वर्तमान में देश भर में विपक्ष के चुनावी वादों के केंद्र में पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) है। इस समय इसका लागू किया जाना भले ही असंभव सा प्रतीत होता हो, या अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव दुष्कर हो, पर गैर-एन डी ए दल यह यह दावा कर रहे हैं कि वे OPS को लागू कर के ही मानेंगे।
रिसर्च संस्था PRS की हाल में आई एक रिपोर्ट ने इस मांग के लागू होने के दुष्परिणाम और अर्थव्यवस्था पर होने वाले दुष्प्रभाव को रेखांकित किया है।
‘स्टेट ऑफ द स्टेट्स 2022-23’ शीर्षक से प्रकाशित यह रिपोर्ट बताती है कि वोट के लिए किए जाने वाले लोक लुभावन वादों और अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण देश के कई राज्यों में अर्थव्यवस्था का हाल बुरा है। इसके बावजूद कई राजनीतिक दल और उनकी सरकारें वोट के लिए रेवड़ी बांटने के वादे और आर्थिक रूप से गलत योजनाओं को लागू करने पर आमादा हैं।
यह भी देखें: Gujarat Election में BJP की रिकॉर्डतोड़ जीत, HP में OPS ने नहीं बदलने दिया रिवाज
रिपोर्ट में कई राज्यों, जैसे राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब आदि में कॉन्ग्रेस एवं आम आदमी पार्टी द्वारा पुरानी पेंशन को लागू किए जाने पर राज्य की अर्थव्यवस्था का हाल क्या होगा, यह बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसी योजनाएँ किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था की कब्र खोदने से कम नहीं है।
पुरानी पेंशन स्कीम के बारे में क्या कहती है PRS रिपोर्ट?
OPS अर्थात पुरानी पेंशन स्कीम आज राजनीतिक दलों का मुख्य हथियार बन गई है। हाल में ही हिमाचल प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार के जीतने के पीछे OPS के वादे की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। इसके अतिरिक्त दल ने राजस्थान, छतीसगढ़, पंजाब जैसे राज्यों में भविष्य में होने वाले चुनावों OPS का वादा करने और उसे लागू करने की ठान ली है।
रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1980-81 में सरकारों (केंद्र और राज्य) को राजस्व प्राप्ति का मात्र 2% हिस्सा ही पेंशन पर खर्च करना पड़ता था । वर्ष 1999-2000 तक आते-आते यह खर्चा 11% तक पहुँच गया। पेंशन चूँकि सरकार द्वारा कमिटेड (आवश्यक) खर्च के अतर्गत आती है, ऐसे में इसके बढ़ते खर्च का रोका जाना जरूरी था।
इसके लिए सरकार ने नई पेंशन स्कीम(NPS) को लागू किया, जिसके अंतर्गत कर्मचारी अपनी कमाई से ही एक हिस्सा अपनी भविष्य की पेंशन के लिए देते हैं। रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकारों का पुरानी पेंशन स्कीम को वापस लागू करना भविष्य में आर्थिक त्रासदी के रूप में परिलक्षित होगा। इसकी पुष्टि CAG की एक रिपोर्ट में भी हुआ है जहाँ बताया गया है कि वर्तमान में पेंशन का खर्चा तनख्वाहों के खर्चे से ऊपर निकल गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकारों द्वारा इस स्कीम को लागू किए जाने का प्रभाव वर्तमान में तो नहीं दिखेगा लेकिन आने वाले 10-12 सालों बाद, जब वर्ष 2004 के बाद नौकरी में नियुक्तियाँ पाने वाले कर्मचारी रिटायर होंगे, तब इसका आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देगा। इसका साफ़ असर वर्ष 2034 के बाद देखा जा सकेगा और राज्यों के समक्ष उस समय बड़े स्तर पर आर्थिक संकट खड़ा होगा।
रिपोर्ट बताती है कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करना, आने वाली पीढ़ी के ऊपर एक बोझ डालने जैसा होगा जिससे कि आज की पीढ़ी फायदा ले सके।
जिन राज्यों में किया पेंशन का वादा, उनकी अर्थव्यवस्था के बुरे हाल
रिपोर्ट में विस्तृत रूप से सभी राज्य अर्थव्यवस्थाओं का परीक्षण किया है। ऐसे में वे राज्य जहाँ कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी OPS लागू करने का वादा कर चुकी हैं, उनकी वर्तमान अर्थव्यवस्था का हाल कुछ अच्छा नहीं हैं।
उदाहरण के लिए पंजाब की कुल देनदारी उसकी राज्य अर्थव्यवस्था(GSDP) का 53% है। जबकि यह किसी भी दशा में 20% से अधिक नहीं होना चाहिए। इस तरह पंजाब की देनदारी अनुशंसित सीमा से ढाई गुना अधिक है। वहीं दूसरी ओर इसी तरह OPS का वादा करने वाले राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड की भी स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं है।
राजस्थान की देनदारियां कुल राज्य अर्थव्यवस्था का 40% हैं, जो कि दोगुना हैं। झारखंड के मामले में यह स्थिति 33% पर है। छत्तीसगढ़ में भी देनदारी राज्य अर्थव्यवस्था का 30% है।
वहीं अगर अन्य आर्थिक सूचकांको की बात करें तो भी ये राज्य उसमें भी पीछे हैं। OPS का वादा करने वाले राज्य बड़े स्तर पर राजकोषीय घाटे में भी हैं। राजकोषीय घाटा वह आँकड़ा है जिसमें कोई राज्य अपनी प्राप्तियों से अधिक खर्चा करता है।
राजस्थान का राजकोषीय घाटा 4.4% है। पंजाब में यह आँकड़ा 3.8% और हिमाचल में 5% है। जबकि 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इसे 3.5% के अंदर रहना चाहिए और आगे आने वाले समय में इसे घटाकर 3% लाने की आवश्यकता है।
इतने पेंच, फिर भी वादा करने से पीछे नहीं हट रहे हैं दल
पुरानी पेंशन स्कीम से भविष्य में होने वाले आर्थिक नुक्सान के साथ-साथ इसे लागू करना अपने आप में एक समस्या है। वर्ष 2004 के बाद से कर्मचारियों के द्वारा पेंशन के लिए जमा किया जाने वाला पैसा बाजार में लगाया जाता है। जो राज्य पुरानी पेंशन स्कीम को लागू कर रहे हैं वे अब केंद्र से अपने कर्मचारियों द्वारा जमा किया गया पैसा वापस मांग रहे हैं।
हालांकि, केंद्र ने नियमों का हवाला देते हुए कोई भी पैसा देने से मना कर दिया है। शीतकालीन सत्र के 12 दिसम्बर को केंद्र ने लोक सभा में दिए गए एक जवाब में बताया कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके अंतर्गत पैसा लौटाया जाए।
केंद्र ने अपने जवाब में कहा, “राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के अंतर्गत निकासी और आहरण विनियम, 2015 तथा पेंशन निधि विनियामक और विकास अधिकरण अधिनियम, 2013 में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके अंतर्गत नई पेंशन स्कीम का पैसा राज्यों को लौटाया जाए।”
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसा नहीं है कि इस तरह का वादा करने वाली पार्टियों को यह बात पता नहीं है कि OPS का वादा जमीन पर वर्तमान परिस्थितियों में उतारा नहीं जा सकता।
OPS को लागू करते समय कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाला यूपीए गठबंधन ही केंद्र की सत्ता में काबिज था और देश के अधिकाँश राज्यों में भी उसी की सरकार थी। ऐसे में कॉंग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा पुरानी पेन्शन स्कीम को लागू करने का वादा आम जनमानस की समझ से परे है।