जम्मू कश्मीर के नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शायद फिर से राज्य की राजनीति को पाकिस्तान पर ही केंद्रित रखना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम का इस्तेमाल किया है।
उमर अब्दुल्ला का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद “हम अपना रास्ता भूल गए”। अगर वाजपेयी द्वारा बताए गए रास्ते पर चला जाता तो जम्मू-कश्मीर की स्थिति आज ऐसी नहीं होती।
उन्होंने लाहौर जाने और मीनार-ए-पाकिस्तान का दौरा करने के लिए वाजपेयी की प्रशंसा की, जो कि उनके शब्दों में, ‘किसी भी भारतीय नेता के लिए करना मुश्किल था’। अब्दुल्ला ने कहा, “सीमा पर, उन्होंने (वाजपेयी) कहा कि हम दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। बातचीत ही समाधान है और उन्होंने असफलताओं के बावजूद दोस्ती का हाथ बढ़ाया। मैंने एक मंत्री के रूप में उनके साथ काम किया है… उन्होंने हमेशा जम्मू-कश्मीर में स्थिति को सुधारने की कोशिश की… जब भी जम्मू-कश्मीर में स्थिति खराब हुई, उन्होंने कहा कि बातचीत ही आगे बढ़ने का रास्ता है।”
अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर विधानसभा के दूसरे दिन श्रद्धांजलि सभा के दौरान बोल रहे थे। सदस्यों ने हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी समेत पूर्व विधानसभा सदस्यों को श्रद्धांजलि दी, जिनका पिछले छह सालों में निधन हुआ है।
अब्दुल्ला का कहना है कि वाजपेयी ने लोगों को करीब लाने के लिए सीमा पार सड़कें खोली थीं। उन्होंने कहा कि सड़कें अब बंद हो गई हैं और हमें अलग रखने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि पुल बनाने और रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए वाजपेयी की प्रतिबद्धता, “हमें क्षेत्र में शांति और समझ की दिशा में काम करना जारी रखने के लिए प्रेरित करती है”।
ऐसा लग रहा है कि उमर अब्दुल्ला पाकिस्तान के बंद रास्तों को खोल कर फिर से जम्मू-कश्मीर की राजनीति को पुराने ढर्रे पर ले जाना चाहते हैं। उमर अब्दुल्ला जिन संबंधों को बढ़ाकर बातचीत करने का रास्ता बना रहे हैं वो यह जवाब नहीं दे पाएंगे कि पाकिस्तान के साथ संपर्क बढ़ने पर घाटी में उग्रवादी घटनाओं में बढ़ोतरी किस प्रकार आ जाती है?
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