डोनाल्ड ट्रंप ने फ्लोरिडा में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए अपनी जीत की घोषणा कर दी है। इसके बाद रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में एलन मस्क का भी ज़िक्र किया। सोशल मीडिया साइट एक्स के मालिक एलोन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी प्रचार अभियान में बड़ी भूमिका निभाई है। यही वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भी एलोन मस्क को रिपब्लिकन पार्टी का ‘नया सितारा’ बता दिया। इसी के साथ डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति बनना तय हो गया है।
डोनाल्ड ट्रम्प जिसे हराकर दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं वो है अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला उम्मीदवार कमला हैरिस। यानी अमेरिका ने एक बार फिर एक महिला से राष्ट्रपति बनने का अधिकार छीन लिया है। यानी डोनाल्ड ट्रंप की जीत से एक बात स्पष्ट हो गई है कि अमेरिका जैसा कथित विकसित और प्रगतिशील देश कभी भी एक महिला को राष्ट्रपति बनते हुए देख नहीं सकता। में अमेरिका में पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ था। तब से और आज तक 235 साल का अंतराल हो चुका है लेकिन अमेरिका में एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई है।
US Elections and Promise of Patriarchy | Trump defeats Kamala Harris
ये वही अमेरिका है जो दुनिया भर का बोझ अपने सर पर लिए घूमने का दावा करता है, हर किस्म की रैंकिंग और और संस्था इन्होने बनाई हैं ताकि दुनिया को सर्टिफिकेट बाँट सकें। इसमें डायवर्सिटी के सर्टिफिकेट हैं, पितृसत्ता यानी पैट्रिआर्कि के सर्टिफिकेट हैं और भी जाने क्या क्या।
अब अगर अमेरिका की तुलना में भारत को देखें तो भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में सुनिश्चित किया कि सभी नागरिकों को वोट देने अधिकार हो। अमेरिका में श्वेत महिलाओं को वोट का अधिकार 1920 और ब्लैक महिलाओं को 1965 में मिला। अमेरिका में महिलाओं और अश्वेतों को लम्बे संघर्ष के बाद वोटिंग का अधिकार मिला। अमेरिका के आज़ादी के 235 सालों के बाद आज तक एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं चुनी गई है। खुद डोनाल्ड ट्रम्प की वजह से दो बार अमेरिका को उसकी पहली महिला राष्ट्रपति नहीं मिल पाई है। पहले हिलेरी क्लिंटन को अब कमाला हैरिस को उन्होंने हरा दिया।
आप अगर इन लोगों के चुनाव कैम्पेन और जीत के बाद की भाषा भी देखेंगे तो उसमें सिर्फ बॉयज़ ही हैं। उदाहरण देखिये – The boys heading to the polls to vote Trump
खुद एलोन मस्क लिख रहे थे कि Men are voting in record numbers. Boys have come for voting.
Trump won the election . Boys are going to eat good again . यानी पूरी तरह से पितृसत्ता का ही अमेरिका पर कब्ज़ा रहा है और दबदबा रहा है। और दोष लगाए जाते हैं भारत पर कि हमारे यहाँ पितृसत्ता है?
पश्चिमी देशों में तो महिलाओं को वोट देने तक का अधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीस और रोम गणराज्य में भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं रहा, एथेंस यानी ग्रीस को तो कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहले अगर कहीं लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था थी तो वो ग्रीस में थी, लेकिन वहां महिलाओं को मतदान करने का अधिकार पहली बार वर्ष 1952 में मिला।
भारत तो 1947 तक ग़ुलाम था लेकिन पहली सरकार जो बनी उसमें भी महिलाओं का योगदान था, उन्हें अहम पदों पर भी रखा गया। जबकि विकसित देशों में 19वीं सदी में पहुँचकर कई यूरोपीय देशों ने पहली बार इस बारे में सोचा कि महिलाओं को भी मतदान का अधिकार होना चाहिए।
यूरोप के कई देशों में वर्ल्ड वॉर 2 के बाद महिलाओं के लिए मतदान के अधिकार के बारे में सोचा गया ।महिलाओं की ये दबी कुचली आवाज़ पश्चिमी देशों में थी। ये आवाज़ फ़ेमीनिज्म की शक्ल लेने लगी और पितृसत्ता के विरोध में पश्चिम की कुंठित, शोषित महिलाओं के अंदर की आवाज़ विरोध का स्वर लेने लगी। और फिर इसने जगह बनाई भारत जैसे देशों में।
यानी नैरेटिव हमेशा अमेरिका का रहा जबकि दोषी भारत जैसे देशों को बनाया जाता था जिनकी मौजूदगी आज अमेरिका से लेकर ब्रिटेन सभी देशों के चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यानी पोएटिक जस्टिस। भारत के वही फेमिनिस्ट और अल्ट्रा लेफ्टिस्ट आज अमेरिका के राष्ट्रपति को कोस रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि वहां पर पितृसत्ता है। देखते हैं कि ट्रम्प के दोबारा सत्ता में आने के बाद से अमेरिका में क्या बदलने वाला है।