28 मई का दिन देश के लिए ऐतिहासिक होने जा रहा है। पहले देश ने आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव मनाया और अब देश नये संसद भवन के महायज्ञ में शामिल होने जा रहा है।
महायज्ञ के तहत 28 मई को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। लेकिन त्रेतायुग की तरह ही इस यज्ञ को भंग करने को लेकर नाना विधि प्रकार की शक्तियाँ सक्रिय हो चुकी हैं। कई विपक्षी दलों ने इस उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार भी कर दिया है। कुछ का कहना है कि यह वीर सावरकार की जयंती के दिन किया जा रहा है वहीं कांग्रेस ने कहा है कि राष्ट्रपति को ये उद्घाटन करना चाहिए था। हालाँकि तथ्य यही है कि कांग्रेस सरकार के मुखिया ही संसद का उद्घाटन करते रहे हैं।
फिर चाहे वो अगस्त 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा संसद एनेक्सी का उद्घाटन हो या फिर 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संसद पुस्तकालय का उद्घाटन।
खैर, अब सरकार द्वारा इन शक्तियों की नकरात्मकता को पीछे छोड़ते हुए संसद भवन के उद्घाटन को पवित्र रूप देने का प्रयास किया जा रहा है। नए संसद भवन में सेंगोल यानी राजदंड को स्थापित किया जाएगा।
क्या है ये सेंगोल और इस से जुड़ी हमारी ऐतिहासिक परम्परा
सेंगोल संस्कृत शब्द “संकु” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “शंख” , शंख हिन्दू धर्म में एक पवित्र प्रतीक माना जाता है। सेंगोल को संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राटों की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था।
यह बेशकीमती रत्नो से सजाया जाता था। यह राजदंड अक्सर औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था।
इसका अधिक इस्तेमाल चोल साम्राज्य में देखा गया है, जब चोल साम्राज्य का कोई राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था तो सत्ता हस्तांतरण के तौर पर सेंगोल दिया जाता था। इसलिए खास तौर से तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों में सेंगोल को न्यायप्रिय और निष्पक्ष शासन का प्रतीक माना जाता है।
आखिरी बार इसकी चर्चा तब हुई थी जब देश को आज़ादी मिल रही थी
भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंटबेटन भारत को सत्ता हस्तांतरित करने का कार्य पूरा कर चुके थे। अब ऐसे में प्रश्न उठा कि सत्ता हस्तांतरित करने का सिंबल क्या होगा? चूँकि प्रधानमंत्री नेहरू भारतीय संस्कृति एवं परम्परा से परिचित नहीं थे इसलिए इस सवाल का उत्तर ढूंढा, पूर्व गर्वनर जनरल सी राज गोपालाचारी ने, जो भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझते थे।
तय हुआ कि सेंगोल के द्वारा ही सत्ता हस्तांतरित की जायेगी ताकि यह सत्ता अंग्रज़ो से नहीं बल्कि पारम्परिक तरीके से स्वीकार हो पाए।
राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। अधीनम वो संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं।
तिरुवदुथुराई अधीनम के मुखिया ने सेंगोल को बनाने का कार्य मद्रास के प्रसिद्ध जौहरी Vummidi Bangaru Chetty सौंपा।आखिरकार सोने का सेंगोल तैयार हुआ। ये लगभग पांच फ़ीट का था जो श्लोक एवं धार्मिक चिन्हों को समेटे हुए था ।
विशेष रूप से, सेंगोल के शीर्ष पर नंदी (बैल) विराजमान थे। नंदी, जो न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक है।
इसी सेंगोल पर एक श्लोक भी लिखा है जिसका अर्थ है कि “यह हमारा आदेश है कि शिव भक्त, अर्थात् राजा, इस देश पर शासन करेंगे जैसे स्वर्ग पर शासन किया जाता है”
मठ की ओर से ही एक दल को विशेष विमान से नई दिल्ली भेजा गया। 14 अगस्त की रात तकरीबन 11 बजकर 45 मिनट पर सेंगोल को लार्ड माउंटबेटन को सौंपा गया. इसके के बाद माउंटबेटन ने इसे तमिलनाडु से आए संत श्रीकुमारस्वामी थम्बिरन को सौंप दिया।
उन्होंने ये राजदंड प्रधानमंत्री नेहरू को सौंपकर गंगाजल के साथ अभिषेक भी किया ताकि अंग्रेज़ों की बुराइयाँ भारत के भविष्य को प्रभावित न करे।
Larry Collins and Dominique Lapierre ने अपनी किताब freedom of midnight में इस पूरे घटनाक्रम का उल्लेख किया है।
यह घटनाक्रम हम आपको इसलिए भी बता रहे हैं ताकि भविष्य में कोई कथित बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री या रक्षामंत्री के पूजा पाठ करने पर सवाल उठाये तो उसे बताया जा सकता है कि भारत की आज़ादी का प्रारम्भ ही पूजा पाठ पद्धति से हुआ है। और अब इसी पद्धति को आगे बढ़ा रहे हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
लेकिन हैरान करने वाला तथ्य ये है कि आज़ादी के उस रात्रि के बाद यह सेंगोल कभी नज़र ही नहीं आया।
नेहरू की सेंगोल से नफरत?
प्रश्न उठता है कि क्या हिन्दू धार्मिक चिन्हों से जवाहर लाल नेहरू को इतनी नफरत थी?
जो सेंगोल देश में लोकतंत्र का प्रतीक बना उसे देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने अपनी छड़ी के रूप में इस्तेमाल किया था।
जवाहर लाल नेहरू की सरकार एवं उसके बाद आगे आने वाली सरकारों ने भी इस सेंगोल को किनारे लगा दिया था।
इतने वर्षों तक यह कहाँ था? यह सेंगोल मिला इलाहाबाद संग्रहालय में, जिसे अब मोदी सरकार पुनर्स्थापित कर रही है। इसे संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा।
आपको बता दें कि नए संसद भवन के निर्माण के दौरान पीएम मोदी के निर्देश पर एक टीम ने रिसर्च की थी। इस रिसर्च के दौरान ही सेंगोल का पता चला जिसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 1947 के बाद सेंगोल को कमोबेश भुला दिया गया। फिर 1971 में एक तमिल विद्वान बी आर सुब्रमण्यम ने एक किताब में इसका जिक्र किया। हमारी सरकार ने 2021-22 में इसका जिक्र किया।
खास बात ये है कि इस उद्घाटन समारोह में उन 96 वर्षीय बंगारू चिट्टी को भी आमंत्रित किया गया है जो वर्ष 1947 में आज़ादी की उस सेरोमनी में भी मौजूद थे।