बैठकें हुईं और तमाम हितधारकों के साथ परामर्श किया गया। इसमें नागरिक, राजनीतिक दल और विशेषज्ञ समेत तमाम हित धारक शामिल रहे। गहन चर्चा के बाद समिति ने अपनी सिफारिशों में विस्तार से बताया है कि समकालिक चुनाव की आश्यकता क्यों हैं और इससे क्या लाभ होंगे? आइए समझते हैं-
एक देश, एक चुनाव की आवश्यकता क्या है?
1. बार-बार चुनाव होने से सरकार की तिजौरी पर अतिरिक्त व्यय का बोझ पड़ता है। इस व्यय में अगर राजनीतिक दलों के खर्चे को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा और बड़ा हो जाता है।
2. बार-बार चुनाव से अनिश्चितता और अस्थिरता बढ़ती है। आपूर्ति श्रृंखला, व्यवसायिक निवेश, आर्थिक विकास, सरकार के निर्णय के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव को प्रभावित करते हैं।
3. बार-बार चुनाव होने से सरकारी तंत्र में आने वाला व्यवधान नागरिकों के लिए कठिनाई पैदा करता है।
4. चुनाव के लिए सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों की बार-बार तैनाती से उनके मूल कर्तव्य निर्वहन पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
5. बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होने से नीतिगत फैसलों में व्यवधान आता है और विकास कार्यक्रमों की गति धीमी पड़ जाती है।
6. बार-बार चुनाव मतदाताओं में भी मतदान के प्रति उदासीनता पैदा करता है और उनकी अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करने में चुनौती आती है।
अब एक सवाल और उठता है कि One Nation, One Election से लाभ क्या होगा? उच्च स्तरीय समिति ने इस पर विस्तृत तौर पर प्रकाश डाला है।
एक देश, एक चुनाव के लाभ
1. साथ-साथ चुनाव कराने से ऊंची आर्थिक वृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित होगी क्योंकि इससे आर्थिक क्षेत्र और निवेश के फैसले प्रतिकूल नीतिगत बदलाव की आशंका के बिना लिए जा सकेंगे।
2. सरकार के सभी तीन स्तरों के लिए एक साथ चुनाव कराने से प्रवासी श्रमिकों के वोट डालने के लिए काम छोड़कर जाने के कारण आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन चक्र में आने वाली बाधा दूर होगी।
3. समकालिक चुनाव से शासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा और नीतिगत फैसलों में आने वाला व्यवधान दूर होगा।
4. समकालिक चुनाव सरकारी खजाने पर पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ को कम करेगा क्योंकि इससे बार-बार चुनाव पर होने वाले खर्च से बचा जा सकेगा।
5. चुनावी कैलेंडर में तालमेल का अर्थ होगा सुशासन के लिए अधिक समय उपलब्ध होना और नागरिकों के लिए निर्बाध सार्वजनिक सेवाएं सुनिश्चित करना।
6. समकालिक चुनावों से चुनाव संबंधी अपराधों और विवादों की संख्या में कमी आएगी और न्यायालयों पर बोझ कम होगा।
7. समकालिक चुनाव से बार-बार के व्यवस्थागत प्रयासों में कमी आएगी और सरकारी कर्मचारियों राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों का समय और ऊर्जा बचेगी।
8. प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार चुनाव होने से सामाजिक तालमेल बढ़ेगा और चुनाव के दौरान अक्सर होने वाले अनावश्यक संघर्ष में कमी आएगी।
अब हम थोड़ा-सा आगे बढ़ते हैं और समझते हैं कि One Nation, One Election पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने क्या सिफारिशें दी हैं?
उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें
1. समिति ने समकालिक चुनाव की अवधारणा दो चरणों में संभव बनाने के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की है।
2. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए समकालिक चुनाव कराए जाएंगे। इस उद्देश्य से संविधान संशोधन के लिए राज्यों द्वारा किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
3. दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायत के चुनाव भी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ कराए जाएंगे। इस प्रकार कि नगर पालिका और पंचायत चुनाव लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव कराने के सौ दिन के भीतर हो। इसके लिए कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों का अनुमोदन आवश्यक होगा।
4. शासन के सभी तीन स्तरों के चुनाव में उपयोग के उद्देश्य से एकल मतदाता सूची और मतदाता फ़ोटो पहचान पत्र की तैयारी के लिए संविधान में संशोधनों की सिफारिश की जाती है। जिससे निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग के साथ परामर्श कर एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार कर सकें। इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
5. त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी अन्य घटना की स्थिति में “शेष कार्यकाल” के लिए लोकसभा या राज्य विधानसभा के नए सदन के गठन के लिए चुनाव कराए जाने चाहिए।
6. समिति सिफारिश करती है कि चुनाव संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव आयोग से परामर्श कर योजना और अग्रिम अनुमान तैयार करेगा तथा मतदान कर्मियों, सुरक्षाबलों, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों/वीवीपीएटी इत्यादि की तैनाती के लिए ज़रूरी कदम उठाएगा ताकि शासन के सभी तीन स्तरों के लिए समकालिक चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से संपन्न कराए जा सकें।
One Nation, One Election समय की आवश्यकता
उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें स्वीकृत होने के बाद एक बात कही जा सकती है कि One Nation, One Election देश के लिए समय की अनिवार्यता हैं। याद कीजिए, 24 जुलाई 1991, जब संसद में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने खुली अर्थव्यवस्था के समर्थन में बजट प्रस्तुत किया था। तब उन्होंने फ्रांसीसी विचारक विक्टर ह्यूगो के एक कथन को पढ़ा था।
उन्होंने कहा था कि “पृथ्वी की कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है।” आज के भारत को देखते हुए निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि समकालिक चुनाव का समय आ गया है।
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आज वो समय नहीं है जब कागजों में योजनाएं, परियोजनाएं बनती-बिगड़ती रहती थी, जमीन पर कुछ नहीं दिखता था, अगर दिखता भी था तो एक-दो दशक के बाद।
आज सरकार के कामकाज करने अंदाज बदल गया है। पिछले दस वर्षों में हमने देखा है कि सरकार की नीति स्पष्ट है कि जो काम इस सरकार के कार्यकाल में शुरू होगा, वो इसी सरकार के कार्यकाल में ख़त्म होगा। जिस प्रोजेक्ट का शिलान्यास पीएम मोदी करते हैं, उसका उद्घाटन भी वही करते हैं।
इससे स्पष्ट है कि सरकार का वर्क कल्चर बदल गया है और ऐसे बदले हुए वर्क कल्चर में अगर हर 6 महीने में चुनाव होते रहेंगे तो निश्चित तौर पर इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। ऐसे में देश की जनता भी यही चाहती है कि एक बार में सभी चुनाव संपन्न हो जाएं।