अयोध्या में श्रीराम लला के मंदिर के भव्य उद्घाटन की तारीख नजदीक आने के साथ ही मंदिर निर्माण से जुड़ी फेक न्यूज फैलाई जा रही है। फेक न्यूज फैलाने में मीडिया संस्थान भी आगे हैं, जिनके द्वारा राम मंदिर को लेकर झूठी और फर्जी खबरें भी प्रकाशित की जा रही हैं। ऐसी ही एक झूठी जानकारी ‘न्यूज 24’ नामक चैनल द्वारा फैलाई जा रही है, जिसमें दावा किया गया था कि मंदिर में स्थापित होने वाली रामलला की मूर्ति एक मुस्लिम मूर्तिकार और उसके बेटे द्वारा बनाई जा रही है।
दिसंबर 14, 2023 को न्यूज 24 ने एक्स पर एक ट्वीट पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल के मुहम्मद जमालुद्दीन और उनके बेटे बिट्टू राम लला की मूर्ति बना रहे हैं, जो अयोध्या में राम मंदिर में उनकी जगह लेगी।

हिंदी में किए गए पोस्ट में लिखा गया था कि ”रामलला जनवरी में अयोध्या के राम मंदिर में विराजमान होने के लिए तैयार हैं।” उसके बाद, मीडिया हाउस ने चार बुलेट पॉइंट जोड़े, जिनमें से पहले में कहा गया, “मूर्तियाँ बंगाल के मोहम्मद जमालुद्दीन और उनके बेटे बिट्टू द्वारा बनाई गई थीं।”
इसके बाद न्यूज 24 ने पोस्ट में कहा कि पिता-पुत्र की जोड़ी लंबे समय से मूर्तियां बना रही है। इसके बाद पोस्ट में जमालुद्दीन का बयान भी जोड़ा गया। जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘धर्म एक निजी चीज है। हमारे देश में कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। एक कलाकार के तौर पर भाईचारे की संस्कृति ही मेरा संदेश है।’
हालांकि यह खबर पूरी तरह से फर्जी और झूठा दावा करने वाली है क्योंकि रामलला की मुख्य मूर्ति कोई मुस्लिम नहीं बना रहा है।
कौन बना रहा है श्रीराम की मूर्तियां
उल्लेखनीय है कि अयोध्या में राम लला की एक नहीं बल्कि तीन मूर्तियां तीन अलग-अलग कलाकारों द्वारा बनाई जा रही हैं, और उनमें से एक को गर्भगृह में रखने के लिए एक समिति द्वारा चुना जाएगा, जिसके बाद पुजारियों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान किया जाएगा।
वहीं, श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय जानकारी दे चुके हैं कि तीन अलग-अलग मूर्तियां तीन मूर्तिकारों – कर्नाटक के गणेश भट्ट और अरुण योगीराज और जयपुर के सत्यनारायण पांडे द्वारा बनाई जा रही हैं। इनमें से दो मूर्तियां कर्नाटक के दो और एक राजस्थान के पत्थरों का उपयोग करके बनाई जा रही हैं। पहले नेपाल से पत्थर लाया गया था, बाद में मूर्ति तराशने के लिए ओडिशा और महाराष्ट्र से भी पत्थर लाए गए, लेकिन वे उपयुक्त नहीं पाए गए।
वहीं, कर्नाटक के गणेश भट्ट नेल्लिकारु चट्टान या काले पत्थरों से मूर्ति बना रहे हैं, जिसे श्याम शिला या कृष्ण शिला के नाम से भी जाना जाता है। मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज, जिन्होंने केदारनाथ में पीएम मोदी द्वारा अनावरण की गई आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई थी, कर्नाटक की एक और चट्टान का उपयोग करके एक और मूर्ति बना रहे हैं।
साथ ही राजस्थान के सत्य नारायण पांडे सफेद मकराना संगमरमर के पत्थरों से राम लला की मूर्ति बना रहे हैं। तीनों कलाकार मुंबई के प्रसिद्ध कलाकार वासुदेव कामथ के स्केच के आधार पर मूर्तियों को तराश रहे हैं।
जाहिर है कि वर्तमान में 51 इंच लंबे राम लला भगवान राम के बाल रूप को दर्शाते हैं, जो वर्तमान छोटी मूर्ति के समान है जो आधी सदी से अधिक समय से अस्थायी मंदिर में रखी हुई थी। मूर्ति में पांच साल के रामलला को कमल पर बैठे हुए दिखाया जाएगा, उनके एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ में तीर होगा। प्रतिमा पर भगवान राम से जुड़े कई अन्य प्रतीक भी उकेरे जाएंगे। जहां एक मूर्ति को गर्भगृह में स्थायी रूप से स्थापित करने के लिए चुना जाएगा, वहीं अन्य दो मूर्तियों को मंदिर परिसर के अंदर प्रमुख स्थानों पर रखा जाएगा।
ऐसे में स्पष्ट है कि न्यूज 24 ने फेक न्यूज फैलाने का काम किया है। उन्हें मुर्तियों के निर्माण को लेकर सटीक जानकारी नहीं थी। फिलहाल सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को लेकर आलोचनाओं का सामना करने के बाद न्यूज 24 द्वारा किए गए अपने झूठे दावे वाली पोस्ट को डिलीट कर दिया गया है। गौर करने वाली बात है कि न्यूज 24 इससे पहले केदारनाथ धाम के गर्भगृह में सोने के पीतल में बदलने का फेक दावा कर चुका है। जिसे श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने प्रेस नोट जारी कर झूठा करार दिया था।
वहीं, पश्चिम बंगाल के जमालुद्दीन का जिक्र करें तो वे राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के लिए फाइबर का उपयोग करके एक सजावटी मूर्ति बना रहे हैं। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मद जमालुद्दीन और उनके बेटे बिट्टू कुछ मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं जो मंदिर परिसर की शोभा बढ़ाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह आदमकद फाइबर की मूर्तियां बना रहे हैं।
जाहिर है कि हिंदू मंदिरों में अधिकांश देवता विभिन्न प्रकार के पत्थरों से बनाए जाते हैं, जबकि वार्षिक उत्सवों के लिए बनाई जाने वाली अस्थायी मूर्तियाँ मिट्टी का उपयोग करके बनाई जाती हैं। फाइबर की मूर्तियाँ मिट्टी की तुलना में अधिक समय तक टिकती हैं, लेकिन पत्थर पर नक्काशी की तुलना में इन्हें बनाना बहुत आसान होता है। फाइबर की मूर्तियाँ आम तौर पर निर्यात के लिए बनाई जाती हैं, क्योंकि वे हल्की होती हैं और क्षति के जोखिम के साथ परिवहन में आसान होती हैं।
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