सच क्या है? महाभारत में द्रोणाचार्य द्वारा जब युधिष्ठिर से अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का सच पूछा गया तो युधिष्ठिर ने जो जवाब दिया वह जवाब सत्य इसलिए माना गया क्योकि वो धर्मराज युधिष्ठिर के मुँह से निकला था। धर्मराज स्वयं सत्य का प्रमाण थे। आज महाभारत के युद्ध जैसे ही हालात पत्रकारिता में बने हुए हैं। पत्रकारिता में जिधर देखिए, निष्पक्ष पत्रकारिता का दावा करने वाले और खुद को युधिष्ठिर बताने वाले गिरोहबंद होकर खड़े हैं। निष्पक्ष पत्रकरिता क्या होती है? अगर आप इस सवाल को कुरेदेंगे तो आपको पता चलेगा कि निष्पक्ष पत्रकरिता एक किस्म की गिरोहबाजी का उत्पाद है। पत्रकारिता की निष्पक्षता का प्रमाण वो गिरोह है जो निष्पक्ष होने का दावा कर रहा है और खुद को ही प्रमाणपत्र दे रहा है। उस गिरोह के आलावा सब झूठे हैं, क्या आम नागरिक, क्या राज्य और क्या राज्य की संस्थाएं। ये गिरोह राज्य को आईना दिखने के नाम पर अपने मतलब की सरकारें बनाता बिगाड़ता रहा है। आज की तारीख में ये निष्पक्ष पत्रकारिता गिरोह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित है और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए गैर कानूनी विदेशी संस्थानों से पैसे और सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहा है ताकि पत्रकारिता निष्पक्ष बनी रह सके। गिरोह को पता है कि अगर गिरोहबाज गैर कानूनी काम करते नहीं पकडे गए तो उन्होंने जो लिखा वो निष्पक्ष कहलायेगा और अगर पकडे गए तो शहीद कहलायेंगे। ऐसे गिरोहबाजों के सामने हर राज्य विवश होता है लेकिन जो राज्य ऐसे गिरोहबाजों के खिलाफ कार्यवाही करता है, उसका भविष्य उज्जवल ही कहा जाना चाहिए क्योकि वो राज्य की नींव में लगे दीमकों को समाप्त कर रहा है।
न्यूज़ क्लिक नामक मीडिया समूह के पत्रकारों पर कार्रवाई की घटना भारतीय दृष्टिकोण से कोई सामान्य घटना नहीं है। न्यूज़ क्लिक से पहले भी भारतीय पत्रकारों पर विदेशी हितों के लिए कार्य करने के मामले आते रहे हैं, आरोप लगते रहे हैं लेकिन कभी ऐसे आरोपों पर इस स्तर की कानूनी कार्यवाही नहीं हुई जिसमें दर्जनों प्रतिष्ठित और गिरोहबंद पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोहियों पर लगायी जाने वाली गंभीर धाराओं में जांच शुरू की गयी हो। ये शायद पहली बार है कि भारत सरकार ने वृहत स्तर पर नामी गिरामी गिरोहबाज पत्रकारों के खिलाफ भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में आपराधिक कार्यवाही शुरू की है।
ये किसी से ढका छुपा नहीं है कि पत्रकारों का एक गिरोह कोरोना महामारी के समय तत्कालीन सरकार और जनता की मजबूरी की खबरें छाप कर अंतरराष्ट्रीय वाहवाही बटोर रहा था और ऐसी ख़बरों को मीडिया स्वतंत्रता के नाम पर जायज बताया जा रहा था। ये भी सही है कि कई नामी पत्रकारों ने कोरोना के भारतीय टीके पर टीका टिप्पणी कर के जनता को हतोत्साहित भी किया। इन बातों के बावजूद ये कहना जरूरी है कि भले ही कोरोना के समय कई पत्रकारों की रिपोर्टिंग को मीडिया निरंकुशता माना जाये लेकिन ऐसे निरंकुश पत्रकारों के ऐसे कृत्य पर सवाल इसलिए उठाना उचित नहीं है क्योकि सूचना एकत्र करना और उसको प्रकाशित करना पत्रकारों का काम है। कोई पत्रकारों से राष्ट्रवाद के नाम पर संकट के समय देश की जनता का मनोबल गिराने वाली बातें न लिखने की अपेक्षा भी नहीं करता, आखिर घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या? लेकिन निरंकुशता की भी सीमा होती है जो राज्य के कानूनों से तय होती है। पत्रकारों से राज्य का जिम्मेदार नागरिक होने की विधिक अपेक्षा रखना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है। अगर पत्रकार गिरोहबंद होकर राज्य के शत्रुओं के साथ मिलीभगत करके राज्य पर हमला करने की कोशिश करते पाए जाते हैं, तो वो राज्य के हर नागरिक के शत्रु हैं। ऐसे पत्रकारों को अगर कलमबाज़ आतंकवादी कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
न्यूज़ क्लिक से जुड़े जिन पत्रकारों से पूछताछ हुई है, उनमें से अधिकांश अफवाहों की पत्रकारिता वर्षों से करते आये हैं। परंजॉय गुहा ठाकुरता नामक पत्रकार जो न्यूज़ क्लिक से सम्बद्ध मामले में जांच के दायरे में हैं, किसी ज़माने में इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली नामक अकादमिक माने जाने वाली शोध पत्रिका के संपादक थे। उक्त शोध पत्रिका बहुत नामी है और एक पत्रकार, जिसका शोध के तौर तरीकों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है, मुंबई से छपने वाली उक्त पत्रिका का संपादक कैसे बना, ये अपने आप में शोध का विषय है और यह उस पत्रिका के सम्पादकीय मानदंडों पर भी सवाल खड़े करता है। संपादक गुहा ठाकुरता ने उसी पत्रिका के सम्पादकीय खंड में अडानी इंटरप्राइजेज को लेकर एक अफवाही सम्पादकीय लिखा। जब गौतम अडानी ने पत्रिका के मालिकाना हक़ वाली संस्था को न्यायालय में खींचने की धमकी दी तब डरकर पत्रिका ने उस लेख को तो हटाया ही बल्कि प्रांजय गुहा ठाकुरता को भी अलविदा बोल दिया। हालाँकि गुहा साहब इस्तीफ़ा देकर शहीद होने का ढिंढोरा अपने गिरोह के माध्यम से पीटते रहे लेकिन अपने सम्पादकीय को न्यायोचित ठहराने वाला कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर सके। तब से गुहा अडानी पर स्वयंभू ज्ञाता बने हुए हैं और गौतम अडानी ने आजतक समाजवादियों, कांग्रेसियों और भाजपाइयों द्वारा चलायी सरकारों के माध्यम से भारतीय राज्य को कैसे चूना लगाया है, इस पर शोधरत हैं।
गुहा एकमात्र भारतीय पत्रकार हैं जिनका हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जिक्र था हालाँकि ये आश्चर्य की बात है कि गौतम अडानी से जुड़ी कंपनियों के वित्तीय लेन देन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में गुहा ने कभी वादी या गवाह के तौर पर पेश होने की जहमत नहीं उठायी। जाहिर है गुहा कोई भी बात हलफ़ उठा कर नहीं कहते केवल लिखते हैं ताकि विदेशी संस्थान उनकी लिखी अफवाहों को जरूरत पड़ने पर भारतीय राज्य और भारतीयों के विरुद्ध इस्तेमाल कर सकें। गुहा स्वयंभू ज्ञानी हैं और उनके प्रस्तुत किये गए तथ्यों को किसी कोर्ट कचहरी से प्रमाणित होने की आवश्यकता नहीं है।
इसके पहले गुहा एमनेस्टी इंटरनेशनल नामक संस्था से भी जुड़े रहे हैं और इन्होने उक्त संस्था के लिए कोयले के व्यापार से सम्बंधित कुछ डॉक्यूमेंटरीज भी बनायीं हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत में कार्य करने पर सरकार द्वारा २०२० में ही रोक लगायी जा चुकी है। उक्त संस्था पर भी गैर कानूनी वित्तीय लेनदेन के ही आरोप थे। यह ध्यान देने वाली बात है कि कोयला भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पाया जाता है जहाँ नक्सल आतंकवाद गंभीर समस्या है। यह भी अजीबोगरीब तथ्य है कि जब से फेमा नियमों में बदलाव करके मानव अधिकार के लिए लड़ने वाली विदेशी संस्थाओं के फंड पर अंकुश लगाया गया है तब से गुहा जैसे पत्रकारों ने न तो कोई डाक्यूमेंट्री बनाई है और दूसरी तरफ तभी से हिंसक नक्सलवाद की कमर भी टूट गयी है। यहाँ भी यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि डाक्यूमेंट्री बनाने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए लेकिन डाक्यूमेंट्री बनवाने वाली मानवाधिकार संस्थाओं का गैर कानूनी वित्तीय लेन देन में संलिप्तता के चलते भारत से प्रयाण और नक्सली आतंक का खात्मा एक ही साथ होना मुझको विचित्र संयोग ही लगता है।
दूसरे पत्रकार प्रबीर पुरकायस्थ जो न्यूज़ क्लिक के संपादक हैं, कोई आज से चीन समर्थक नहीं है। वामपंथी विचारधारा के समर्पित कैडर हैं। २००७ में प्रबीर पुरकायस्थ ने भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते पर “अंकल सैम’स नुक्लिएर केबिन” नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उनके सह लेखक निनान कोशी और एम् के भद्रकुमार थे। उक्त पुस्तक में इस बात की व्याख्या है कि कैसे अमेरिका नुक्लिएर डील के माध्यम से एशिया को बांटने की कोशिश कर रहा था और कैसे भारत चीन और रूस के साथ एक त्रिगुटीय संघ बना कर फायदा उठा सकता है। फिर से मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि भारत के हितों को लेकर प्रबीर पुरकायस्थ या किसी और के विचार उसको अपराधी नहीं बनाते लेकिन यह बात कहनी इसलिए जरूरी है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि पुरकायस्थ २००७ में ही क्या सोच रहे थे। उस समय कांग्रेस की सरकार थी जब २००९ में न्यूज़ क्लिक की स्थापना हुई तो ये भी आपराधिक जांच का विषय होना चाहिए कि चीन के नागरिक की संस्था के मार्फ़त न्यूज़ क्लिक को गैर कानूनी तरीके से पैसे मिलने की प्रक्रिया कब प्रारम्भ हुई। क्या यह लेन-देन कांग्रेस सरकार के समय से चल रहा है? और क्या इस लेन-देन का कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए समझौते से कोई लेना-देना है? ये प्रश्न भारतीय राजनीति और राज्य के दृष्टिकोण से प्रासंगिक प्रश्न हैं।
इस गिरोह के तीसरे नामी पत्रकार, जिनसे न्यूज़ क्लिक मामले में पूछताछ की गयी है उनका नाम उर्मिलेश् हैं। ये साहब हिंदी पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं और आदिवासी झारखण्ड और कश्मीर इनके लेखन के प्रिय विषय रहे हैं। ये कहना अनावश्यक है कि कश्मीर को लेकर उर्मिलेश् के ख्याल क्या होंगे और इन क़िताबों में क्या लिखा होगा।
प्रेस और मीडिया के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी कि गुहा ठाकुरता, जो गैर कानूनी पैसे लेकर चीनी प्रोपेगंडा फ़ैलाने के आरोपों में घिरे हैं, प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया द्वारा पेड न्यूज़ नामक बुराई को ख़त्म करने वाली समिति के सदस्य रहे, जिसकी रिपोर्ट में उन्होंने कई मीडिया संस्थानों पर पेड न्यूज़ चलाने के आरोप लगाए। जाहिर सी बात है कि गुहा साहब उक्त रिपोर्ट में गिरोहबाज निष्पक्ष पत्रकारिता को बचाने के लिए और बनाये रखने के लिए बाकी किस्म की पत्रकारिता को ख़त्म करने की वकालत कर रहे थे। सारे निष्पक्ष पत्रकारिता गिरोह ऐसा ही करते हैं और इसको पत्रकारिता का फासीवाद भी नहीं कहा जाता, क्योकि पत्रकारिता में फासीवाद हो ही नहीं सकता। गिरोहबाज पत्रकार होने का यही मजा है। अंत में सिर्फ इतना ही कहना सही होगा कि मीडिया को अपने भीतर बैठे ऐसे आस्तीन के सांपों से सावधान रहना होगा, नहीं तो मीडिया की पहले से रसातल में पहुंच चुकी प्रतिष्ठा उस अँधेरे में चली जाएगी जहाँ से वापिस लौटना संभव नहीं होगा। इस दृष्टि से सरकार ने न्यूज़ क्लिक के खिलाफ जांच शुरू कर के मीडिया का भला ही किया है।