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Home » नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम पर PIL डालने वाले वकील जया सुकिन: EVM पर पड़ी थी कोर्ट से फटकार
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नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम पर PIL डालने वाले वकील जया सुकिन: EVM पर पड़ी थी कोर्ट से फटकार

एडवोकेट सीआर जया सुकिन बिना रिसर्च और तथ्यों के पीआईएल दायर करते रहे हैं। चाहें वो ईवीएम का मामला हो या नूपुर शर्मा का!
The Pamphlet StaffBy The Pamphlet StaffMay 25, 2023No Comments5 Mins Read
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Advocate CR Jaya Sukin
एडवोकेट सीआर जया सुकिन की नई पीआईएल
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मई 28, 2023 को होने जा रहे नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की गई है। याचिका में नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बजाय राष्ट्रपति द्वारा कराए जाने के लिए आदेश पारित करने का आग्रह किया गया है।

यह याचिका एडवोकेट सीआर जया सुकिन द्वारा दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि संसद भारत की सर्वोच्च विधायी संस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति एवं दो सदन राज्यसभा एवं लोकसभा शामिल हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के किसी भी सदन को बुलाने और सत्रावसान करने या लोकसभा भंग करने की शक्ति है। राष्ट्रपति के पास कुछ शक्तियां हैं। वे कई प्रकार से औपचारिक कार्य करते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों में कार्यकारी, विधायी, न्यायपालिका, आपातकालीन और सैन्य शक्तियां शामिल हैं।

PIL filed in Supreme Court seeking a direction that the #NewParliamentBuilding should be inaugurated by the President of India. pic.twitter.com/IG8y4gQn4i

— ANI (@ANI) May 25, 2023

याचिकाकर्ता का कहना है कि लोकसभा सचिवालय ने उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करके भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। 18 मई को जारी लोकसभा सचिवालय के बयान के अनुसार नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा।

याचिकाकर्ता एडवोकेट जया सुकिन का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन कानून के अनुसार नहीं हो रहा है इसलिए देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।

संसद भवन के उद्घाटन के संबंध में दायर याचिका कोर्ट स्वीकार करेगी या नहीं यह अभी सामने नहीं आया है। हां, यह कहा जा सकता है कि एडवोकेट जया सुकिन बिना रिसर्च और तथ्यों के  पीआईएल दायर करते रहेंगे।

जया सुकिन पर कोर्ट लगा चुकी है जुर्माना

इससे पहले भी सीआर जया सुकिन के द्वारा वोटिंग मशीन यानी EVM पर प्रतिबंध लगाने को लेकर याचिका दायर की गई थी। जिसमें उन्होंने जर्मनी, यूके का उदाहरण देकर कहा कि वे EVM का उपयोग नहीं कर रहे हैं।  EVM में सिवाय चुनाव आयोग के बाक़ी किसी राजनीतिक दल को विश्वास नहीं है। अधिवक्ता ने यहां तक दावा किया कि चूँकि मतदान करना एक मौलिक अधिकार है इसलिए चुनाव में EVM का प्रयोग कर निर्वाचन आयोग इस अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

इस प्रकार से असंवैधानिक दावे पेश करने के लिए एवं बिना रिसर्च पीआईएल दाखिल करने के लिए कोर्ट द्वारा सीआर जया सुकिन पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाने के साथ ही याचिका खारिज कर दी गई थी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने अधिवक्ता सीआर जया सुकिन के दावों पर सवाल किया था कि क्या आपके पास संविधान की प्रति है? कब से मतदान करना मौलिक अधिकारों में शामिल हो गया है हम जानना चाहते हैं।

ईवीएम के उपयोग पर यूके एवं फ्रांस का उदाहरण देने पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से स्रोत की मांग की गई तो सीआर जया सुकिन द्वारा न्यूज रिपोर्टों का हवाला दिया गया था। कमजोर रिसर्च एवं तथ्यहीन पीआईएल के लिए कोर्ट ने कहा कि हमारे पास इसे सुनने का कोई कारण ही नहीं है। याचिका मात्र चार दस्तावेजों पर आधारित थी, जिनमें से एक न्यूज रिपोर्ट थी और अन्य सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उनके प्रतिनिधित्व और याचिका से संबंधित थे। स्वयं याचिकाकर्ता सुकिन को ईवीएम के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी।

कोर्ट ने मामला खारिज करते हुए कहा कि मात्र कुछ न्यूज रिपोर्ट पढ़कर याचिकार्ता ने बिना किसी जानकारी के संसद एवं निर्वाचन आयोग द्वारा मंजूरी प्राप्त ईवीएम के खिलाफ याचिका दायर की है। जुर्माने के बाद भी अधिवक्ता सीआर जया सुकिन का पीआईएल दाखिल करने का उत्साह बना रहता है। नुपूर शर्मा के मामले में भी एक पीआईएल दाखिल करके वे चर्चा का विषय बनने का प्रयास कर चुके हैं।

नूपुर शर्मा प्रकरण में भी थी दिलचस्पी

नूपुर शर्मा द्वारा दिए गए विवादित बयान के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा द्वारा सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को गैर-जिम्मेदार एवं गैर-कानूनी बताने वाली टिप्पणी के विरोध में सीआर जया सुकिन ने जस्टिस ढींगरा के खिलाफ आपराधिक अवमानना की अदालती कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सहमति की मांग की थी।

इसके साथ ही सुकिन ने पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी और वरिष्ठ अधिवक्ता के रामकुमार के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की मांग की थी, जिन्होंने शीर्ष अदालत की टिप्पणियों पर सवाल उठाया था।

सुकिन ने अपने पत्र में कहा था कि जस्टिस ढींगरा, पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी और वरिष्ठ अधिवक्ता के राम कुमार के बयान सभी न्यूज चैनल्स में प्रसारित हुए हैं। तीनों व्यक्तियों द्वारा असंसदीय बयानों और अपमानजनक टिप्पणियों से भारतीय न्यायपालिका एवं राष्ट्र को क्षति पहुँचाई  है। इसलिए यह न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के दायरे में आता है।

अपने जवाबी पत्र में सॉलिसिटर जनरल केके वेणुगोपाल ने अनुमति की मांग को खारिज करते हुए बताया कि उक्त लोगों द्वारा की गई आलोचना निष्पक्ष थीं। उनके बयान अपमानजनक नहीं थे और न ही ये न्यायप्रक्रिया में हस्तक्षेप के इरादे से दिए गए थे। पूर्व सीजी ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले भी कई फैसलों में स्वीकार किया गया है कि न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष और उचित आलोचना न्यायपालिका की अवमानना नहीं मानी जाएगी।

अब एडवोकेट जया सुकिन नई याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट के सामने हैं। निर्वाचित प्रधानमंत्री द्वारा संसद भवन के उद्घाटन को गैर-कानून बताने वाली याचिका की सर्वोच्च न्यायलय किस प्रकार सुनवाई करता है यह तो साफ हो ही जाएगा। मामला खारिज भी होता है तो जुझारू अधिवक्ता सीआर जया सुकिन कोई नया तथ्यहीन मुद्दा ढूंढ ही लेंगे।

प्रदर्शनकारी पहलवानों के खिलाफ शिकायत दर्ज, PM मोदी और बृजभूषण सिंह की छवि बिगाड़ने का आरोप

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