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Home » पैरालिंपियन नीर बहादुर, जिन्हें सम्मानित करने राष्ट्रपति भी अपनी सीट से नीचे उतर आईं
खेल एवं मनोरंजन

पैरालिंपियन नीर बहादुर, जिन्हें सम्मानित करने राष्ट्रपति भी अपनी सीट से नीचे उतर आईं

हिमांशी बिष्टBy हिमांशी बिष्टDecember 14, 2022No Comments5 Mins Read
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नीर बहादुर गुरुंग : भारतीय मोटिवेशनल गुरु
नीर बहादुर गुरुंग : भारतीय मोटिवेशनल गुरु
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महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा था; अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो, तो पहले सूरज की तरह ही जलना सीखो। इसी में चमक है और इसी में सफलता। 

डॉक्टर कलाम की इस बात का आम व्यक्तियों पर असर हमें हमेशा दिखाई नहीं देता लेकिन जब दिखाई देता है तो हम सच में व्यक्ति को सूरज की तरह ही चमकते देखते हैं। ऐसी चमक जो हमें केवल रोशनी ही नहीं बल्कि ऊर्जा भी देती है।

ऐसी ही चमक लिए चलते हैं पैरा एथलीट नीर बहादुर गुरुंग। नीर बहादुर खुद पैरालंपिक एथलीट हैं। वे भारतीय पैरालंपिक स्पोर्ट्स के गुरु भी कहे जाते हैं। उन्हें हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसी वर्ष 30 नवम्बर को राष्ट्रपति भवन में जब खिलाड़ियों, पूर्व खिलाड़ियों और खेल जगत के कोच को नेशनल स्पोर्ट्स एंड एडवेंचर अवार्ड से नवाज़ा जा रहा था तब यदि किसी ने इस मौके पर वहाँ बैठे लोगों का ध्यान सबसे अधिक आकर्षित किया तो वो थे ह्वीलचेयर पर बैठे पैरा एथलीट नीर बहादुर गुरुंग। जब उनकी उपलब्धियों के साथ उनके नाम की घोषणा की गई तो वहाँ बैठे हर किसी की नज़र उन पर पड़ी और तालियों ने समा बांध लिया। 

नीर बहादुर ख़ुशी के साथ जैसे ही अपनी ह्वीलचेयर पर पुरस्कार लेने आगे बढ़े, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्टेज से नीचे उतरकर उनकी ओर बढ़ी और उन्हें ध्यान चंद पुरस्कार से सम्मानित किया। यह केवल नीर बहादुर के लिए ही नहीं बल्कि वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति के लिए गर्व का अवसर था।

नीर बहादुर आज राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी खिलाडियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुके हैं

मेजर ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित नीर बहादुर क्यों पैरालिंपियन के मोटिवेशनल गुरु कहे जाते हैं

बता रही हैं @himanshi__bisht

वीडियो लिंक : https://t.co/WAST6v25fR pic.twitter.com/lMeh3lYiz1

— The Pamphlet (@Pamphlet_in) December 14, 2022

नीर बहादुर ने नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया है और कई बड़े पुरस्कार और मेडल अपने नाम किए हैं। वे शॉट पुट, जैवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो और टेबल टेनिस खेलते हैं। नेशनल ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल स्तर पर अपने हुनर का प्रदर्शन करने वाले नीर बहादुर ने देश को खेल के क्षेत्र में गौरवान्वित होने के कई अवसर प्रदान किए हैं। नीर बहादुर गुरुंग ने 2002 में FESPIC गेम्स मे जेवलिन थ्रो में सिल्वर मेडल, डिस्कस थ्रो में सिल्वर मेडल और शॉट पुट में ब्रोंज मेडल जीता वही 2006 में इसी गेम्स में उन्होंने डिस्कस थ्रो में गोल्ड मेडल जीता। 

आज नीर बहादुर सफलता के जिस मुकाम पर हैं, वहाँ पहुँचने के लिए दृढ़ निश्चय, साहस, कठिन परिश्रम, समाज के लिए प्रेरणा और जीवन जीने की इच्छाशक्ति जैसे व्यक्तिगत गुणों का बड़ा योगदान है। उनका जीवन चुनौतीपूर्ण रहा है। अपने जीवन में जिन चुनौतियों का सामना करके वे आज यहाँ पहुँचे हैं, वह असाधारण जीवन वाले व्यक्ति के लिए ही संभव है। जीवन में ऐसी चुनौतियों का सामना होने पर साधारण व्यक्ति हार मान सकते हैं पर नीर बहादुर जैसे असाधारण व्यक्ति नहीं।

नीर बहादुर पैरा एथलीट बनने से पहले भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में रहकर देश की सेवा किया करते थे। नेपाल से आए नीर बहादुर गुरुंग वर्ष 1978 में भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में भर्ती हुए। सेना में उनकी पोस्टिंग उन्हें कई जगह ले गई। सेना में शुरुआती दिन अच्छे रहे पर  वर्ष 1983 में सेना में सेवा के दौरान एक दुर्घटना में नीर बहादुर को गंभीर चोटें आई।

यह दुर्घटना तब घटी जब नीर बहादुर फौजी ट्रक मे अपने साथी सैनिकों के साथ गोला बारूद ले जा रहे थे। ट्रक के अन्दर कई बक्सों में गोला बारूद था। इस दौरान एक पहाड़ी रास्ते में ट्रक नियंत्रण खो बैठा और ट्रक फिसलते हुए पहाड़ी से टकरा गया। ट्रक में बैठे सैनिकों पर कारतूस, हथियारों के डिब्बे गिर गए, जिससे कई सैनिकों की मौके पर ही मृत्यु हो गई। नीर बहादुर को बहुत गहरी चोटें आई। उनके सिर और हाथ में कई फ्रैक्चर हो गए जबकि सबसे गंभीर चोट नीर बहादुर की रीढ़ की हड्डी में आई। उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी।  

वे हिल भी नहीं पाते थे। हर समय दर्द में रहा करते थे। वे अपने शरीर को महसूस नहीं कर पाते थे क्योंकि सब कुछ प्लास्टर से ढका हुआ था।  बाद में उन्हें पता चला कि वे कभी चल नहीं सकेंगे। एक व्यक्ति के लिए यह सोचना कि वह कभी चल नहीं सकेगा, सिहरन पैदा कर देता है। नीर बहादुर के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।

शारीरिक रूप से इतनी गंभीर चुनौतियों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।  यह शायद सेना में मिली ट्रेनिंग और उससे मिली इच्छाशक्ति का असर था। हादसे के बाद वर्ष 1985 में आर्मी ने उन्हें पुणे के पैरा रिहैब सेंटर भेजा। वहाँ उनकी पूरी देखभाल की जाती थी।

सामान्य तरीके से न चल पाने की विवशता ने उन्हें पैरा एथलीट बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने वर्ष 1987 में राष्ट्रीय खेल में हिस्सा लेना शुरू किया और कई मेडल जीते। बाद में उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला और वहाँ भी नीर बहादुर ने देश का नाम रौशन किया। उनकी इन उपलब्धियों में भारतीय सेना के पैरा रिहैब सेंटर की बड़ी भूमिका रही।  

40 वर्ष पहले नीर बहादुर पैरा रिहैब सेंटर से जुड़े थे और आज वह इसे अपना परिवार मानते हैं। यही वह जगह है, जहाँ उनको एक बार फिर जीवन जीने का हौसला मिला और कुछ कर दिखाने की प्रेरणा ने आज नीर बहादुर को राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी अन्य पैरालिंपियन के लिए प्रेरणाश्रोत बना दिया है।    

आज नीर बहादुर भारतीय पैरालिंपियन के मोटिवेशनल गुरु कहे जाते हैं। उनका जीवन उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो गंभीर हादसे के बाद अपने लक्ष्य को पूरा करने की इच्छा ख़त्म कर बैठते हैं।

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