जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ में वर्ष 2019 के बाद से कमी आई है। अनुच्छेद 370 के कई प्रावधानों के हटने और 35A के निरस्त होने के बाद से विदेशी घुसपैठ में प्रति वर्ष भारी गिरावट देखी गई है। सुरक्षा व्यवस्था में सुधार के चलते वर्ष 2023 में जम्मू-कश्मीर से घुसपैठ की एक भी घटना सामने नहीं आई है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा और लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार से घुसपैठ की 141 घटनाएं सामने आई थीं। वर्ष 2020 में यह आधे से भी कम होकर 51 रह गईं। अगले तीन वर्षों में इनमें और कमी आई और वर्ष 2021 में 34, 2022 में 14 और चालू वर्ष 2023 के शुरूआती 6 महीनों (30 जून 2023) तक घुसपैठ की एक भी घटना सामने नहीं आई है। यह बदलाव 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35A में लाए गए परिवर्तनों के बाद दिखा है।
सीमा पर सेना और अर्धसैनिक बलों की सख्ती और निगरानी के लिए इन्फ्रारेड और थर्मल इमेजिंग जैसी तकनीकों के इस्तेमाल से घुसपैठ की घटनाओं में बड़ी कमी देखी गई है। इस तकनीक से सीमा पार करने से पहले ही आतंकी पहचान में आ जाते हैं और मार दिए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से आने वाले घुसपैठियों की वजह से लगातार आतंकी हमले होते रहे हैं।
पाकिस्तान की सेना भी इनको सीमा पार करवाने में सहायता करती है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 370 में बदलावों के बाद आतंक की घटनाओं में भी कमी आई है। फरवरी 2023 में राज्यसभा को दिए गए एक उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि वर्ष 2018 के बाद से लगातार नागरिकों, सैनिकों की मौतों में कमी आई है।
इस दौरान आतंकी घटनाएं भी लगभग आधी हो गई हैं। दूसरी ओर आतंकियों की गिरफ्तारी में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2023 में भी यह कमी लगातार जारी है। एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2023 में जम्मू-कश्मीर के अंदर मारे जाने वाले आतंकियों की भी संख्या में कमी आई है। वर्ष 2022 में जहाँ जनवरी से जून माह के दौरान 126 आतंकी मारे गए थे, वहीं 2023 में यह संख्या मात्र 27 है। इन 27 में भी 19 आतंकी विदेशी (अधिकाँश पाकिस्तानी) हैं।
सेना द्वारा स्थानीय आतंकियों के परिवार वालों के साथ बातचीत करना, उनसे अपील कर उन्हें वापस लाना और कश्मीर के अंदर रोजगार के साधन मुहैया कराने समेत शिक्षा और स्वास्थ्य से जोड़ने की कोशिशें भी लगातार आतंकी घटनाओं में कमी का कारण बन रही हैं।
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