चाइनीज फंडिग के आरोपों के चलते न्यूजक्लिक समाचार पोर्टल चहुँओर से घिरा हुआ है। लोकसभा में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने न्यूयॉर्क टाइम्स में पिछले हफ्ते छपी एक रिपोर्ट का जिक्र कर विपक्ष को इसमें घेरने का प्रयास किया था। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि श्रीलंकाई मूल के अमेरिकी टेक मुगल नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित न्यूजक्लिक की कवरेज असल में चीनी सरकार का एजेंडा है। रिपोर्ट दावा करती है कि न्यूजक्लिक को चीन से 38.05 करोड़ प्राप्त हुए थे।
गौर करने वाली बात यह है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED)ने वर्ष, 2021 में ही विदेशी फंडिंग को लेकर नई दिल्ली स्थित न्यूजक्लिक की जांच शुरू कर दी थी।
जानकारी के अनुसार ईडी की जांच में करोड़ों रुपए के विदेशी फंड का खुलासा हुआ था। न्यूजक्लिक में 3 साल तक धोखाधड़ी करके 38.05 करोड़ रुपये डाले गए थे। प्राप्त धनराशि कथित तौर पर गौतम नवलखा और तीस्ता सीतलवाड के सहयोगियों सहित कई विवादास्पद पत्रकारों को वितरित की गई थी। इनके कई नाम भी सामने आए हैं जिनकी हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
ईडी द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दिल्ली एनसीआर में स्थित पीपीके न्यूजक्लिक स्टूडियो और उससे जुड़ी संस्थाओं और उनके निदेशकों और शेयरधारकों (दस संस्थाओं) के कार्यालयों पर तलाशी ली गई थी। तलाशी के दौरान विदेशी मुद्रा, आपत्तिजनक दस्तावेज़ और डिजिटल साक्ष्य जब्त किए गए।
साक्ष्यों की जांच से एफडीआई के माध्यम से 9.59 करोड़ रुपये और सेवाओं के निर्यात के माध्यम से 28.46 करोड़ रुपये के संदिग्ध विदेशी आवक प्रेषण का पता चला था।
इससे यह भी पता चला कि रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)अप्रैल, 2018 में न्यूजक्लिक एक घाटे में चल रही कंपनी के रूप में पंजीकृत हुई थी। इसके शेयरों की सदस्यता के माध्यम से रुपये के प्रीमियम पर 9.59 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। 11,510/- प्रति शेयर (शेयर का अंकित मूल्य 10/- रुपये प्रति शेयर था)।
ईडी की जांच से पता चला कि न्यूजक्लिक के निदेशक प्रबीर पुरकायस्थ 2017 से वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स एलएलसी (लिमिटेड लायबिलिटी कंपनी) के नेवीले रॉय सिंघम को जानते थे। पूछताछ में प्रबीर ने कथित तौर पर कहा कि उसे नेवीले की कंपनी के बारे में कुछ भी नहीं पता था।
वहीं, जब्त किए गए डिजिटल सबूतों के आधार पर पता चला है कि प्रबीर ने नेविल रॉय सिंघम के साथ मिलकर एक एक प्लान बनाया था जिसका संबंध कथित तौर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) से है।
आसान शब्दों में कहें तो चीन से 9.59 करोड़ रुपए की फंडिग प्राप्त करने के लिए प्रबीर पुरकायस्थ ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एफडीआई निवेश का कानूनी मुखौटा तैयार किया था। साथ ही यह आरोप भी था कि नेविल रॉय सिंघम ने वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए परामर्श शुल्क के रूप में प्रबीर को धन हस्तांतरित किया था।
अब न्यूजक्लिक भले ही इन आरोपों का खंडन करे पर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में सामने आया है कि चीनी फंड को कथित तौर पर कई विवादास्पद कार्यकर्ताओं को हस्तांतरित किया गया था। यह चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि सूची में सामने आए कार्यकर्ताओं के नाम पहले भी क्राउड फंडिंग और फेक न्यूज फैलाने के गंभीर आरोपों का सामना कर चुके हैं। इनमें से कुछ नाम यह हैं-
- तीस्ता सीतलवाड़ के पति जावेद आनंद (12.61 लाख रुपये)।
- तमारा, तीस्ता सीतलवाड की बेटी (10.93 लाख रुपये)
- जिब्रान, तीस्ता सीतलवाड के बेटे
- गौतम नवलखा (20.53 लाख रुपये)
- उर्मिलेश (22.78 लाख रुपये)
- अर्र्तिका हलदर
- परंजॉय गुहा ठाकुरता (40.04 लाख रुपये)
- तृण शंकर
- अभिशार शर्मा (45.69 लाख रुपये)
- बप्पादित्य सिन्हा (52.09 लाख रुपये)
यह सभी नाम कथित मोदी विरोधी और तथाकथित कार्यकर्ताओं के रूप में पहचान रखते हैं।
तीस्ता सीतलवाड़
तीस्ता सीतलवाड़ को मोदी-विरोधी और कथित सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। इनका नाम 2002 के गुजरात दंगों पर अपनी सक्रियता के बाद सामने आया था। तीस्ता सीतलवाड पर गुजरात दंगों को लेकर मीडिया में सनसनी पैदा करने के लिए जाली सबूत बनाने और गवाहों को प्रशिक्षित करने का आरोप है। इन्हीं आरोपों के चलते यह 2022 में गिरफ्तार हो चुकी हैं।
इसके साथ ही गुजरात पुलिस के अनुसार तीस्ता और उनके पति पर 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए जमा की गई धनराशि में भारी धोखाधड़ी और गबन का आरोप है और इस विषय में न्यायलय में मुकदमा भी चल रहा है। पुलिस के हलफनामे के अनुसार 2008-2013 के दौरान प्राप्त धन का 45 प्रतिशत सीतलवाड़ और उनके पति द्वारा सबरंग कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड के स्वामित्व में इस्तेमाल किया गया था।
तीस्ता द्वारा इन वर्षों में एकत्रित की गई संपत्ति का कोई पुख्ता ब्यौरा नहीं मिला है। साथ ही उनपर गुलबर्ग सोसाइटी सहित अन्य घोटाले के आरोप भी लगे हैं। वर्ष 2013 में यह बातें सामने आई थी कि मुस्लिम समाज के लोग ही तीस्ता पर पुनर्वास पर कुछ भी खर्च नहीं करने का आरोप लगा रहे थे। साथ ही सीतलवाड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी को संग्रहालय में परिवर्तित करने का अपना वादा भी नहीं निभाया था।
परंजय गुहा ठाकुरता
न्यूजक्लिक के पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता को 40 लाख की चीनी फंडिंग मिली है। इससे पहले भी ठाकुरता कई विवादों में रह चुके हैं। इससे पहले परंजय गुहा ठाकुरता ने पत्रकार रवि नायर के साथ मिलकर राफेल पर एक प्रचार पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसमें रक्षा सौदे पर कांग्रेस की कहानी को बढ़ावा दिया गया था।
परंजय ने अडानी के बारे में काफी कुछ लिखा है और आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने कारोबारी को अनुचित फायदा पहुंचाया है। उन्होंने अडानीवॉच जैसे अन्य माध्यमों से गौतम अडानी पर जोरदार हमला किया है। यह संस्थान अडानी समूह का आंख मूंदकर विरोध करने के लिए ही बनाया गया था।
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि राफेल पर और अडानी के खिलाफ प्रचार का नेतृत्व करने वाले परंजय को चीन द्वारा फंडिग क्यों मिली है?
अभिसार शर्मा
न्यूजक्लिक के पूरे मामले में अभिसार शर्मा का नाम भी सामने आ रहा है। एक यूट्यूबर के तौर पर पहचान रखने वाले अभिसार शर्मा न्यूजक्लिक के साथ काम करते हैं। इनपर भी कथित तौर पर चीन से 45.69 लाख मिलने का आरोप है।
परंजय गुहा ठाकुरता की तरह ही अभिसार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वर्तमान भाजपा सरकार के कट्टर आलोचक रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के वायरल होने के बाद से सोशल मीडियो यूजर्स ने अभिसार शर्मा की बेहद आलोचना की है।
एक एक ट्विटर युजर द्वरा तो अभिसार शर्मा को गद्दार करार दे दिया गया। ट्वीट में लिथा गया कि “चीनी धन लेने और भारत के खिलाफ प्रचार करने के लिए @abisar_sharma (अभिसार शर्मा) को शर्म आनी चाहिए”।
फिलहाल मामले को लेकर अभिशार शर्मा ने अपनी ओर से कोई सफाई नहीं दी है। उल्लेखनीय है कि यूट्यूबर बनने से पहले अभिसार शर्मा प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ से भी जुड़े हुए थे।
बहरहाल न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट ने विदेशी फंडिंग के आधार पर देश में प्रोपगेंडा चलाने वाले कार्यकर्ताओं पर गहरी चोट की है। गुजरात दंगों में तीस्ता सीतलवाड की भूमिका को देखते हुए चीन से मिली राशि का उपयोग संदेहजनक लगता है। इस बात की संभावना व्यक्त की जाती रही है कि न्यूजक्लिक जैसे पोर्टल और तीस्ता सीतलवाड, परंजय गुहा ठाकुरता और अभिसार शर्मा जैसे व्यक्ति चीनी फंडिंग के माध्यम से भारत में जनमत को प्रभावित करने की कोशिश में लगे रहे हैं।
भू-राजनीति और चीन से भारतीय संबंधों को देखते हुए यह न केवल अवैध है बल्कि देश के लिए आत्मघाती कदम भी है। फिलहाल तो मामला सामने आया ही है। संभावना है कि जांच के साथ इसमें अन्य कई बड़े खुलासे होंगे।
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