कल शाम को ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। दुर्घटना के परिणामस्वरूप अभी तक 250 से अधिक यात्रियों की मृत्यु और 900 से अधिक के घायल होने की खबर है। दुर्घटना के कारणों की जानकारी तो जाँच के बाद ही सामने आयेगी पहली नजर में जो बात सामने आई है उसके अनुसार दुर्घटना में यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर है।
बीते कुछ वर्षों में यह सबसे बड़ा रेल हादसा है। राहत और बचाव कार्यक्रम कल शाम से ही चालू हो गया था। NDRF, सेना समेत पुलिस और स्थानीय प्रशासन युद्धस्तर पर राहत और बचाव कार्यों में पूरी तरह से लगे हुए हैं। घायलों का इलाज कराने और सुरक्षित बचने वालों को उनके गंतव्य तक भेजने की व्यवस्था की जा रही है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव घटनास्थल पर पहुंचे।
इस पूरी घटना के बीच सबसे अधिक सवाल रेलवे के ‘कवच’ सुरक्षा सिस्टम पर उठाए गए हैं जिसके बारे में हाल ही में यह जानकारी सामने आई थी कि इसके लगने से रेल दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा।
यूथ कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी समेत ट्विटर पर उपस्थित तमाम अकाउंट्स रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के पुराने वीडियो डाल कर यह प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या यह सिस्टम काम नहीं कर पाया या फिर यह रेलवे की असफलता है? दरअसल, इस दुखद घटना की सच्चाई कुछ और है और इस पूरे हादसे में कवच सिस्टम का कोई रोल नहीं है।
यह भी पढ़ें: ओडिशा ट्रेन दुर्घटना: अब तक 288 की मृत्यु, घटना की समीक्षा के लिए बालासोर का दौरा करेंगे प्रधानमंत्री मोदी
कवच, एक ही ट्रैक पर चल रही दो रेलगाड़ियों को आपस में भिड़ने से बचाता है। यदि दो रेलगाड़ियाँ एक दूसरे के अधिक नजदीक आ जाती हैं तो कवच वार्निंग सिग्नल देता है और ट्रेन की रफ़्तार कम कर देता है। इसके अतिरिक्त ट्रेन पर ब्रेक लगने के कारण दोनों रेलगाड़ियाँ आपस में नहीं टकराती।
बालासोर में हुई दुर्घटना रेलगाड़ियों के आमने सामने भिड़ने की नहीं और न ही दोनों के एक लाइन पर चलने के कारण हुई है। दरअसल ये दुर्घटना कोरोमंडल एक्सप्रेस के पटरी से उतर कर समानांतर पटरी पर खड़ी मालगाड़ी के डिब्बों से टकराने और दूसरे ट्रैक पर यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस से भी टकराने का परिणाम है।
अधिकाँश रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ पर हादसा हुआ वहां 4 पटरियां हैं। इनमें से दो मुख्य पटरियां और 2 लूप ट्रैक हैं। यहीं पर शाम 6:55 मिनट पर कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई और इसके कुछ डिब्बे साथ की पटरी पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकराए।
इसी दौरान यशवंतपुर से हावड़ा जाने वाली यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस भी आ रही थी। कोरोमंडल के बेपटरी हुए डिब्बों ने इस ट्रेन के भी कुछ डिब्बों को चपेट में ले लिया, जिससे इतना बड़ा हादसा हुआ।
घटना की कड़ियों को शुरूआती तौर पर देखने से पता चलता है कि मामला ट्रेनों के आमने सामने से टकराने का नहीं बल्कि समानांतर ट्रैक्स पर टकराने और डिरेल होने का है जबकि जानकारियों के अनुसार कवच का काम एक ही पटरी पर चल रही दो रेलगाड़ियों की भिड़ंत रोकना है। कवच रेलगाड़ियों के इंजन पर लगा रहता है और ये दुर्घटना पटरी से उतरे रेल के डिब्बों के कारण हुई है।
यह भी पढ़ें: नरोदा गाम मामला: कारसेवकों की ट्रेन जलाने के बाद भड़के दंगों में कोर्ट ने सुनाया निर्णय, सभी आरोपित बरी
इसके अतिरिक्त एक जानकारी यह आ रही है कि जिस रूट पर यह दुर्घटना हुई उस पर अभी तक कवच सिस्टम नहीं लगा हुआ है। यह पूरी दुर्घटना दक्षिण-पूर्व रेलवे डिविजन के अंतर्गत हुई है। रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा के अनुसार, अभी दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुम्बई रूट पर लगाया जा रहा है। जहाँ हादसा हुआ है वह हावड़ा-चेन्नई रूट का हिस्सा है। ऐसे में जब इस रूट पर अभी तक कवच सिस्टम लगा ही नहीं है तो उस पर सवाल उठाने का क्या फायदा?
कई अकाउंट्स द्वारा यह भी प्रश्न उठाए गए हैं कि जिस कवच सिस्टम को गेमचेंजर बताया गया था उसे अभी तक पूरे देश में क्यों नहीं लगाया जा सका है? इसका उत्तर यह है कि कवच सिस्टम पूरी तरह से भारत द्वारा ही निर्मित एक एंटी कोलिजन सिस्टम है जिसका लम्बे समय से डेवलपमेंट चल रहा था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, कवच पर काम 2012 में चालू हुआ था और इसका सफल प्रदर्शन मार्च 2022 में खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा किया गया था। कवच, एक नई तकनीक है और भारत के सभी रूट पर नहीं लगाई जा सकी है।
कवच को अभी दक्षिण-मध्य रेलवे के 1,400 किलोमीटर से अधिक के रूट पर सफलता पूर्वक लगाया गया है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, स रूट के 65 लोकोमोटिव और 134 स्टेशन पर इसको सफलतापूर्वक लगाया जा चुका है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कवच तकनीक को 2,000 किलोमीटर के ट्रैक पर लगाने की बात की गई थी और बाद के वर्षों में इसे बढ़ाया जाना था।
कवच तकनीक को एक किलोमीटर के रेलवे ट्रैक पर लगाने की लागत 40-50 लाख रुपए है, और यह तब है जबकि इसी तरह के यूरोपियन सिस्टम की प्रतिकिलोमीटर लागत 2 करोड़ रुपए से भी अधिक है।
यह बात ध्यान देने वाली है कि देश का कुल रेलवे नेटवर्क लगभग 68,000 किलोमीटर से अधिक है, ऐसे में पूरे नेटवर्क पर कवच सिस्टम लगाना लगभग 34,000 करोड़ रुपए का काम है जिसे एक ही दिन एक साल में पूरा नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, रेलवे ने जिस प्रकार सभी रूटों के बिजलीकरण को रफ़्तार दी है उसी तरह से अब कवच को भी तेजी से लगाए जाने का प्रयास होगा।
ऐसे में बालासोर वाला हादसा कवच के होते हुए रोका जा सकता था यह कहना अभी मुश्किल है और रेल मंत्री के पूर्व के बयान पर उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं है।
यह भी पढ़ें: भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन बम ब्लास्ट: 7 दोषियों को फांसी, 1 को आजीवन कारावास